कागज में व्यवस्था चाक चौबंद पर हकीकत में त्राहिमाम, सच्चाई बयां कर रहे ये दो केस और तीन सवाल

कानपुर में कोविड को लेकर हर व्यवस्था के लिए अलग अलग नोडल अधिकारी नामित है फिर भी सड़क पर मरीज तड़प रहे हैं। वहीं अस्पतालों में पैसा भी वसूला जा रहा है और तीमारदारों से बाहर से ऑक्सीजन व इंजेक्शन मंगवाए जा रहे हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 09:45 AM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 09:45 AM (IST)
कागज में व्यवस्था चाक चौबंद पर हकीकत में त्राहिमाम, सच्चाई बयां कर रहे ये दो केस और तीन सवाल
लचर व्यवस्था पर घुटने टेक रहा जीवन।

कानपुर, [आलोक शर्मा]। कोविड संक्रमण से प्रभावित हर आदमी अब तक यह अच्छे से जान चुका है कि जिला प्रशासन की कागज पर तैयारी और व्यवस्थागत होमवर्क पूरा है। मरते हुए को ऑक्सीजन सिलिंडर, बीमार को बेड, आइसीयू और वेंटिलेटर, निजी अस्पतालों में मनमानी वसूली रोकने समेत सभी के लिए नोडल अधिकारी तैनात हैं। इस चाक चौबंद तैयारी का खाका मुख्यमंत्री को वीडियो कांफ्रेंसिंग में बताकर प्रशासनिक अफसर अपनी पीठ भी थपथपा चुके हैं। हालांकि कागजों पर प्रशासन के इस दावे का सच वास्तविक हकीकत के आसपास भी नहीं ठहरता।

केस-1 : बर्रा दो निवासी सुशील के पिता 28 अप्रैल को चांदनी नर्सिंग होम में भर्ती हुए थे। अस्पताल का पैकेज तीन दिन का 50 हजार रुपये बताया गया। छह दिन के लिए सुशील ने एक लाख रुपये अस्पताल को दिए। इसके बावजूद सीटी स्कैन और अन्य जांच के लिए करीब 15 हजार रुपये उनसे अलग से लिए गए। इस दौरान उनके पिता को जो ऑक्सीजन दी जाती थी उसका इंतजाम भी परिवार करता था। सुशील को लगा कि अस्पताल सिर्फ पैसे लूट रहा है क्योकि ऑक्सीजन की जरूरत भी लाइन में लगकर पूरी हो रही थी। इसलिए वह पिता को भगवान भरोसे घर ले आए।

केस-2: यशोदा नगर के विजय के पिता मिश्री लाल जायसवाल को अचानक सांस लेने में तकलीफ बढ़ी और कोविड के दूसरे लक्षण दिखे हुए तो स्वजन ने टेस्ट कराया। आरटीपीसीआर रिपोर्ट में पॉजिटिव आए। दो दिन बाद आई रिपोर्ट में उनकी हालत और बिगड़ गई। परेशान विजय ने कानपुर के कोविड कमांड सेंटर, मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1076 पर फोन किया। जैसा कि अक्सर होता है, उन्हें भी मदद की एवज में कई फोन नंबर थमा दिए गए। 30 अप्रैल तक वह फोन नंबरों पर बात और अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे लेकिन बात नहीं बनी। इसी बीच 20 हजार रुपये देकर ब्लैक में सिङ्क्षलडर खरीदा और पिता की सांसों का इंतजाम किया।

व्यवस्था दुरुस्त होने के दावे के बीच खबर में दिए गए दो मामले ही नहीं बल्कि सड़क पर, अस्पतालों की ड्योढ़ी पर ऐसी सैकड़ों बानगी दिख जाएंगी। अस्पतालों के बाहर बेड के लिए गिड़गिड़ाते मरीज, ऑक्सीजन की कमी से बंद होती सांसें, निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मनमानी वसूली यह सब बस एक ही इशारा करते हैं कि कागज में व्यवस्था चाक चौबंद हैं, लेकिन हकीकत में आम आदमी त्राहिमाम कर रहा है। इसलिए जरूरत है कि नोडल अधिकारी कागज से निकलकर जमीन पर उतरें ताकि कागजी व्यवस्था को परवान चढ़ाया जा सके।

इसलिए सिस्टम पर उठ रहे सवाल

प्रशासन के द्वारा बनाई गई व्यवस्था पर कितना और कैसे अमल हो रहा है, इससे हर वह शख्स वाकिफ है जो दुश्वारियों से घिर कर प्रशासन से उम्मीद बांधे रहा, पर अंत में उसे मायूसी ही हाथ आई। प्रशासन की कागजी व्यवस्था की जमीनी पड़ताल की गई तो इसके चाक चौबंद होने पर तमाम सवाल खड़े हो गए।

सवाल-1 : सिविल स्थित अस्पताल के नोडल प्रभारी यशवंत राव बनाए गए हैं। शुक्रवार को जब एक तीमारदार ने इनसे अपने भाई की खराब होती हालत का वास्ता देकर भर्ती कराने की गुहार लगाई तो पहले इन्हें फोन पर आवाज नहीं आई और इन्होंने फोन काट दिया। दोबारा फोन करने पर कोविड कंट्रोल रूम में कॉल करने की सलाह दे दी। बोले, वहीं से मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।

सवाल-2 : स्वरूप नगर स्थित अस्पताल के नोडल अधिकारी पीके सिंह हैं। पड़ताल के क्रम में जब इन्हें 60 वर्षीय महिला की जान बचाने के लिए भर्ती कराने को फोन किया गया तो उनका जवाब स्पष्ट था। न तो बेड है और न ही ऑक्सीजन, आप बताइए कहां भर्ती करा दें। उन्होंने तो यहां तक कहा कि हर दिन इसकी सूचना जिला प्रशासन को देते हैं। बेड और ऑक्सीजन हो तो भर्ती कराने में हमें क्या दिक्कत होगी।

सवाल-3 : फजलगंज स्थित अस्पताल के प्रभारी अजमत उल्लाह अंसारी को बनाया गया है। जब उनसे फोन पर मरीज का ऑक्सीजन लेवल 58 बताकर भर्ती कराने का आग्रह किया गया तो वह बोले वहां बेड खाली नहीं हैं। प्रशासनिक आंकड़ों में दिए गए बेड की सूचना और उनकी सूचना भी भिन्न थी। काफी प्रयास के बाद अस्पताल के उन्होंने दो नंबर दिए और बात करने की सलाह देकर फोन काट दिया।

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