शंख और शहनाई ने कोरोना से रखा महफूज, फेफड़े ही नहीं बल्कि नाक, कान और गला हुए मजबूत
कानपुर में शंख और शहनाई नियमित बजाने वालों के फेफड़े मजबूत होने की वजह से कोरोना पास नहीं फटक सका। इससे फेफड़ों को ताकत मिलने के साथ ही नाक कान गला और मस्तिष्क की नसें भी मजबूत होती हैं।
कानपुर, [सर्वेश पांडेय]। कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसा कहर बरपाया कि सांसें ही मुश्किल में पड़ गईं। जिनके फेफड़े मजबूत थे, वो इसका मुकाबला कर पाए। दवा, योग के साथ हमारी धार्मिक आस्था यानी शंख बजाना रामबाण बना तो वहीं कुछ लोगों के लिए आय का जरिया शहनाई वादन जीवनदायी हो गया। ये सभी कोरोना से सुरक्षित बचे रहे और अब बेहतर प्रतिरोधक क्षमता के सहारे वह कोरोना के आगे दीवार बनकर खड़े हैं और अपने घर ही नहीं गांवों को भी सुरक्षित किए हैं।
बकौली गांव निवासी 58 वर्षीय पीयूष त्रिपाठी बताते हैं, शंख अक्सर लोग पूजा-पाठ करने के दौरान बजाते हैं, लेकिन वह बीते 30 साल से हर रोज पूजन के बाद शंख बजाते आ रहे हैं। उन्हें कभी फेफड़े संबंधित कोई भी बीमारी नहीं हुई। कठेरुआ निवासी 68 वर्षीय श्रीकांत तिवारी, 85 वर्षीय दयाशंकर पांडेय, और 72 वर्षीय ज्ञानेंद्र नाथ पांडेय कहते हैं कि कोरोना काल में फेफड़ों की ताकत बढ़ाने के लिए शंख बजाना वरदान साबित हुआ। शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रही और कोरोना गांव में प्रवेश नहीं कर पाया।
मझावन गांव के 100 शहनाई वादकों और उनके स्वजन के लिए शहनाई जीवनदायिनी है। इसको बजाने में बहुत ताकत लगती है। रोजी-रोटी के साथ-साथ फेफड़े मजबूत कर कोरोना से बचाव कर रही है। बुकिंग न होने पर भी टीम संग रियाज कर फेफड़े मजबूत करते हैं। इससे कोरोना की दोनों लहरों में एक भी शहनाई वादक संक्रमित नहीं हुआ। शहनाई मास्टर सज्जन और रसीद बताते हैं कि यहां के परिवार 270 साल से शहनाई वादन करते आ रहे हैं। यह न सिर्फ फेफड़ों को ताकत देता है, बल्कि नाक, कान, गला और मस्तिष्क की नसें भी मजबूत होती हैं।
दिनचर्या में शामिल है रोज तीन घंटे रियाज
शहनाई मास्टर शकील, सलीम, इस्लाम, आशिफ नबी ने बताया कि कई पूर्वज शहनाई बजाते हुए दीर्घायु रहे। किसी को फेफड़ों संबंधित बीमारी नहीं हुई। गांव में सभी शहनाई वादक कोरोना से बचे हैं। कार्यक्रमों के अलावा हर रोज दो से तीन घंटे रियाज जरूर करते हैं।
जानिए-क्या कहते हैं विशेषज्ञ
शंख और शहनाई बजाना एक एक्सरसाइज की तरह है। नियमित अभ्यास फेफड़े मजबूत करने में सहायक है। लोगों को फेफड़े स्वस्थ रखने के लिए इसकी सलाह भी देते हैं। -डा. अंचला सिंह, फिजीशियन।
-शंख फूंकने से फेफड़ों की कोशिकाओं के कोडर से अशुद्ध गैसें बाहर निकल जाती हैं। अधिक मात्रा में आक्सीजन मिलने से बैक्टीरिया नहीं पनप पाते हैं। - डा. रवींद्र पोरवाल, योगाचार्य एवं आयुर्वेद चिकित्सक।
-वैसे, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हालांकि, फेफड़ों की नियमित एक्सरसाइज होने से लचीलापन रहता है, जिससे वह अधिक आक्सीजन अवशोषित करते हैं। -डा. अवधेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।