नोएडा में लक्ष्मी कॉटसिन मिल की नीलामी के बाद फतेहपुर के श्रमिकों की जगी आस, तीन साल से हैं बेराेजगार
टेक्सटाइल के क्षेत्र में देश में सिक्का जमाने वाली इंडस्ट्री लक्ष्मी कॉटसिन की चार यूनिटों की स्थापना वर्ष 2007 हुई थी। काॅटन की बेडशीट के साथ शूटिंग सर्टिंग तौलिया बनाने का कार्य बड़े स्तर पर किया जाता था।
फतेहपुर, जेएनएन। एक दशक तक औद्योगिक क्षेत्र की शान रही लक्ष्मी कॉटसिन मिल से जिले के पांच हजार से अधिक परिवारों की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। लगातार होने वाले नुकसान के कारण मिल यूं तो तीन वर्ष से बंद चल रही है, लेकिन श्रमिकों को उम्मीद थी कि शायद मिल फिर चालू होगी। औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित टेक्सटाइल की चार यूनिटों के 35 सौ से अधिक श्रमिक व कर्मियों की ग्रेच्युटी और वेतन का करीब 25 करोड़ का बकाया पड़ा हुआ है। नोएडा में मिल की नीलामी की सूचना के साथ श्रमिकों को यह भरोसा हो रहा है कि शायद मिल चालू हो और उन्हें बकाया के साथ रोजगार मिल जाए।
ऐसी थी लक्ष्मी कॉटसिन मिल: टेक्सटाइल के क्षेत्र में देश में सिक्का जमाने वाली इंडस्ट्री लक्ष्मी कॉटसिन की चार यूनिटों की स्थापना वर्ष 2007 हुई थी। काॅटन की बेडशीट के साथ शूटिंग सर्टिंग, तौलिया बनाने का कार्य बड़े स्तर पर किया जाता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक कंपनी से समझौते के बाद यहां की बनी तौलिया विश्व के पचास से अधिक देशों में जाती थी। मिल में आठ हजार से अधिक कर्मचारी और श्रमिक काम करते थे, इतना ही नहीं अरबों की टर्न ओवर वाली मिल से पूरा औद्योगिक क्षेत्र गुलजार रहता था। मिल के बंद होने से कर्मचारी व श्रमिक रोजगार के लिए परेशान हैं, कंपनी अभी तक 3500 से अधिक कर्मियों का हिसाब तक नहीं किया। इनका ग्रेच्युटी, वेतन और बोनस का तकरीबन 25 करोड़ का बकाया है।
छिन गई सैकड़ों परिवारों रोजी-रोटी: टेक्सटाइल मिल चलने से सौंरा, मलवां, रेवाड़ी और अभयपुर गांव के सैकड़ों परिवारों की आय छिन गई है। मिल में काम करने वाले हजारों श्रमिकों का बसेरा होने से लोग किराए में कमरा देकर आय हासिल करते थे, इतना ही नहीं दूध, आटा, दाल व चावल के साथ दुकान खोल कर जीविकापार्जन करने वाले परिवारों के सामने आर्थिक संकट आ गया है।
सुनिए कर्मचारियों का दर्द