किसानों को पराली जलाने के नुकसान बता रहे विशेषज्ञ, कैसे कम हो जाती खेत की उर्वरा शक्ति
पराली जलाने से होने वाले नुकसान से सीएसए के विशेषज्ञों ने किसानों को जागरूक करना शुरू किया है। उनका कहना है कि आग लगने पर गर्मी की अधिकता से मिट्टी के अंदर के जीवाणु मर जाते हैं और उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचता है।
कानपुर, जेएनएन। पराली और अन्य कृषि अवशेष को जलाने से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। यह स्थिति सर्दियों के समय ज्यादा रहती है, जिससे हालात भयावह हो जाते हैं। कोहरे के साथ मिलकर दूषित गैसें स्माग का रूप ले लेता है। इसका प्रभाव कई दिनों तक शहर में रह सकता है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के विशेषज्ञ अपने तरीकों से किसानों को जागरूक कर रहे हैं।
मृदा वैज्ञानिक डा. खलील खान ने बताया कि धान की फसल के अवशेष (पराली) जाने से मिट्टी के तापमान में वृद्धि हो जाती है। उसके भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत असर पड़ता है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होते हैं, जिसके कारण जीवांश के अच्छी प्रकार से सड़ने में कठिनाई होती है। पौधे जीवांश से ही पोषक तत्व लेते हैं। यह स्थिति फसलों के उत्पादन में गिरावट का कारण बनती है। फसलों के अवशेष जलाने से वातावरण के साथ ही पशुओं के चारे की व्यवस्था में समस्या आती है। कृषि अवशेषों को जलाने से अन्य फसलों और घरों में भी आग लगने की खतरा बना रहता है।
वायु प्रदूषण से अस्थमा और एलर्जी जैसी कई प्रकार की घातक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। किसान फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट खाद बनाकर प्रयोग करें। इससे खेत की उर्वरा शक्ति के साथ ही भूमि में लाभदायक जीवाणु की संख्या में भी वृद्धि होगी। मृदा के भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होगा, जिससे भूमि जल धारण क्षमता एवं वायु संचार में वृद्धि होती है । फसल अवशेषों के प्रबंधन करने से खरपतवार कम होते हैं। जल वाष्प उत्सर्जन भी कम होता है। सिंचाई जल की उपयोगिता बढ़ती है। डा. खान ने कहा कि फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर किसान भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
जीवांश कार्बन में होगी बढ़ोतरी : कटाई के बाद फसलों के अवशेष प्रबंधन करना चाहिए। आधुनिक प्रमुख कृषि यंत्र जैसे मल्चर,सुपर सीडर, पैडी स्ट्रा आदि से फसल अवशेषों को खेत में दबा दें, जिससे मृदा में जीवांश कार्बन की बढ़ोतरी होगी। फसल अवशेष खाद का कार्य करेगी। धान के पुआल को खेत में फैला कर डी कंपोजर का प्रयोग करते हुए आठ से 10 दिन में सड़ जाएगी। खेत में खाद का काम करेगी, जिससे मृदा में सारे पोषक तत्व मिल सकेंगे। अगली फसल गुणवत्ता युक्त प्राप्त होने का जरिया बनेगा।