कानपुर: लोगों को मुंह चिढ़ा रहे खंडहर स्वास्थ्य उपकेंद्र, इलाज करने की जगह बनी कूड़ाघर

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 43 गांवों में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना एनआरएचएम के तहत स्वास्थ्य उपकेंद्रों का निर्माण कराया गया था। उद्देश्य था कि ग्रामीण गर्भवती और उसके शिशु को चौबीस घंटे समय पर टीकाकरण प्रसव एवं अन्य प्राथमिक चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 04:42 PM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 04:42 PM (IST)
कानपुर: लोगों को मुंह चिढ़ा रहे खंडहर स्वास्थ्य उपकेंद्र, इलाज करने की जगह बनी कूड़ाघर
खंडहर स्थिति में स्वास्थ्य उपकेंद्रों में खड़ी झाडिय़ां।

कानपुर, जागरण संवाददाता। केंद्र और प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का दावा कर रही हों, लेकिन बिधनू ब्लाक में आकर तमाम दावे हवा साबित नजर आते हैं। यहां राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 43 गांवों में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना राट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत 6 -10 लाख रुपये की लागत से स्वास्थ्य उपकेंद्रों का निर्माण कराया गया था।

उद्देश्य था कि ग्रामीण गर्भवती और उसके शिशु को चौबीस घंटे समय पर टीकाकरण, प्रसव, एवं अन्य प्राथमिक चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके। गांव में बीमारी से बचाव के लिए दवा का छिड़काव और कुओं में क्लोरीन डाली जाए। जिसके लिए इन उपकेंद्रों में एएनएम और सहायिका को नियुक्त किया गया था। सरकारी निर्देश है कि इन उपकेंद्रों पर एएनएम दिन में ड्यूटी के साथ ही साथ रात में भी विश्राम करें, ताकि हर समय जरूरतमंदों को चिकित्सा सुविधा मुहैया हो सके। हालत यह है कि यहां रात्रि विश्राम की बात दूर, दिन में ही ताला बंद रहता है। जिससे मरीजों को भटकना पड़ता है। अनदेखी के शिकार कुछ उपकेंद्रों में कहीं मवेशी बांधे जा रहे हैं तो कुछ में झाडिय़ां खड़ी होने से जंगल में तब्दील हो चुके हैं। ऐसी स्थित में ग्रामीण प्रसूताओं और जच्चा- बच्चा को 15 से 20 किलोमीटर दूर स्थित सीएचसी का या फिर नर्सिंगहोम का सहारा लेना पड़ता है।

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तीन करोड़ के स्वास्थ्य उपकेंद्र भवन बेकार: स्वास्थ्य विभाग ने हर गांवों में सुरक्षित जच्चा बच्चा व अन्य स्वस्थ्य सेवाओं के उद्देश्य से सात लाख प्रति उपकेंद्र के हिसाब से लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च कर 43 स्वास्थ्य  उपकेंद्र बनाये थे। जिनकी विभाग देखरेख तो कर नहीं पाया और सभी  उपकेंद्र  खंडहर में तब्दील होने लगे। इसके बाद भी बीते छह वर्षों में घुरुआखेड़ा, कोरियां, हरबसपुर, पलरा गाँव में 10 लाख रुपये प्रति उकेन्द्र की लागत से चार नए उपकेंद्रों को बनाकर तैयार करा दिया। ऐसे में स्वास्थ्य योजनाओं के नाम पर सरकार के पैसे का दुरुपयोग होता नजर आ रहा है। 

बोले जिम्मेदार: अधिकांश उपकेंद्र गांव के बाहर बने हुए है। जिसकी वजह से रात के वक्त एएनएम उपकेंद्र में रुकने से कतराती हैं। दिन के दौरान अधिकांश उपकेंद्रों में एएनएम पहुंचती है। - डा.एसपी यादव, चिकित्साधीक्षक बिधनू

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