बेटा हो सके तो ऑक्सीजन सिलिंडर दिला दो... नहीं तो मैं अपने पिता को खो दूंगा
दरवाजे पर शहबाज और उनके दोस्त ऑक्सीजन सिलिंडर के साथ खड़े थे। रोहित ने उन्हेंं घर के अंदर बुलाया तो उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि हमे आपकी भी चिंता है और अपनी भी। खैर रोहित को उनके पिताजी के लिए ऑक्सीजन मिल चुकी थी।
कानपुर, जेएनएन। जाजमऊ के रोहित तिवारी प्रशासन के हर जरूरी नंबर पर कॉल कर चुके थे। अव्वल तो फोन ही नहीं उठे और जिन्होंने फोन उठाए, मदद करने में असमर्थता जता दी। जैसे तैसे किसी पड़ोसी ने रोहित को जाजमऊ की एक संस्था का नंबर दिया। फोन करते ही संस्था के वालेंटियर्स शहबाज खान बोले कहिए बाबूजी हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं। यह सुनते ही उनकी टूटती उम्मीद ने बल पकड़ा। बोले क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं। शहबाज का जवाब हां में था। रोहित बोले मेरे पिताजी की सांस उपर नीचे हो रही है। ऑक्सीजन का स्तर अचानक गिर गया। नापने पर यह 74 दिखा रहा है। अस्पताल में जगह नहीं मिली। बेटा हो सके तो ऑक्सीजन सिलिंडर दिला दो। नहीं तो मैं अपने पिता को खो दूंगा।
इतना सुनते ही शहबाज बोले आप कुछ देर इंतजार करिए। इस दौरान उनका मोबाइल फोन नंबर और पता नोट कर लिया। फोन कटते ही रोहित फिर नाउम्मीदी से घिर गए। उन्हेंं लगा यह लड़का भी बातें कर रहा था। ऑक्सीजन होती तो कहता दे रहा हूं। इसने तो इंतजार करने को कहकर फोन काट दिया। सोच विचार करते हुए आधे घंटे बीत चुके थे। इसी दरम्यिान किसी ने दरवाजा खटखटाया। रोहित के बेटे अमन ने दरवाजा खोला और पापा को जोर से आवाज दी।
दरवाजे पर शहबाज और उनके दोस्त ऑक्सीजन सिलिंडर के साथ खड़े थे। रोहित ने उन्हेंं घर के अंदर बुलाया तो उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि हमे आपकी भी चिंता है और अपनी भी। खैर रोहित को उनके पिताजी के लिए ऑक्सीजन मिल चुकी थी। दूसरे दिन एक दोस्त की मदद से रोहित ने पिता को निजी नॄसग होम में भर्ती करा दिया। पिता की जिंदगी बचाने के बाद रोहित ने अपने बेटे अमन को भी मदद के काम में लगा दिया है। अब अमन भी शहबाज की टीम का एक हिस्सा हैं। ऑक्सीजन सिलिंडर की लाइन में वह भी आठ से दस घंटे खड़े होकर किसी जरूरतमंद के लिए ऑक्सीजन का जुगाड़ करने में लग गया है।