नियंत्रित मन व कुशल कर्म ही प्रसन्नता की कुंजी: जगद्गुरू रामभद्राचार्य

प्रसन्नता ही भगवान है जबकि उदासी जीव का लक्षण। अगर प्रसन्नता तलाशनी है तो अपने कार्य में तलाशिए।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Feb 2021 01:54 AM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 01:54 AM (IST)
नियंत्रित मन व कुशल कर्म ही प्रसन्नता की कुंजी: जगद्गुरू रामभद्राचार्य
नियंत्रित मन व कुशल कर्म ही प्रसन्नता की कुंजी: जगद्गुरू रामभद्राचार्य

जागरण संवाददाता, कानपुर: प्रसन्नता ही भगवान है, जबकि उदासी जीव का लक्षण। अगर प्रसन्नता तलाशनी है तो अपने कार्य में तलाशिए, क्योंकि भौतिक वस्तुओं से प्राप्त प्रसन्नता क्षण भंगुर होती है। नियंत्रित मन के साथ किसी कार्य को कुशलता से किया जाए तो उस प्रसन्नता को कोई मिटा नहीं सकता। यह बात जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में 'हैपीनेस सेंटर' के उद्घाटन समारोह में कही।

'सहज प्रसन्नता के उपाय' विषय पर आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा कि योग अभ्यास तभी सार्थक हैं जब कर्मो में कुशलता हो। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि कर्म का संबंध श्रम से होता है। अगर हम एकाग्रता के साथ कोई भी कर्म करते हैं तो उस श्रम के बाद जो नींद आती है वह स्वर्ग से बढ़कर होती है। यही चेहरे की मुस्कान व संतोष का मंत्र है। अपना उदाहरण देते हुए बताया कि जब मैं कॉलेज में पढ़ा करता था, तब परीक्षा समाप्त होने के बाद जो नींद आती थी उसे बताया नहीं जा सकता केवल अहसास किया जा सकता है। कार्यक्रम में कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने शुक्राना, मुस्कुराना व किसी का दिल न दुखाना इन तीन बातों को हैपीनेस का सार बताया। इस मौके पर तुलसीपीठ सेवा न्यास के उत्तराधिकारी रामचंद्र दास, वित्त अधिकारी साधना श्रीवास्तव, डीन एकेडमिक प्रो. संजय स्वर्णकार, कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार यादव, यूआइईटी समन्वयक डॉ. प्रवीण कटियार के अलावा डॉ. संदीप सिंह व डॉ. बृजेश स्वरूप कटियार समेत अन्य शिक्षक व छात्र छात्राएं मौजूद रहे।

अप्रसन्नता का बड़ी वजह है मोबाइल

जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने कहा कि मोबाइल का बढ़ता चलन अप्रसन्नता की बड़ी वजह है। कई छात्र रात में दो बजे तक मोबाइल चलाते हैं और सुबह 10 बजे तक सोते हैं। अगर वह निष्ठा से काम करें तो मोबाइल का यह शौक छूट जाएगा।

लबालब हो गया लव, बना दुखों का कारण :

पहले लबालब हुआ करता था अब केवल लव रह गया है। दुखों का यह भी एक बड़ा कारण है। उनकी नजर में इसका पहला अक्षर एल का अर्थ है 'लेक ऑफ टीअर्स' यानी 'आंसुओं की झील', ओ का अर्थ है 'ओशियन ऑफ सॉरो' यानी 'दुखों का सागर', वी का मतलब है 'वेली ऑफ डेथ' यानी 'मौत की घाट' व ई का अर्थ है 'एंड ऑफ लाइफ' यानी जीवन का अंत। यही कारण है कि 95 फीसद बच्चों के चेहरे पर 12 बजे रहते हैं। जीवन को उन्नत बनाने के लिए अपने दृढ़ निश्चय से इस लव नाम के रोग से मुक्ति पानी होगी।

यह भी कहा:

-संस्कृत में हैपीनेस के दो शब्द हैं प्रसन्नता व प्रसाद

-दुख का कारण ईगो भी है। जहां ईगो होता है वहां भगवान नहीें रहते

-अहम का जितना पोषण किया जाता है उतना अवसाद होता है

-भौतिक सफलताओें के परिणाम प्रसन्नता नहीं होती

-आध्यात्मिक सफलता से प्राप्त आनंद प्रसन्नता है

-दो हजार वर्षों तक देश गुलाम रहा। उस दौरान भारतीय दर्शन को कुचला गया जिसका असर अभी तक है

-भाग्य पर रोना बंद करके सब मिलकर पौरूष का निर्माण करें, प्रसन्नता खुद ब खुद आएगी

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