Coronavirus News: कोविड आइसीयू में मरीजों को इलाज संग दी जा रही हिम्मत की दवा, तब बच रही जान
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के एलएलआर अस्पताल के न्यूरो साइंस सेंटर के कोविड आइसीयू में भर्ती 40 फीसद मरीजों को मानसिक समस्या उत्पन्न हो रही है। अपनों को पास नहीं देखकर मरीज जिंदगी से हार मान बैठते हैं ।
कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। कोरोना वायरस महामारी डेढ़ साल से कहर बरपा रही है। इस बीमारी का संक्रमण एक-दूसरे से फैल रहा है। इसके बचाव के लिए दो गज की दूरी का पालन करने की सलाह दी गई है। इस बीमारी के संक्रमण का दायरा जैसे-जैसे बढऩे लगा। सरकार के स्तर से जनता कफ्र्यू, लॉकडाउन और उसके बाद आंशिक कफ्र्यू लगाया गया। इस अवधि में लोगों का अपनों से भी मिलना जुलना बंद हो गया। ऐसे में सुख-दुख बांटना और साझा करना बंद हो गया। अपनों के बीच बढ़ी शारीरिक के साथ-साथ सामाजिक दूरी ने मन:स्थिति पर असर डाला है। डर और भय का माहौल पैदा हो गया है। ऐसे में संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज तो जीने की उम्मीद छोड़ दें रहे हैं।
Case-1: मेडिकल कालेज के एक अधिकारी की 31 वर्षीय बहू को कोरोना का गंभीर संक्रमण होने पर न्यूरो साइंस सेंटर के कोविड आइसीयू में भर्ती कराई गई थी। कोरोना का संक्रमण होने के बाद से उन्होंने जीवन की उम्मीद छोड़ दी थी। इलाज में भी सहयोग नहीं कर रहीं थीं। डॉक्टरों के लिए उनका इलाज मुश्किल हो गया था। पहले बहुत काउंसिलिंग की, लेकिन वह कुछ सुनने को तैयार नहीं हुईं। ऐसे में उनकी स्थिति लगातार गिरती जा रही थी। फिर मनोरोग विशेषज्ञ से मदद ली। उनकी सलाह पर मरीज के स्वजनों से वीडियो काल पर बात करानी शुरू की। इस कवायद का असर मरीज पर दिखने लगा। इलाज में सहयोग करने से स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। और वह वेंटिलेटर से बाहर आ गईं। अब अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर जा चुकी हैं।
Case-2 : कोरोना संक्रमण होने के बाद 35 वर्षीय युवक न्यूरो साइंस सेंटर के कोविड आइसीयू में भर्ती हुए थे। उनका आक्सीजन लेवल 78 था। उनका आक्सीजन लेवल मेंटेन करने के लिए बाईपैप पर शिफ्ट करना पड़ा, तब जाकर एसपीओटू 95 पर आ सका। अस्पताल में पांच दिन तक भर्ती रहने के बाद मरीज के हाव भाव और व्यवहार में बदलाव होने लगा। वह डिप्रेशन में जाने लगा और उसके अंदर डर पैदा होने लगा। कोरोना की वजह से अपनी मौत तय मानने लगे। इलाज में सहयोग करना छोड़ दिया, आक्सीजन लेना बंद कर दिया। बाईपैप का मास्क हटा दिया। उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। हालत बिगडऩे पर मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क किया। उनकी एक-एक घंटे तक काउंसिलिंग की गई। तब सहयोग करना शुरू किया। उसके बाद स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। अब उन्हें भी अस्पताल से छुट्टी मिल गई है।
क्या कहते हैं चिकित्सक
-संक्रमिण होने के बाद कोविड हास्पिटल में भर्ती होने वाले 40 फीसद मरीज तो ऐसे थे, जो जीने की उम्मीद ही छोड़ चुके थे। ऐसी स्थिति में उनका इलाज बहुत ही मुश्किल था। जब वह कुछ सुनने एवं समझने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में सीनियर डाक्टर उन्हें समझाते थे। इससे भी नहीं बनी तो मनोरोग चिकित्सकों से मदद ली गई। उन्होंने जीने की उम्मीद जगाई। तब जाकर मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार आया। -प्रो. अनिल वर्मा, विभागाध्यक्ष, एनस्थीसिया, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।
-कोरोना काल में अपनों से दूरी बनी है। संक्रमण के बाद मरीज जब कोविड हास्पिटल में भर्ती होते थे। वहां अस्पताल में डाक्टर के सिवाए कोई नहीं होता था। अपनों को सामने न पाकर नकारात्मकता बढऩे लगी थी। वहां भर्ती 40 फीसद गंभीर संक्रमित जीने की उम्मीद छोड़ दे रहे थे। इलाज के दौरान डाक्टरों का सहयोग भी नहीं कर रहे थे। इस स्थिति से कोविड हास्पिटल के डाक्टरों ने अवगत कराया। उनके अनुरोध पर वीडियो काङ्क्षलग के जरिए प्रत्येक मरीज की काउंसिलिंग की गई। दो से तीन सेशन में ही उनकी नकारात्मकता दूर हो गई। उसका नतीजा रहा कि मरीजों की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ। -डाॅ. गणेश शंकर, असिस्टेंट प्रोफेसर, मनोरोग विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।