जल्द बाजार में आएगी ईको फ्रेंडली पॉलीथिन, जानिए क्या है इसकी खासियत

अभी तक कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि पॉलीथिन प्रकृति के लिए नुकसानदेह नहीं हो सकती है।

By Edited By: Publish:Sat, 20 Apr 2019 02:26 AM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 12:18 PM (IST)
जल्द बाजार में आएगी ईको फ्रेंडली पॉलीथिन, जानिए क्या है इसकी खासियत
जल्द बाजार में आएगी ईको फ्रेंडली पॉलीथिन, जानिए क्या है इसकी खासियत
कानपुर,[जागरण स्पेशल]। शायद आपने कभी कल्पना भी न की होगी कि पॉलीथिन भी मिट्टी में दबाने पर गल सकती है। जी हां, अब ऐसी पॉलीथिन की खोज तीन छात्रों ने मिलकर की है। यह पॉलीथिन खराब हो रहे आलू के स्टॉर्च निर्मित है, जो ईको फ्रेंडली है। अभी तक हम गंगा नदी हो या पर्यावरण, इनके प्रदूषण का अहम कारण पॉलीथिन ही मान रहे हैं, इसी वजह से सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर रखा है। लेकिन बहुत जल्द बाजार में अब ईको फ्रेंडली पॉलीथिन आने वाली है। 
हजारों क्विंटल आलू फेंक देते हैं किसान
केवल कानपुर बेल्ट की बात करें तो यहां हर साल पांच से सात फीसद आलू फेंक दिया जाता है। यह वह आलू होता है, जो कोल्ड स्टोरेज में खराब हो जाता है। अकेले कानपुर में ही करीब 25 हजार पैकेट यानी 125 टन के आसपास आलू किसान फेंक देते हैं। एक किलो 150 ग्राम निकलता है स्टार्च एक किलो आलू में करीब 140-150 ग्राम स्टार्च निकलता है। कानपुर, कन्नौज, फर्रुखाबाद, आगरा, अलीगढ़, मथुरा का कुछ हिस्सा आलू उत्पादन के क्षेत्र हैं। कानपुर में 4.5 लाख पैकेट, कन्नौज में 7.5 लाख पैकेट और फर्रुखाबाद में 6.5 लाख पैकेट आलू उत्पादन होता है।
आलू किसानों के मददगार तकनीक
प्रदेश में आलू को औद्योगिक उत्पाद बनाने की मांग भले ही अनसुनी हो, बीटेक छात्रों ने खराब हो रहे आलू के व्यावसायिक प्रयोग के लिए नई खोज की है। यह खोज न केवल आलू किसानों के लिए मददगार साबित होगी, बल्कि पर्यावरण को हो रहे नुकसान को भी कम करेगी। इसके लिए आलू की चुनिंदा किस्में कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना व डीएल-50 हाईब्रिड आलू की प्रजातियों का स्टार्च इस्तेमाल होगा।
बायोटेक्नोलॉजी के तीन छात्रों की खोज
डॉ. आबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर हैंडीकैप्ड के बायोटेक्नोलॉजी अंतिम वर्ष के छात्र हर्षित सिंह, रजत प्रताप सिंह व हेमंत कुशवाहा ने साल भर के शोध के बाद इस पॉलीथिन को बनाया है। उन्होंने आलू के स्टार्च के साथ साबुन कंपनियों से निकलने वाले वेस्ट प्लास्टिक साइजर के मिश्रण से यह पॉलीथिन बनाई है। इसे बनाने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट, ग्लिसरॉल, सार्बिटॉल, एगसेल, नैनो पार्टिकल के मिश्रण का भी इस्तेमाल किया गया है। इसमें आलू की प्रजाति व उसके आकार पर भी निर्भर करता है। इस स्टार्च से 0.65 लीटर पॉलीथिन सॉल्यूशन बनता है। इसे सुखाकर पॉलीथिन तैयार की गई है, जिसका वजन करीब 300 ग्राम के आसपास है। उनकी इस रिसर्च को उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने अनुदानित किया है। इंस्टीट्यूट की बायोटेक्नोलॉजी प्रयोगशाला में पॉलीथिन का प्रयोग सफल होने के बाद अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी की जा रही है।
इस तरह होगी ईको फ्रेंडली
छात्रों के गाइड मनीष सिंह राजपूत ने बताया कि इस पॉलीथिन को इस्तेमाल करने के बाद मिट्टी में दबा दिया जाएगा। यह पहले दिन से ही गलना शुरू हो जाती है। 28 दिन में दस फीसद गल जाती है। इसे पूरा गलने में 280 दिन का समय लगेगा। इस समय अंतराल में यह पॉलीथिन पूरी तरह मिट्टी में मिल जाती है। अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी है। सड़े आलू को हो सकेगा इस्तेमाल सड़े गले आलू के स्टार्च से भी यह पॉलीथिन बनाई जा सकती है। इससे आलू सडऩे के कारण भी पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा।
एक साल में बाजार में दिखेगी पॉलीथिन
एक साल में आ जाएगी बाजार में बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष मनीष सिंह राजपूत ने बताया कि ईको पॉलीथिन को एक साल के अंदर बाजार में लाने की तैयारी है। आम आदमी इसका इस्तेमाल अगले वर्ष तक कर सकेंगे। खास प्रजातियों में अधिक स्टार्च इस पॉलीथिन को बनाने के लिए आलू की खास किस्में ली गई हैं। इसके पीछे उनमें स्टार्च की मात्रा का अधिक पाया जाना है।
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