Coronavirus Kanpur News: होम आइसोलेशन में संभलकर लें स्टेरॉयड्स, कहीं मुसीबत न बन जाए इस्तेमाल
स्टेरॉयड्स के इस्तेमाल से कोरोना में राहत मिल रही है लेकिन बाद में कई तरह की बीमारियां पनप रही हैं। होम आइसोलेशन में डॉक्टर के परामर्श के बिना स्टेरॉयड्स का सेवन करना मुसीबत से भरा हो सकता है।
कानपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमितों के इलाज की नई गाइडलाइन में स्टेरॉयड्स को कारगर माना गया है। ये रेमडेसिविर और फेबीफ्लू की तरह असरदार हैं, लेकिन इनके साइडइफेक्ट भी बहुत हैं। इसके प्रयोग से पेट में जलन, एसिडिटी, अल्सर का खतरा बढ़ जाता है। फंगल इंफेक्शन, मोतियाबिंद, डायबिटीज, लिवर में सूजन जैसी दिक्कतें भी बढऩे लगती हैं। इसीलिए डॉक्टरों के परामर्श के बाद ही स्टेरॉयड दवाएं लेनी चाहिए। कोविड हॉस्पिटल में तो डॉक्टर थोड़ी एहतियात बरत रहे हैैं लेकिन होम आइसोलेशन में रह रहे लोग खुद ही इनका इस्तेमाल कर ले रहे हैैं जो बड़ी मुसीबत बन सकता है।
कोरोना संक्रमण में डेक्सामिथेसोन, मिथाइल प्रीडिनिसोलोन और कॉर्टिसोन जैसे स्टेरॉयड्स के इंजेक्शन और दवाएं संक्रमण पर कारगर साबित हो रही हैं। यह ऑक्सीजन लेवल ज्यादा गिरने नहीं देती हैं। एम्स नई दिल्ली के डॉक्टरों के शोध के बाद इन्हें सभी जगह संक्रमितों पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इनके दुष्प्रभाव कम करने के लिए दूसरी दवाएं भी दी जाती हैं।
हैलट के न्यूरो साइंस कोविड अस्पताल के नोडल अधिकारी प्रो. प्रेम सिंह के मुताबिक स्टेरॉयड्स से मरीजों के पेट में जलन और गैस की समस्या हो जाती है इसीलिए एसिडिटी की दवा साथ दी जाती है। ब्लड प्रेशर और इंसुलिन का स्तर न बढ़े इसके लिए दूसरी दवाएं देना भी जरूरी है। होम आइसोलेशन में दवाएं ले रहे मरीज स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल डॉक्टर से परामर्श के बाद ही करें, नहीं तो ये नुकसानदायक भी हो सकता है। इससे प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने के साथ ब्लडप्रेशर भी बढ़ता है।
ये हो सकती हैं समस्याएं
चेस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के प्रो. सुधीर चौधरी के लंबे समय तक स्टेरॉयड्स लेने या अधिक डोज लेने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
- पेट में अल्सर
- फंगस का संक्रमण होना
- दिमाग में भूलने की दिक्कत
- हड्डियां कमजोर होना
- मोतियाङ्क्षबद की समस्या
- मधुमेह की आशंका
- लिवर की समस्या
- तनाव का स्तर बढऩा
जांच के बाद डोज होती निर्धारित
वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव कक्कड़ के मुताबिक संक्रमित रोगियों को स्टेरॉयड्स की निर्धारित डोज दी जाती है। इसके लिए सीटी स्कैन, डिजिटल एक्सरे और कई तरह की खून की जांच कराना आवश्यक होती है। फेफड़े में निमोनिया का स्तर भी पहले देखा जाता है। इसके बाद ही डॉक्टर निर्धारित करते हैं कि डोज कितनी दी जानी चाहिए।