कानपुर नगर निगम और आइआइटी मिलकर करने जा रहे एेसा काम, बदल जाएगी शहर के पार्कों की तस्वीर
आइआइटियंस हरीशंकर की नगर निगम के साथ अंतिम चरण की वार्ता के बाद अब जल्द ही काम शुरू हो जाएगा। पहले चरण में शहर के पांच बड़े पार्कों काे शामिल किया है जिसमें कारगिल पार्क तुलसी उपवन और परशुराम वाटिका हैं।
कानपुर, जेएनएन। कानपुर नगर निगम और आइआइटी मिलकर ऐसा काम करने जा रहे हैं, जिससे शहर के पार्कों की तस्वीर बदल जाएगी। शहर में कई दिनों से इसक के लिए योजना बनाई जा रही थी, लेकिन अमलीजामा अब पहनाया जा सका। पार्कों की सुंदरता बढ़ाने के साथ आय का जरिया भी ढूंढ़ निकाला है। शुरुआती दौर में पांच बड़े पार्कों का चयन किया गया है, इसमें कारगिल पार्क, तुलसी उपवन और परशुराम वाटिका शामिल हैं।
शहर के पार्कों में पेड़-पौधों की गिरने वाली पत्तियां, घास और झाड़ का निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है। इससे पार्क की सुंदरता पर भी असर पड़ता है और घास कटाई समेत पौधों की छंटाई तक की समस्या बनी रहती है। वहीं कटाई और छंटाई से निकली पत्तियों और अवशेषों को जलाया जाता रहा है, जो वायु प्रदूषण की बड़ी वजह बनता है। सुबह और शाम के समय सैर करने वालों के लिए धुआं नुकसानदायक हो सकता है। इस समस्या का निदान करने के लिए आइआइटी आगे आय है।
शहर के पार्कों से निकलने वाले फूल, पत्तियां और अन्य अवशेष समस्या नहीं बनेंगे, अब उनका उपयोग किया जाएगा। आइआइटी के विशेषज्ञ इससे जैविक खाद में तबदील करने में सहयोग करेंगे। नगर निगम के साथ अंतिम चरण की वार्ता के बाद अब जल्द ही इसपर काम शुरू हो जाएगा। पहले चरण में पांच पार्कों को लिया गया है। नगर आयुक्त अक्षय त्रिपाठी ने आइआइटी में घरेलू कचरे से जैविक खाद तैयार करने वाले पुरातन छात्र हरी शंकर से बातचीत की है, जिस पर पार्कों में ही जैविक खाद बनाने का निर्णय हुआ। यह खाद तैयार होने में 15 से 21 दिन लगते हैं, आइआइटी में इस पर काम चल रहा है। खाद बिक्री से आय के साधन भी बढ़ेंगे।
गौशालाओं में बनेगी खाद
आइआइटी के विशेषज्ञ गौशाला से निकलने वाले गोबर से सूखी व गीली जैविक खाद तैयार करेगी। यह खाद 40 से 50 दिन में तैयार हो जाएगी। सामान्यता गोबर से खाद बनाने में में सात से आठ महीने लगते हैं।
आइआइटी से बनाई कंपनी
हरी शंकर ने बीटेक करने के बाद जैविक खाद के फॉर्मूले पर कंपनी तैयार की। उन्होंने संस्थान के घरों से निकलने वाले फल व सब्जियों के छिलकों और मेस से बचे हुए खाने का इस्तेमाल किया। जैविक खाद का ट्रायल ईश्वरीगंज, सक्सूपुरवा, सिंहपुर आदि गांवों में हो चुका है। यहां बेहतर परिणाम सामने आए हैं।