Dussehra 2021: कानपुर की ऐतिहासिक रामलीला का आपातकाल कनेक्शन, जानिए - बंदिशों के बीच कैसे मिली अनुमति

Duseehra Celebration 2021 रामायण काल की याद दिलाने वाली किदवई नगर एच ब्लाक की राम लीला की प्रसिद्धि क्षेत्र ही नहीं अपितु आसपास के कई गांवों तक है। यहां प्रभु राम की लीला के शुभारंभ का इतिहास भी रोमांच से भरा है।

By Shaswat GuptaEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 01:40 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 05:33 PM (IST)
Dussehra 2021: कानपुर की ऐतिहासिक रामलीला का आपातकाल कनेक्शन, जानिए - बंदिशों के बीच कैसे मिली अनुमति
किदवई नगर में रामलीला मंचन के दौरान भगवान राम व लक्ष्मण को वन न जाने के लिए मनाते अयोध्यावासी।

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। Duseehra Celebration 2021  भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी।। रामचरित मानस के ये छंद जब वातावरण में गूंजते हैं और प्रभु राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की किलकारी गूंजती है तो हर मन आनंद से भाव-विभाेर हो उठता है। यह मनोहारी दृश्य एच ब्लाक किदवई नगर में आयोजित रामलीला के होता है, लेकिन वहां मौजूद हर श्रद्धालु के चेहरे पर जो खुशी के भाव होते हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है यह किसी रामलीला का मंचन नहीं बल्कि सचमुच अयोध्या में श्रीराम का जन्म हुआ हो और रानियों के साथ ही पूरी प्रजा खुशियों के सागर में गोते लगा रही हो। वैसे तो यह रामलीला आपातकाल के समय में शुरू हुई थी, लेकिन यहां के मंच पर होने वाली लीला का मंचन देखकर सभी त्रेता युग में प्रभु के जन्म पर कैसे अयोध्यावासी खुश हुए होंगे इसकी कल्पना मात्र से रोमांचित हो उठते हैं।

भारतीय जनजीवन के रोम-रोम में श्रीराम बसे हैं। भगवान राम के अनुकरणीय, उदात्त चरित्र के संदेश को प्रतिवर्ष पुनर्जीवन राम की लीला प्रदान करती है। रामायण काल की याद दिलाने वाली किदवई नगर एच ब्लाक की राम लीला की प्रसिद्धि क्षेत्र ही नहीं, अपितु आसपास के कई गांवों तक है। यहां प्रभु राम की लीला के शुभारंभ का इतिहास भी रोमांच से भरा है। बात सन 1975 की है, जब देश भर में इमरजेंसी लागू थी। बगैर सरकार की अनुमति के कोई सार्वजनिक आयोजन किए नहीं जा सकते थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में क्षेत्र के कुछ सभ्रांत व्यक्तियों ने रामलीला के मंचन का निर्णय लिया। हालांकि उस समय आयोजकों को इसके लिए तमाम झंझावतों से गुजरना पड़ा। बावजूद इसके हार नहीं मानी। मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला के जन-जन को दर्शन कराने के दृढ़ संकल्प को देखते हुए प्रशासन को भी झुकना पड़ा। आयोजकों की जीजीविषा ही थी कि वह मथुरा एवं चित्रकूट से कलाकारों को बुलाने में भी कामयाब रहे।

रोमांच उत्पन्न करते हैं प्रसंग: सीता स्वयंवर में जब रावण शिव धनुष को उठाने के लिए बढ़ते हैं तो दहाड़ते हुए बाणासुर मंच पर प्रवेश करते हैं। रावण को रोकने का प्रयास करते हैं। इस दौरान रावण-बाणासुर वाक् युद्ध होता है। दहाड़ते रावण-बाणासुर के संवाद को देखकर दर्शक रोमांच से भर उठते हैं। स्वयंवर में ही जब प्रभु श्रीराम धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हैं और धनुष टूट जाता है। जानकी जी वरमाला उनके गले में डाल देती हैं, हर किसी के चेहर पर अपार खुशी का संचार होता है, लेकिन जैसे ही भगवान परशुराम राज दरबार में प्रवेश करते हैं। उनकी गर्जना सुन दर्शक भी कुछ पल के लिए सहम जाते हैं। यहां की लीला का आकर्षण का केंद्र सीता स्वयंवर ही होता है।

इस बार दो दिन की रामलीला: कोरोना काल की वजह से इस बार आयोजकों ने सिर्फ दो दिन के लिए ही रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। शुरूआत भी दो दिन से हुई थी, जो बाद में बढ़ाकर सात दिन की कर दी गई।

45 वर्ष पूरे कर चुकी रामलीला: श्री नागरिक रामलीला कमेटी की स्थापना सन 1975 में क्षेत्र के कुछ सभ्रांत नागरिकों ने बुजुर्गाें की प्रेरणा एवं जनमानस में आध्यात्मिक भाव भरने के उद्देश्य से की थी। उसमें मुख्य रूप से मुन्नीलाल शुक्ल, ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी (ललुआ बाबा), प्रताप नारायण बाजपेयी, ठाकुर छोटे सिंह, सूर्यनारायण शुक्ल एवं देवीप्रसाद पांडेय व अन्य सहयोगियों ने मिलकर की थी।

पहले रोका, फिर प्रदान की अनुमति: रामलीला शुरू करने के समय देशभर में इमरजेंसी लगी थी। इस वजह से अनुमति नहीं मिल रही थी। ऐसे में कमेटी ने बिना इजाजत के ही रामलीला का मंचन करने का निर्णय ले लिया। फलस्वरूप कमेटी के सदस्यों को प्रशासन द्वारा हिरासत में लिया गया। सभी को थाने में बैठा लिया गया। थाने में कमेटी के पदाधिकारियों व प्रशासन के बीच बातचीत शुरू हुई। कमेटी के सदस्यों के हठ के आगे प्रशासन को झुकना पड़ और रामलीला की अनुमति प्रशासन कर दी गई। शुरुआत में दो दिन का आयोजन मदन मोहन स्कूल के मैदान में किया गया।

कुछ खास बातें:  शुभारंभ : वर्ष 1975 शुरुआत में खर्च : 3000 रुपये बजट बढ़ता गया : छह लाख रुपये

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