चित्रकूट में कैसे सिकुड़ी मंदाकिनी की जलधारा और क्यों सूख गए कुएं, रिपोर्ट में सामने आया ये सच
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि जंगलों की कटान और पहाड़ों पर लगातार खनन होने से जल स्रोतों पर असर पड़ रहा है। इससे पौराणिक धरोहरों को खतरा बना हुआ है ।
चित्रकूट, [हेमराज कश्यप]। प्रभु श्रीराम की तपोभूमि में जंगलों में पेड़ों की कटान और पहाड़ों पर लगातार खनन से मंदाकिनी नदी का दायरा सिकुड़ गया है। कुएं सूख गए हैं, जबकि कई का जलस्तर नीचे गिरा है। भरतकूप का जलस्तर पांच से छह फीट गिरने के पीछे भी यही वजह है। यह बात मध्यप्रदेश के सतना जिला अंतर्गत स्थित महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डा. घनश्याम गुप्ता की ओर से चित्रकूट के पर्यावरण को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट में सामने आई है।
तीन हजार से घटकर 450 लीटर प्रति सेकेंड बचा जल प्रवाह
भौतिक वादी एवं लालची प्रवृत्ति, तीव्र शहरीकरण, औद्योगिकीकरण व उन्नति की अंधी दौड़ में प्रकृति के बहुमूल्य संसाधन जल, जंगल व जमीन (पहाड़) का चित्रकूट में निर्ममता से दोहन हुआ है। 20 साल पहले मंदाकिनी वाह क्षेत्र में सघन जंगल व पहाड़ थे। नदी का जल प्रवाह लगभग तीन हजार लीटर प्रति सेकेंड था। वर्तमान में यह 300-450 लीटर प्रति सेकेंड है। पूर्व में रात्रि के शांतिकाल में मंदाकिनी के जल प्रवाह की कल-कल की ध्वनि काफी दूर से स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ती थी।
ब्लास्टिंग व खनन से भरतकूप भी प्रभावित
डा. गुप्ता ने बताया कि भरतकूप क्षेत्र में जंगल व पहाड़ों को नष्ट कर दिया गया है। ब्लास्टिंग और अंधाधुंध खनन से इस क्षेत्र में भूजल स्तर तीन से चार मीटर नीचे खिसका है। इसका असर भरतकूप पर भी पड़ा है।
पहाड़ और वनों के संरक्षण से ही बच सकती मंदाकिनी और कुएं
डा. गुप्ता के मुताबिक, चित्रकूट की जीवन रेखा त्रेता कालीन मंदाकिनी व पौराणिक जल स्रोतों का अस्तित्व तभी तक है, जब तक उसके वाह क्षेत्र (बेसिन) में स्थित वनों व पहाड़ों का है। वन वर्षा जल का संचयन करते हैं। पर्वत उसका भंडारण व नदियां आपूर्ति करती हैं। प्राचीनकाल के चित्रकूट में प्रकृति के तीनों घटक सुविकसित थे, तभी महर्षि वाल्मीकि ने प्रभु राम को वनवास काल में निवास के लिए चित्रकूट को उत्तम बताया था। अब लोग इसे नष्ट कर रहे हैं।