बेबसों को बेमौत मार रही ऑक्सीजन की आधी-अधूरी सप्लाई

हाईकोर्ट ने आक्सीजन से हो रहीं मौतों को नरसंहार ठहराया है। बावजूद इसके मौतें नहीं रुक रहीं हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 01:39 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 01:39 AM (IST)
बेबसों को बेमौत मार रही ऑक्सीजन की आधी-अधूरी सप्लाई
बेबसों को बेमौत मार रही ऑक्सीजन की आधी-अधूरी सप्लाई

इंट्रो

ऑक्सीजन न मिलने से अस्पतालों में होने वाली मौतों को हाईकोर्ट ने नरसंहार ठहराया है। ये तो उनकी बात हुई, जिन्हें इलाज मिल रहा था पर ऑक्सीजन न होने कीबेबसी के चलते सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती न हो पाने और उसकी ड्योढ़ी पर दम तोड़ देने वालों की मौत का जिम्मेदार किसे माना जाए ये बड़ा सवाल है। सवाल तो ये भी है कि संविधान में मिले जीने के अधिकार से शहरवासियों को महरूम करने और भर्ती मरीजों के जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन की फिक्र में रातों को सो न पाने वाले डॉक्टरों की बेबसी के लिए जिम्मेदार कौन है। शहरियों के अधिकारों के हनन और ऑक्सीजन की अनुलब्धता के चलते हो रही मौतों के लिए जिम्मेदार सिस्टम पर सवाल खड़े करती जागरण संवाददाता राजीव सक्सेना की रिपोर्ट।

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कहर बरपाने लगा कोरोना, व्यवस्था सुधरी ही नहीं..

फैक्ट फाइल

- अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए दिन-रात दौड़ती रहती हैं गाड़ियां

- पहले भी मिल रही थी 50 टन ऑक्सीजन, अब भी उतनी ही मिल रही

- अधिवक्ता बोले, आम आदमी के जीने के अधिकार का भी हो रहा उल्लंघन कानपुर : पिछले एक माह में शहरवासियों ने जो देखा, भगवान न करे दोबारा देखना पड़े। ई-रिक्शा, ऑटो, टेंपों, लोडर में अस्पतालों के बाहर तड़पते मरीज, अस्पतालों में बेड के लिए तीमारदारों की गुहार। स्ट्रेचर न मिलने पर अपनों को गोद में उठाए स्वजन और ऑक्सीजन न मिल पाने पर दर-दर एड़ियां रगड़-रगड़ दम तोड़ते इंसान। सिर्फ यही नहीं, बल्कि घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए लगी लंबी कतार और इंतजार.. आपदा की इस सच्चाई को शायद कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। सिस्टम ने भी ये देखा, तरह-तरह के वादे किए, दावे किए, भरोसा दिलाया, आश्वासनों का पुलिंदा थमाया, लेकिन किया कुछ नहीं। आधी-अधूरी ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए जरिए सिस्टम घसीटा जाता रहा। भारतीय संविधान में आम आदमी को प्रदत्त जीने के अधिकार का उल्लंघन होता रहा। अस्पताल के दरवाजे पर लोग दम तोड़ते रहे, लेकिन सिस्टम ने फिर भी सक्रियता नहीं दिखाई। इसकी बानगी ऑक्सीजन की उपलब्धता है। पहले भी 50 टन ऑक्सीजन मिलती थी, अब भी उतनी ही ऑक्सीजन से काम चलाना पड़ रहा है। अंतर सिर्फ इतना है कि अब लोगों की जेब काटी जा रही है। इससे समस्या और बढ़ी, क्योंकि जयादा रुपये पाने की चाहत में सिंगल सिलिंडरों को फुटकर में बेचा गया और जरूरतमंदों को ऑक्सीजन नहीं मिल सकी।

हैलट नारायणा और रामा अस्पताल को छोड़ दिया जाए तो बाकी कोविड अस्पताल 40-50 से लेकर 100 बेड तक के ही हैं। पहले इन अस्पतालों में एक दिन में 10 से 15 तक ही ऑक्सीजन सिलिंडर की खपत थी। इन्हें कोविड अस्पताल बनाए जाने के बाद ये खपत 10 गुना तक बढ़ गई है। 24-24 घंटे कई-कई वाहन ऑक्सीजन के लिए प्लांटों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन संक्रमण की शुरुआत से इसके पीक पर पहुंचने तक इसकी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई।

नर्सिग होम प्रबंधन इसलिए डरा-सहमा रहता है कि कहीं कोई हादसा हुआ तो प्रशासन कार्रवाई कर देगा, तब नहीं पूछा जाएगा कि ऑक्सीजन कैसे नहीं मिली। डर तो इतना है कि अस्पताल संचालक अपना नाम तक नहीं बताना चाहते। एक अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक संक्रमण से पहले शहर को 50 टन ऑक्सीजन की जरूरत थी। अब संक्रमितों का आंकड़ा तकरीबन 19 हजार पर पहुंच गया है। जरूरत 125 टन ऑक्सीजन की है, लेकिन काम 50 टन में ही चलाया जा रहा है। अधिकारी और प्लांट संचालक दिनभर इधर की ऑक्सीजन उधर कर किसी तरह लड़खड़ा रही व्यवस्था को बस घसीट रहे हैं।

इन मशीनों पर लगती ज्यादा ऑक्सीजन

चिकित्सकों के मुताबिक वेंटीलेटर, बाईपैप, एचएफएनसी, हाई फ्लो मास्क मशीनों पर जो मरीज निर्भर हैं, उन्हें सामान्य के मुकाबले ज्यादा ऑक्सीजन चाहिए होती है। हाई फ्लो मास्क पर प्रति मिनट आठ से 10 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है, जबकि सामान्य तौर पर प्रति दिन चार से पांच लीटर ऑक्सीजन की ही खपत होती है।

फुटकर में कमाई की वजह से अस्पताल वालों को इंतजार

घरों में जो लोग इलाज करा रहे हैं, उनके तीमारदार फुटकर में एक-एक सिलिडर लेकर आते हैं, इनके लिए सीधा सा रेट 700 रुपये और 300 रुपये लिख दिया गया है। सात सौ रुपये में सात क्यूबिक मीटर और तीन सौ में 1.5 क्यूबिक मीटर का सिलिडर मिलता है। नर्सिंग होम को ये सिलिडर 450 रुपये और दो सौ रुपये के करीब जीएसटी मिलाकर पड़ते हैं। नर्सिंग होम संचालकों के मुताबिक सात क्यूबिक मीटर के एक सिलिडर को फुटकर में बेचने पर प्लांट वालों को 250 रुपये बचते हैं वहीं छोटे सिलिडर में 100 रुपये बचते हैं। इसकी वजह से अस्पताल वालों को प्लांट में इंतजार कराया जाता है।

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हर नागरिक को है जीने का अधिकार

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। जीने के अधिकार का मतलब यह नहीं कि केवल जीवन का अस्तित्व हो, यह जीवन गरिमापूर्ण और गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए।

अगर ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई है तो उसके परिजन अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट जाकर अपनी बात रख सकते हैं कि उनके प्रत्यक्ष मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है। इसके साथ ही कोई व्यक्ति या सामाजिक संगठन जनहित याचिका भी न्यायालय में दाखिल कर सकता है कि प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों ने महामारी के दौरान अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया। इसलिए ऑक्सीजन की कमी से शहर में मौतें हुईं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर अधिकारियों को तलब कर दंडित कर सकते हैं।

- कपिल दीप सचान, पूर्व महामंत्री, कानपुर बार एसोसिएशन।

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