पुतले बनाकर वर्ष भर की पूंजी जुटाने वाले महामारी के समय रोजी-रोटी को मोहताज

कोरोना वायरस के संकट के कारण बदहाली की कगार पर पुतले बनाने वाले परिवार कारीगर बोले प्रशासन से अनुमति के बाद ही बनाएंगे पुतले अन्यथा कर्जदार होना पड़ेगा निर्माताओं ने बताया कि प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख तक की आमदनी हो

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 07:00 PM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 07:00 PM (IST)
पुतले बनाकर वर्ष भर की पूंजी जुटाने वाले महामारी के समय रोजी-रोटी को मोहताज
जमीन पर रखे हुए निर्माणाधीन विभिन्न आकार के पुतले

कानपुर, जेएनएन। इसमें कोई दोराय नहीं कि कोरोना और लॉकडाउन ने लघु उद्योग करने वाले कई दुकानदारों की आजीविका पर प्रहार किया है। लेकिन हमारे समाज में ही कई ऐसे परिवार हैं जिनके जीविकोपार्जन का साधन खिलौने, पुतले या मूर्ति बनाना है। ऐसे अतिलघु उद्योगों का सहारा लेकर घर चलाने वालों के समक्ष आजकल रोजी-रोटी छिनने के साथ भविष्य के लिए चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है। पुतले बनाकर वर्ष भर के लिए पूंजी एकत्र करने वाले ऐसे परिवारों के सामने आर्थिक संकट प्रतिदिन गहराता जा रहा है। 

इस बार दशहरा में होना पड़ेगा कर्जदार

लगभग 45 वर्ष से स्वयं कई शहरों में पुतले बनाने वाले मो. सलीम ने बताया कि तीन पीढिय़ों से उनका परिवार पुतले बनाता आ रहा है। संक्रमण के कारण इस बार अभी तक कोई ऑर्डर नहीं मिला है। उन्नाव में पुतले बनाने वाले मो. शकील बताते हैं कि वे जीवन भर रावण और उनके भाइयों के पुतले बनाकर परिवार चलाते आ रहे है, लेकिन इस बार दशहरा में लगता नहीं पुतले बनवाने का ऑर्डर मिलेगा। अन्य निर्माताओं के मुताबिक प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद ही पुतले बनाएंगे नहीं तो कर्जदार होना पड़ेगा। मोहम्मद सलीम के बेटे इकबाल ने बताया कि प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख तक की आमदनी हो जाती थी। ताजिया, मंदिरों का शृंगार व भगवान की झांकियों को बनाकर वर्ष भर के लिए व्यवस्थाएं हो जाती थी। इस बार ताजिया के बाद अब दशहरा में भी सन्नाटा है।

एक सीजन में बन जाते थे पांच से सात बड़े पुतले

फतेहपुर, सिकंदरा, झीझक, हमीरपुर सहित शहर की विभिन्न रामलीला में पुतले बनाने वाले इकबाल बताते हैं कि एक सीजन में पांच से सात बड़े व दर्जनों छोटे पुतले बना लेते थे। बड़े पुतले से 25 से 30 हजार तक की आमदनी हो जाती है, जबकि छोटे से 400 से 500 रुपये तक मिल जाते थे। उनका कहना था कि हर बार तो घर चल जाता था, लेकिन इस बार क्या होगा ये तो मालिक ही जाने।

रामलीला सोसाइटी ने बढ़ाए मदद के हाथ

60 वर्षीय मो. सलीम ने बताया कि महामारी के इस दौर में दस लोगों के परिवार की मदद रामलीला सोसाइटी ने की। छावनी रामलीला के सिद्धार्थ काशीवर, राजू गुप्ता, एमआर वर्मा और जय कुमार प्रजापति ने एडवांस देकर संकट में साथ दिया। उनका परिवार शहर में सबसे अधिक ऊंचाई के पुतले बनाने में माहिर है।

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