कानुपर का मनोह गांव बन गया नीजर, यहां कोरोना अबतक नहीं कर सका वार
कानपुर में शिवराजपुर ब्लाक के 32 सौ आबादी वाले मनोह गांव में न किसी बुखार खांसी या जुकाम है और न ही कोई अबतक संक्रमण की चपेट में आया है। स्व अनुशासन सूझ-बूझ और धैर्य के साथ ग्रामीण स्वस्थ जिंदगी बिता रहे हैैं।
कानपुर, [नरेश पांडेय (चौबेपुर)]। अनुशासन, सूझ-बूझ और धैर्य हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। शिवराजपुर ब्लाक के सुदूरवर्ती मनोह गांव के लोगों ने कोरोना आपदा के दौर में ये साबित कर दिखाया है। यहां न किसी को बुखार, खांसी और जुकाम है और न ही कोरोना ग्रामीणों पर हमला कर पाया।
दरअसल, गांव के शिक्षित युवा ग्रामीणों की ढाल बने हैैं। वह संक्रमण से बचाव और सुरक्षित रहने के उपाय बताकर उन्हें सजग कर रहे हैं। वहीं ग्रामीण भी सुरक्षा और बचाव के मंत्रों संग कदमताल कर स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी जी रहे हैैं। विकासखंड मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर स्थित इस गांव में करीब 32 सौ लोग रहते हैं। कोरोना संक्रमण गांवों की ओर बढ़ा तो आसपास गांवों में रोजाना हो रही मौतों से यहां ग्रामीणों में घबराहट थी लेकिन यहां के शिक्षित युवाओं की टोली ने हिम्मत बंधाई, डरना मत हम हैैं।
एमबीए शिक्षित प्रधान की अगुआई में बना सुरक्षा घेरा
यहां के ग्राम प्रधान युवा अनुराग मिश्र परास्नातक के साथ एमबीए डिग्रीधारक हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली की एक नामी कंपनी में नौकरी करते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते 2 माह पहले गांव लौटे तो देखा लोग भयभीत थे और काफी लोग बचाव के प्रति जागरूक नही थे। सबसे पहले गांव के शिक्षित युवाओं अमित, शुभम शुक्ला, पशुपतिनाथ, अभिषेक शुक्ला, विमल कुमार, संदीप त्रिवेदी व अनीता को जोड़ा। उन्होंने बुजुर्गों व महिलाओं को संक्रमण से बचाव के लिए जागरूक किया।
उन्हें स्वच्छता के साथ शारीरिक दूरी की महत्ता समझाई। उन्हें मास्क पहनने, समय-समय पर हाथ धोने को प्रेरित किया। घर-घर जाकर लोगों को आरोग्य सेतु एप से जोड़ा और उसके निर्देशों का सख्ती से पालन करने को कहा। संक्रमण से बचाव के लिए गर्म पानी, काढ़ा, गिलोय आदि के सेवन करने के तरीके बताए। गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व हेल्थ सुपरवाइजर हर बुधवार को सभी घरों की मॉनिटङ्क्षरग करती हैं। गांव की नियमित नालियों की सफाई और घरों में सैनिटाइजेशन शुरू के साथ-साथ डीडीटी व कीटनाशक का छिड़काव होता है।
बाहर से आए लोग पंचायत भवन में क्वारंटाइन
युवा बताते हैैं कि गांव में काफी लोग दूसरे शहरों से लौटे। उन्हें कुछ दिन पंचायत भवन में क्वारंटाइन कराया। कोरोना के कोई लक्षण न होने पर ही वह अपने घर गए। रिश्तेदारों की आवाजाही बीते जनवरी से बंद है।
यूं दिखने लगा है बदलाव
अब सुबह-सुबह लोग अपने घरों के सामने साफ सफाई करते दिखते हैं। डीआरडीए के परियोजना निदेशक केके पांडेय भी इस जागरुकता के कायल हैं। उन्होंने पंचायत सचिव गिरीश प्रजापति को निर्देश दिए हैैं कि अन्य गांवों में भी मनोह का उदाहरण देकर जागरूक करें।
दुकानदार सैनिटाइज करके देते सामान
प्रधान बताते हैैं कि गांव में दुकानदार शहर से सामान लाते हैैं तो पहले सैनिटाइज करते हैैं। इसी वजह से गांव अब तक सुरक्षित है। अब गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनवाना प्राथमिकता हैं।