ईंधन के मामले में निर्भर होगा देशः तालाब की काई से बनेगा खाना, चलेंगे वाहन
काई से तेल निकालने की ये तकनीक हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के ऑयल टेक्नोलॉजी विभाग की लैबोरेट्री में विकसित हुई है।
कानपुर [शशांक शेखर भारद्वाज]। तालाब, झील और जलभराव में मिलने वाली एलगी (काई) बड़े काम की है। आने वाले भविष्य में इससे खाने के तेल, प्रोटीन और बायोफ्यूल (जैव ईंधन) निकाला जा सकेगा। इसके लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया है जिसे 22 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।
काई से तेल निकालने की ये तकनीक हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के ऑयल टेक्नोलॉजी विभाग की लैबोरेट्री में विकसित हुई है।
इसकी पूरी प्रक्रिया औद्योगिक इकाईयों में कराई जा रही है जहां सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। विभाग ने तकनीक को नेशनल जनरल में प्रकाशित कराया है। अब इसका एक विस्तृत प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। एचबीटीयू के ऑयल विभाग के एचओडी और ऑयल टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. आरके त्रिवेदी ने बताया कि एसोसिएशन के माध्यम से इसे प्रधानमंत्री के सामने रखा जाएगा, ताकि इसका प्रयोग कर किसानों को काई की खेती के लिए प्रेरित किया जाए।
ऐसे होता है तैयार
काई में औसतन 40 फीसद लिपिड होता है। इस लिपिड में मोनो गिलिस्राइड, डाई गिलिस्राइड, ट्राई गिलिस्राइड, फैटी एसिड, कोलेस्ट्राल आदि होते हैं। विशेषज्ञ खाने के तेल के लिए उस काई को लेते हैं, जिनमें ट्राई गिलिस्राइड की मात्रा 70 फीसद से अधिक होती है। डाई गिलिस्राइड, मोनो गिलिस्राइड की अधिकता वाली काई को ईंधन में प्रयोग किया जाता है।
यूरोप-यूएसए में हो रहा प्रयोग
यूरोप और यूएसए में बड़े पैमाने पर काई के तेल का प्रयोग हो रहा है। यहां पर कई फैक्ट्रियां संचालित हैं, जो व्यावसायिक रूप से इसका इस्तेमाल कर रही हैं।
'भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए काई से जैविक ईंधन और खाद्य तेल निकाला जाना कारगर है। इससे वाहन चलाने में सहूलियत रहेगी और खाने में भी प्रयोग हो सकेगा। अभी यह प्रक्रिया महंगी है।
- प्रो. आरके त्रिवेदी, एचओडी, ऑयल टेक्नोलॉजी, एचबीटीयू