फर्जी जमानत गिरोह कचहरी में भी बना रहा था फर्जी आधार कार्ड
- काफी समय से चल रही है फर्जी जमानतदारों की जांच - गैंगस्टर कोर्ट ने दर्ज कराई कराई
- काफी समय से चल रही है फर्जी जमानतदारों की जांच
- गैंगस्टर कोर्ट ने दर्ज कराई कराई थी एफआइआर
- पूछताछ में पुलिस को मिली महत्वपूर्ण जानकारियां
जेएनएन, कानपुर : फर्जी जमानतदारों के गिरोह की जांच में जुटी क्राइम ब्रांच को अभियुक्तों से पूछताछ में कई अहम जानकारियां मिली हैं। इसमें सबसे सनसनीखेज है कचहरी में भी फर्जी आधार कार्ड व अन्य नकली दस्तावेजों का बनना। अभियुक्तों ने बताया कि कचहरी में कई ऐसे ठिकाने हैं, जहां ऐसे फर्जी दस्तावेज तैयार होते हैं।
गैंगस्टर कोर्ट से जुड़े सर्वाधिक मामले सामने आने पर सक्रिय हुई पुलिस
अक्टूबर-2020 में तत्कालीन एसपी पश्चिम डा.अनिल कुमार की टीम ने कचहरी में सक्रिय फर्जी जमानतदारों के गिरोह का भंडाफोड़ किया था। उस वक्त जो प्रकरण सामने आए, उनमें गैंगस्टर कोर्ट के अभियुक्त सर्वाधिक थे, जो कि फर्जी जमानत पर रिहा हुए थे। जांच के बाद गैंगस्टर कोर्ट की ओर से नवंबर-2020 को कोतवाली थाने में 73 आरोपितों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। एडिशनल डीसीपी दीपक भूकर ने बताया कि उक्त केस की जांच में सामने आया है कि 88 गैंगस्टर फर्जी दस्तावेज लगाकर जमानत पर रिहा हुए। इन्हें जमानत दिलाने में 19 जमानतदार भी चिह्नित किए गए। 107 अभियुक्तों में पुलिस अब तक 61 को जेल भेज चुकी है, जिसमें 49 गैंगस्टर और 12 जमानतदार हैं। पुलिस इन अभियुक्तों की जमानत निरस्त करने की कार्रवाई कर रही है। इसमें से 51 की जमानत निरस्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं।
न्यायालय, पुलिस और डाककर्मियों तक फैला था रैकेट, दब जाते थे पत्र
क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया है कि अधिवक्ता और उसके साथी जेल में बंद उन अभियुक्तों के लिए जमानतदार तैयार करते थे जिनकी जमानत तो हो जाती थी, लेकिन जमानतदार नहीं मिलते थे। यह स्थिति हार्डकोर क्रिमिनल के केस या फिर गैरजनपद या राज्य के बंदियों के सामने आती थी। दरअसल जमानत के लिए स्थायी जमानतदार होने का नियम है। ऐसे बंदियों के मामले में गैंग फर्जी जमानतदार और जमानत के फर्जी कागजात तैयार करता था। आरोपितों से पूछताछ में सामने आया है कि उनका ठिकाना भले ही कल्याणपुर में था, मगर कचहरी में ही कई ऐसे ठिकाने हैं, जहां जमानत में प्रयोग होने वाले आधार कार्ड, आइकाड व अन्य प्रमाणपत्र व दस्तावेज नकली बनाए जाते हैं। यह भी पता चला है कि जमानत में प्रयोग होने वाले दस्तावेजों की सत्यता जांचने के लिए जो पत्र आरटीओ या तहसील भेजे जाते थे, उन्हें स्थानीय डाकिया की मदद से बीच में ही दबा दिया जाता था। इसके बाद कोर्ट के सामने जाली दस्तावेज पेश करके जमानत करा ली जाती थी। पुलिस इस मामले में डाकिया, कोर्ट में इस कार्य में लगे कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
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न्यायालय से मिल रहा था इनपुट
पुलिस को न्यायालय से कई बार फर्जी जमानतदार होने का इनपुट मिल चुका था। उन्नाव और औरैया जनपदों के मामले में 90 फीसद तक फर्जी जमानतदार हाजिर हो रहे थे। इस पर क्राइम ब्रांच लंबे समय से सक्रिय थी और गैंग को पकड़ने के लिए जाल बिछा रखा था। यह भी जानकारी मिली है कि गिरोह पहले नर्वल थानाक्षेत्र के गांवों में रहने वाले फर्जी जमानतदारों का इंतजाम करती थी, लेकिन पुलिस की धरपकड़ के बाद औरैया और उन्नाव से फर्जी जमानतदार लाने लगे थे। फर्जी दस्तावेजों से एक जमानत के कम से कम 20 हजार रुपये लिए जाते थे।