किसानों के लिए अच्छी खबर, अब ऊसर और बंजर जमीन में भी लहलहाएंगी गेहूं-सरसों की फसलें

कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में विशेषज्ञों ने गेहूं सरसों और अलसी की नई प्रजातियां तैयार की हैं जिनका उत्पादन ऊसर-बंजर जमीन पर भी हो सकेगा। सभी रोगों से बचाने में भी ये मददगार होंगी।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 08:53 AM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 08:53 AM (IST)
किसानों के लिए अच्छी खबर, अब ऊसर और बंजर जमीन में भी लहलहाएंगी गेहूं-सरसों की फसलें
सीएसए के बीजों को राज्य बीज विमोचन समिति ने मंजूरी दी हैं।

कानपुर, जागरण स्पेशल। कृषि क्षेत्र से जुड़ाव रखने वालों के लिए अच्छी खबर है। अब ऊसर और बंजर भूमि में भी फसलें लहलहाएंगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) में अब गेहूं, सरसों व अलसी की नई प्रजातियां तैयार की गई हैं। ये फसल को रोगों से बचाने, ऊसर और बंजर भूमि के लिए मुफीद हैं, जबकि प्रदेश के वातावरण के लिए पूरी तरह से अनुकूल हैं।

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर ङ्क्षसह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने इन विशेष प्रजातियों के बीज विकसित करने में सफलता पाई है। ये प्रजातियां गेहूं की के-17 11, सरसों की केएमआरएल 15-6 (आजाद गौरव) और अलसी की एलसीके-1516 (आजाद प्रज्ञा) हैं। इनसे किसान कम समय व कम लागत में अच्छी पैदावार ले सकेंगे। गुरुवार को यह जानकारी कुलपति ने दी। उन्होंने बताया कि बीजों के इस विशेष प्रकार को पूरे प्रदेश में पैदावार के लिए राज्य बीज विमोचन समिति लखनऊ ने मान्यता दे दी है। इस उपलब्धि पर विवि के निदेशक शोध डा. एचजी प्रकाश, संयुक्त निदेशक शोध डा. एसके विश्वास व सहायक निदेशक शोध डा.मनोज मिश्र समेत अन्य वैज्ञानिकों ने हर्ष जताया है।

कौन सी प्रजाति, कहां के लिए बेहतर

गेहूं की प्रजाति के-17 11 : ऊसर प्रभावित क्षेत्रों के लिए। इसे विकसित करने वाले वैज्ञानिक डा. सोमबीर ङ्क्षसह व उनकी टीम ने बताया कि प्रदेश के ऊसर प्रभावित क्षेत्रों में इसका उत्पादन 38 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 125 से 129 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इसमें प्रोटीन 13 से 14 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें रस्ट एवं पत्ती झुलसा जैसे रोग नहीं होंगे।

सरसों की केएमआरएल 15-6 (आजाद गौरव) : इसको विकसित करने वाले वैज्ञानिक डा. महक ङ्क्षसह एवं उनकी टीम ने बताया, प्रदेश के सभी क्षेत्रों के लिए अति विलंब की दशा में (20 नवंबर से 30 नवंबर) तक बोआई कर सकते हैं। यह प्रजाति 120 से 125 दिनों में पक कर तैयार होती है। पौधे की ऊंचाई 185 से 195 सेंटीमीटर है। इसकी उत्पादन क्षमता 22 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की मात्रा 39 से 40 प्रतिशत तक है। इसका दाना मोटा है।

अलसी की प्रजाति एलसीके-1516 (आजाद प्रज्ञा) : इस प्रजाति को विकसित करने वाली वैज्ञानिक डा. नलिनी तिवारी एवं उनकी टीम ने बताया कि प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए इसे विकसित किया गया है। इसकी उपज 20 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति 128 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। तेल की मात्रा 35 प्रतिशत है, जो दूसरी प्रजातियों की तुलना में 11.22 प्रतिशत अधिक है। रोग एवं कीटों के प्रति सहनशील है व फूलों का रंग भूरा है।

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