घटती छात्र संख्या बनी चिंता की वजह, शासन के अफसर बदलेंगे जीआइसी की सूरत, जुटाया जा रहा डाटा

बाउंड्रीवाल समतलीकरण विद्युत व्यवस्था समेत अन्य सुधार को मांगी गई जानकारी। यहां के छात्र पढ़कर अपनी मेधा से देश-विदेशों में पहचान बना सकें। इसलिए इन विद्यालयों की स्थिति बदलने के लिए डाटा जुटाया जाने लगा है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से शासन के अफसर जिले के अफसरों से सवाल-जवाब करेंगे।

By Shaswat GuptaEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 05:56 PM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 05:56 PM (IST)
घटती छात्र संख्या बनी चिंता की वजह, शासन के अफसर बदलेंगे जीआइसी की सूरत, जुटाया जा रहा डाटा
कानपुर में जीआइसी की खबर से संबंधित सांकेतिक तस्वीर।

कानपुर, जेएनएन। राजकीय विद्यालयों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। हर साल शासन से सुधार के लिए इन विद्यालयों को बजट के तौर पर 50 हजार रुपये मिलते जरूर हैं, लेकिन विकास संबंधी ज्यादातर कामकाज कागजों पर ही हो जाता है। भवन जैसे थे, वैसे ही रहते हैं। फर्नीचर न होने के चलते टूटी कुर्सियों-मेज पर बैठकर छात्र पढ़ने को मजबूर होते हैं। हालांकि अब शासन के अफसर जीआइसी की सूरत बदलेंगे। इसके लिए कवायद शुरू हो गई है। माना जा रहा है, खुद सीएम चाहते हैं कि राजकीय विद्यालयों का गौरव एक बार फिर से सालों पुरानी स्थिति जैसा हो। यहां के छात्र पढ़कर अपनी मेधा से देश-विदेशों में पहचान बना सकें। इसलिए इन विद्यालयों की स्थिति बदलने के लिए डाटा जुटाया जाने लगा है।

बाउंड्रीवाल, समतलीकरण, विद्युत व्यवस्था समेत अन्य जानकारी मांगी

जिले के कितने राजकीय विद्यालयों में बाउंड्रीवाल नहीं है, कितने विद्यालयों में समतलीकरण नहीं है और कहां-कहां बिना बिजली विद्यालय संचालित हो रहे हैं, इसकी पूरी जानकारी शासन ने डीआइओएस से मांगी है। शुक्रवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से शासन के अफसर जिले के अफसरों से सवाल-जवाब करेंगे।

घटती छात्र संख्या है चिंता की वजह

 राजकीय विद्यालयों में संसाधनों का अभाव होने के चलते हर वर्ष छात्र संख्या घट रही है। घटती संख्या ही अफसरों के लिए सबसे बड़ा चिंता का कारण है। हर साल अधिक से अधिक प्रवेश हों, इसके लिए कवायद तो खूुब की जाती है, हालांकि नतीजा सिफर है।

इनका ये है कहना 

राजकीय विद्यालयों में क्या-क्या दिक्कतें हैं, कहां बाउंड्रीवाल नहीं, कहां समतलीकरण की दिक्कत हैं। ऐसी सूचनाएं शासन से मांगी गई हैं। - सतीश तिवारी, डीआइओएस

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