कानपुर में कोरोना के शिकंजे से निकल फिर चल पड़ा कलक्टरगंज बाजार, पर कुछ शर्तें अभी भी लागू
माल आने की रफ्तार बढ़ जाती है और रात भर माल की ढुलाई चलती रहती है। डेढ़ सौ वर्ष पहले घंटाघर के पास कलक्टरगंज बाजार की स्थापना हुई थी। 1865 से 1872 के बीच कानपुर के डीएम रहे विलियम स्टॄलग ने इस बाजार की स्थापना की थी।
कानपुर, जेएनएन। शहर के हृदय स्थल से सटे कलक्टरगंज बाजार का नाम लेते ही गल्ला, घी, गुड़ और रुई का कारोबार आंखों के सामने उभर आता है। आसपास के थोक बाजारों में सबसे पुराना होने की वजह से यहीं पर ट्रांसपोर्ट भी हैं जो इस क्षेत्र से आसपास के जिलों के लिए दिनभर होने वाली बिक्री के माल को दूसरे शहरों में पहुंचाते हैं। ट्रकों के पहिए खुद बताते हैं कि बाजार की रफ्तार कितनी तेज हो रही है और इस समय कलक्टरगंज क्षेत्र के ट्रांसपोर्टर बहुत व्यस्त हैं। शाम होते ही यहां ट्रांसपोर्ट में माल आने की रफ्तार बढ़ जाती है और रात भर माल की ढुलाई चलती रहती है। डेढ़ सौ वर्ष पहले घंटाघर के पास कलक्टरगंज बाजार की स्थापना हुई थी। 1865 से 1872 के बीच कानपुर के डीएम रहे विलियम स्टॄलग ने इस बाजार की स्थापना की थी। पिछले एक वर्ष में कोरोना की वजह से बाजार में बिक्री की रफ्तार को ब्रेक लगा, लेकिन अब कफ्र्यू खत्म होने के बाद बाजार की रफ्तार सुरक्षा मानकों के साथ फिर से बढऩे लगी है।
ये अपनाए जा रहे सुरक्षा मानक : कलक्टरगंज के व्यापारी कोरोना से बचाव के लिए दुकानों व आढ़तों को नियमित रूप सैनिटाइज करा रहे हैं। इसके अलावा ग्राहकों को सैनिटाइज किया जाता है। दुकान में प्रवेश से पहले थर्मल स्क्रीनिंग से शरीर का तापमान मापा जा रहा है। यह थोक बाजार है और व्यापारियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र से जो फुटकर कारोबारी माल खरीदने आते हैं, वे सुरक्षा मानकों के प्रति लापरवाह रहते हैं। उन्हेंं मास्क के लिए अक्सर टोकना पड़ता है।
आसपास इन जिलों में जाता है माल : कलक्टरगंज से फर्रुखाबाद, कन्नौज, फतेहपुर, इटावा, रायबरेली, औरैया, उन्नाव जिलों में माल जाता है। वहीं बरेली, दिल्ली, हरियाणा से चावल, नौबस्ता गल्ला मंडी से दाल आती है।
व्यापारियों ने कही ये बात
कानपुर किसकी कितनी दुकानें गल्ला : 500 गुड़ : 20 घी : 13 तेल : 15 रुई : 09 बारदाना : 50 ट्रांसपोर्टर : 35 मोबिल आयल : 20 धनिया, सौंफ, मेथी : 25 जीरा : 02 मूंगफली : 25 चाय पत्ती : 10 किराना स्टोर :10