धूल, धुआं व गैसों के भंवर में फंसकर प्रदूषण से कराह रहा है कानपुर

वायुमंडल में हानिकारक गैसों का घनत्व बढ़ता ही जा रहा है पिछली दीपावली की तुलना में इस बार कई गुना अधिक रहा प्रदूषण।

By Edited By: Publish:Sat, 17 Nov 2018 01:31 AM (IST) Updated:Sun, 18 Nov 2018 04:46 PM (IST)
धूल, धुआं व गैसों के भंवर में फंसकर प्रदूषण से कराह रहा है कानपुर
धूल, धुआं व गैसों के भंवर में फंसकर प्रदूषण से कराह रहा है कानपुर

कानपुर, जागरण संवाददाता । सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों को समेटे कानपुर आज धूल, धुआं और गैसों के भंवर में फंसकर कराह रहा है। कभी कपड़ा मिलों की वजह से पूरब का मैनचेस्टर कहलाने वाला शहर आज गंदगी के लिए बदनाम हो गया है। इसकी फिजाओं में प्रदूषण की कालिख दिन ब दिन गहराती जा रही है। वायुमंडल में हानिकारक गैसों का घनत्व बढ़ता ही जा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की ओर से जारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पिछली दीपावली की तुलना में इस बार कई गुना अधिक प्रदूषण रहा। वायुमंडल में जहरीली गैसों का भयानक स्तर सर्दी से पहले का है, कोहरा पडऩे पर क्या स्थिति होगी, सोचकर भी दिल कांप उठता है। क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कुलदीप मिश्र का कहना है कि दीपावली के समय शहर के ऊपर पर्टिकुलेट मैटर और अन्य गैसों का सर्वाधिक घनत्व हो गया था। यह कई साल का रिकार्ड है। इससे पूर्व अधिकतम 600 तक ही वायु गुणवत्ता सूचकांक गया है। 
एचबीटीयू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. दीप्तिक परमार के मुताबिक शहर में दिल्ली से अधिक प्रदूषण हो जाता है। यहां सबसे अधिक धूल उडऩे की समस्या है। सड़कों के किनारे कच्चे हैं, जिन पर वाहनों के चलने से धूल और गर्द उडऩा स्वाभाविक है। वहीं अर्थ साइंस डिपार्टमेंट, आइआइटी के प्रो. इंद्रशेखर सेन का कहना है कि कानपुरवासियों को वायु प्रदूषण के खतरे को देखते हुए जागरूक होना पड़ेगा। जगह-जगह कूड़ा, करकट जलने से रोकना होगा। बेवजह वाहनों के प्रयोग से बचें। 


प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण 
-जर्जर सड़कें और उनके किनारे उड़ती धूल-वाहनों और जेनरेटर से निकलता धुआं
-सड़क किनारे जलता कूड़ा और कचरे का ढेर-औद्योगिक इकाइयों से निकलता धुआं
-खुले में ले जाई जाती भवन निर्माण सामग्री 
 सख्ती भी काम नहीं आई 
कानपुर में बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरे को दूर करने के लिए जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कुलदीप मिश्र को नोडल अधिकारी बना दिया। नगर निगम, केडीए, आवास विकास समेत अन्य विभागों को कार्रवाई का अधिकार दे दिया। इन सबके बावजूद शहर की हवा सेहतमंद नहीं हो सकी। 
विभागों को दिए गए काम 
-आवास विकास और केडीए : कंस्ट्रक्शन साइट में निर्माण सामग्री खुले में न रखी जाए। उसका सही तरह से भंडारण हो। रेत, बालू, बजरी पर पानी का छिड़काव किया जाए। 
-पीडब्ल्यूडी : हॉटमिक्स प्लांट पर प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था दुरुस्त हो। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी नियमित जांच करें। 
-आरटीओ : धुआं उगलते वाहनों का चालान हो। अत्याधिक खटारा वाहन को शहर से बाहर किया जाए। 
-नगर निगम : सड़कों के किनारे नियमित पानी का छिड़काव किया जाए। यांत्रिक साधनों से धूल की सफाई हो। कूड़ा जलाने पर मुकदमा दर्ज कराया जाए। 
-प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड : औद्योगिक इकाइयों की निरंतर चेकिंग, प्रदूषण मिलने पर तत्काल बंदी की कार्रवाई।
 प्रदेश में ग्रैप को हरी झंडी 
दिल्ली की तरह वायु प्रदूषण के खतरे को देखते हुए प्रदेश में ग्रेटेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) तैयार हो गया है। इसके जरिए प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास किए जाएंगे
बढ़ रहा पीएम-वन का खतरा 
पर्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5, 10 के अलावा अब पीएम वन का खतरा बढ़ता जा रहा है। यह नैनो आकार के रहते हैं। मोबाइल मॉनीटङ्क्षरग स्टेशन में इनकी आसानी से पहचान नहीं हो पाती है। आइआइटी और एचबीटीयू के विशेषज्ञ इस पर काम कर चुके हैं। उनके मुताबिक तीन साल में पीएम वन का घनत्व तीन गुणा से अधिक हो गया है। यह श्वांस रोगियों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। सीधे धमनियों तक पहुंच जाते हैं। 
 व्यवस्था में छेद या अधिकारियों की सुस्ती 
प्रदूषण के खतरे को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी कितने संजीदा हैं इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बीते साल हानिकारक गैसों के खतरे को देखकर भी उसकी तैयारी नहीं की गई। इसका नतीजा नेहरू नगर के ऑटोमेटिक मॉनीटङ्क्षरग स्टेशन के काम न करने के रूप में सामने आ गया। गर्मी के मौसम में सेंसर और अन्य उपकरणों को कैलीब्रेट किया जा सकता था, लेकिन दीपावली के समय किया गया। इसे व्यवस्था में छेद या अधिकारियों की सुस्ती कहा जा सकता है। आज 10 दिन से अधिक समय बीतने के बाद भी स्टेशन चालू नहीं हो सका है।

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