Coronavirus In Kanpur: ऑक्सीजन प्लांट के ध्वस्त सिस्टम से मरीजों की जिंदगी पर संकट

कानपुर में ऑक्सीजन प्लांट के बाहर 10 से 12 घंटे सिलिंडर रीफिलिंग के इंतजार में अस्पतालों की गाडिय़ां खड़ी रहती हैं। अस्पताल संचालकाें ने कहा कि ऐसा सिस्टम बनाया जाए कि एक जगह भीड़ हो तो दूसरी जगह भेजा जाए।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 11:58 AM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 11:58 AM (IST)
Coronavirus In Kanpur: ऑक्सीजन प्लांट के ध्वस्त सिस्टम से मरीजों की जिंदगी पर संकट
ऑक्सीजन सिलिंडर वितरण में अव्यवस्था का आलम।

कानपुर, जेएनएन। ऑक्सीजन प्लांट की अव्यवस्थाओं से अस्पताल में भर्ती मरीजों की जान पर बन रही है। कुछ घंटे की ऑक्सीजन अस्पताल में होती है और बाकी सिलिंडर प्लांट जा चुके होते हैं। ऐसे में अस्पताल प्रबंधन के लिए एक-एक मिनट काटना मुश्किल हो जाता है। कई बार तो अस्पताल प्रबंधन के लोग प्लांट के लोगों से गिड़गिड़ाने की स्थिति में आ जाते हैं।

अस्पताल संचालकों के मुताबिक कभी सोचा नहीं था कि ऑक्सीजन की इतनी जरूरत भी पड़ेगी। इसलिए सिलिंडर भी अस्पतालों में उतने ही हैं जितनी जरूरत पड़ती थी। अब तो दिन रात हर मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत है। जो सिङ्क्षलडर थे, उनसे ही काम चलाना पड़ रहा है। सभी अस्पतालों का प्लांट तय है कि किसे कहां से ऑक्सीजन लेना है। अस्पतालों से गए सिलिंडर भरवाने में कभी-कभी 10 से 12 घंटे भी लग जाते हैं।

ग्रेस हास्पिटल के संचालक डॉ. विकास शुक्ला के मुताबिक कोई ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए जिसमें अगर कहीं एक प्लांट पर भीड़ ज्यादा है और दूसरे पर कम तो उन्हें बता दिया जाए कि वे दूसरे प्लांट से जाकर ऑक्सीजन ले लें। ऑनलाइन बुङ्क्षकग की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। ऑक्सीजन की जरूरत सभी को है लेकिन सिङ्क्षलडर भी सीमित हैं। बहुत से लोगों ने अपने स्वजनों के लिए ऑक्सीजन भरवा कर रख लिए जिसकी वजह से सिङ्क्षलडर की नियमित चक्र खत्म हो गया है। जब तक ऑक्सीजन भरवाकर गाड़ी वापस नहीं आ जाती, सांसें गले में अटकी रहती है।

वहीं दूसरी ओर नॉन कोविड अस्पताल के संचालक राहुल डे के मुताबिक कोरोना के इस काल में लोग भूल सा गए हैं कि दूसरी भी बीमारियां होती हैं और उसके लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है। एक ही प्लांट से कोविड और नॉन कोविड दोनों को सिङ्क्षलडर दे रहे हैं। कोविड को पहले सिङ्क्षलडर दिए जाते हैं, इसकी वजह से नॉन कोविड अस्पताल से गई गाड़ी को अक्सर 12 घंटे से भी ज्यादा खड़ा रहना पड़ता है। इससे अच्छा है कि किसी एक प्लांट को नॉन कोविड के लिए कर दिया जाए। कम से कम उनके मरीजों को संकट नहीं होगा।

अस्पतालों और घरों में इलाज करा रहे लोगों को समय से ऑक्सीजन देने की व्यवस्था की गई है। अगर कहीं कोई सुधार की जरूरत है तो उसे जरूर ठीक किया जाएगा। -अतुल कुमार, अपर जिलाधिकारी नगर।
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