Dussehra Special: कानपुर में है रावण का मंदिर, वर्ष में एक बार विजयदशमी पर कपाट खुलने पर होती हैं दशानन की पूजा

कानपुर शहर के शिवाला में शक्ति के प्रहरी के रूप में विराजमान दशानन के मंदिर में विजयदशमी को कपाट खुलने पर ज्ञान और पराक्रम प्राप्ति की इच्छा में भक्तों का तांता लगता है और दर्शन-पूजन करते हैं ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 06:55 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 01:27 PM (IST)
Dussehra Special: कानपुर में है रावण का मंदिर, वर्ष में एक बार विजयदशमी पर कपाट खुलने पर होती हैं दशानन की पूजा
कानपुर में साल में एक बार खुलता है रावण का मंदिर।

कानपुर, जेएनएन। जब असत्य पर सत्य की जीत का उत्साह देश के कोने-कोने में दशानन का पुतला दहन करने में दिखता है, तब शहर के शिवाला स्थित दशानन मंदिर में पराक्रम और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्तों का तांता लगता है। विजयदशमी पर ही मंदिर के कपाट खुलते हैं।

शक्ति के प्रहरी के रूप में हैं विराजमान

कानपुर के शिवाला में दशानन शक्ति के प्रहरी के रूप में विराजमान हैं। विजयदशमी को सुबह मंदिर में प्रतिमा का श्रृंगार-पूजन कर कपाट खोले जाते हैं। शाम को आरती उतारी जाती है। यह कपाट साल में सिर्फ एक बार दशहरा के दिन ही खुलते हैं। मां भक्त मंडल के संयोजक केके तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद प्रसाद शुक्ल ने मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण का मंदिर निर्मित कराया था।

दशानन की आरती के समय होते हैं नीलकंठ के दर्शन

मान्यता है कि दशानन मंदिर मे दशहरा के दिन लंकाधिराज रावण की आरती के समय नीलकंठ के दर्शन श्रद्धालुओं को मिलते हैं। महिलाएं दशानन की प्रतिमा के करीब सरसों के तेल का दीया और तरोई के फूल अॢपत कर पुत्र की दीर्घायु व सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भक्त दशानन से विद्या और ताकत का वर मांगते हैं। अहंकार न करने का भी संदेश रावण प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था, लेकिन उसे खुद के पराक्रम का घमंड भी आ गया था। मान्यता है कि मंदिर में दशानन के दर्शन करते समय भक्तों को अहंकार नहीं करने की सीख भी मिलती है, क्योंकि ज्ञानी होने के बाद भी अहंकार करने से ही रावण का पूरा परिवार मिट गया था।

भक्तों ने सरसों का तेल और तरोई का पुष्प किया अर्पित

शिवाला स्थित दशानन मंदिर का पट रविवार की सुबह खुला तो विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया। रविवार को प्रातः मंदिर सेवक ने मंदिर के पट खोले तो भक्तों ने साफ सफाई करके दशानन की प्रतिमा को दूध, दही गंगाजल से स्नान कराया। इसके बाद विभिन्न प्रकार के पुष्पों से मंदिर को सजाया गया और आरती उतारी गई। भक्त मंडल के संयोजक केके तिवारी ने बताया कि संक्रमण के चलते इस बार आरती में सीमित संख्या में ही भक्त शामिल हुए। महिलाओं ने मंदिर में सरसों के तेल का दीप जलाकर सुख समृद्धि की कामना की और पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान और शक्ति की कामना की।

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