EOW ने हाथरस के दंपती के खिलाफ लगाई चार्जशीट, छात्रवृत्ति घोटाले में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी जा चुके हैं जेल

हाथरस में डेढ़ करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच आर्थिक अपराध शाखा कर रही है। इसमें दो आरोपितों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो चुका है और डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को गिरफ्तार किया गया था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 19 Jan 2021 12:43 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jan 2021 05:11 PM (IST)
EOW ने हाथरस के दंपती के खिलाफ लगाई चार्जशीट, छात्रवृत्ति घोटाले में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी जा चुके हैं जेल
छात्रवृत्ति घोटाले की जांच ईओडब्लू कर रही है।

कानपुर, जेएनएन। आठ साल पहले हाथरस में हुए 1.52 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति घोटाले में आथिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) टीम ने आरोपित प्रबंधक व उसकी पत्नी के खिलाफ भी आरोपपत्र दाखिल कर दिया। साथ ही प्रधानाचार्य समेत दो आरोपितों के खिलाफ गैरजमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) लिया गया है। जल्द ही संपत्ति कुर्क की जाएगी। मामले में तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को जेल भेजा गया था।

वर्ष 2012 व 2013 में हाथरस के सिकंदराराऊ स्थित ठाकुर राजपाल सिंह इंटर कॉलेज कपसिया में छात्रवृत्ति घोटाला सामने आया था। वर्ष 2014 में एक शिकायत पर जांच शुरू हुई और जिला समाज कल्याण अधिकारी रहे शिवकुमार ने मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद शासन से जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) कानपुर सेक्टर स्थानांतरित की गई थी। सितंबर 2019 में विवेचना के बाद टीम ने सहारनपुर में दबिश देकर हाथरस के तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी वीरेंद्रपाल ङ्क्षसह को जेल भेजा था।

वीरेंद्रपाल इससे पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे। स्कूल प्रबंधक धर्मवीर सिंह, उनकी पत्नी बृजेश कुमारी, प्रधानाचार्य आशीष पंडित, सहायक अध्यापक आदर्श कुमार की तलाश शुरू हुई तो धर्मवीर व उनकी पत्नी ने कोर्ट से अंतरिम जमानत ले ली थी। ईओडब्ल्यू के एसपी बाबूराम ने बताया कि अब आरोपित प्रबंधक व उसकी पत्नी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया है। बाकी आरोपितों की कुर्की की प्रक्रिया शुरू की गई है।

फर्जी छात्र संख्या दिखाकर हड़पी थी रकम

जांच में सामने आया था कि कॉलेज प्रबंधन ने फर्जी छात्र संख्या दिखाकर अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति हड़पी थी, जबकि दस्तावेजों की जांच में कॉलेज में महज 50 बच्चे मिले थे। बाकी छात्र-छात्राओं के नाम व पते फर्जी थे। यही नहीं जिन बच्चों की छात्रवृत्ति आई, उन्हें भी वितरित नहीं किया गया था।

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