वर्तमान परिदृश्य में सड़क से गायब हुए 'आंदोलनजीवी' नेता, ऑक्सीजन और बेड की समस्याओं से अकेले जूझ रही जनता
सभी जानते हैं कि कोविड की बीमारी घातक है। ऐसे में विरोध करने निकले तो उन्हें आम आदमी के बीच जाना होगा। अस्पताल कब्रगाह या फिर शमशान घाट तक जाना पड़ सकता है। समय ऐसा है कि बाहर निकले तो कब कोरोना की चपेट में आएंगे कोई नहीं जानता है।
कानपुर, जेएनएन। केंद्र और प्रदेश सरकार के हर कदम और हर निर्णय पर पुरजोर विरोध करने वाला आंदोलनजीवी विपक्ष आज जनता की समस्याओं के सामने दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड़ रहा। आम आदमी ऑक्सीजन के लिए सुबह से शाम तक भटक रहा है। सड़क पर तड़पते मरीज आम बात हो गई है लेकिन विपक्ष है कि खुद कोमा में चला गया है। कोविड संक्रमण के दौरान विपक्षी पार्टियां भी आंदोलन तो दूर कुछ बोलने से भी बच रही हैं।
डीजल पेट्रोल, महंगाई या फिर जीएसटी। किसी भी मुद्दे पर आम आदमी को होने वाली छोटी सी समस्या विपक्ष के लिए राजनीतिक रोटी सेंकने का बड़ा तवा बन जाती थीं, लेकिन आज जब अस्पताल में बेड नहीं है, ऑक्सीजन के लिए मारामारी मची है, शमशान शवों से भरे जा रहे हैं बावजूद इसके सरकारी तंत्र के खिलाफ विपक्षी पार्टियां भी शांति बनाए हुए हैं। कोविड को लेकर आम आदमी को राहत दिलाने के ध्वस्त सरकारी दावों और सिस्टम पर कांग्रेस, सपा और बसपा बोलने को तैयार नहीं है और न ही उनके नेता सवाल करने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं। जानकार इसके पीछे का कारण बताते हैं कि कोविड महामारी की गंभीरता को हर आदमी समझ रहा है। इसमें विपक्षी पार्टियों के वह नेता भी हैं जो कभी सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। दरअसल सभी जानते हैं कि कोविड की बीमारी घातक है। ऐसे में विरोध करने निकले तो उन्हें आम आदमी के बीच जाना होगा। अस्पताल, कब्रगाह या फिर शमशान घाट तक जाना पड़ सकता है। चूंकि समय ऐसा है कि बाहर निकले तो कब कोरोना की चपेट में आएंगे कोई नहीं जानता है। ऐसे में यह नेता भी खुद को आम आदमी की समस्याओं से फिलहाल दूर ही रखे हैं।