Chitrakoot Jail Gangwar का सच, अंशु को खुला छोड़कर नाश्ता करने चले गए थे जेलर और अधीक्षक

चित्रकूट की जेल में बंद कुख्यात अंशू और मेराज का ठिकाना चार ताले वाली हाई सिक्योरिटी वाली बैरक थी। जेलर और अधीक्षक के जाने के बाद अंशू अपने मंसूबों में कामयाब हुआ। गोलियों की आवाज सुनकर जेल अफसर दौड़कर अाए थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 09:51 PM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 09:51 PM (IST)
Chitrakoot Jail Gangwar का सच, अंशु को खुला छोड़कर नाश्ता करने चले गए थे जेलर और अधीक्षक
चित्रकूट जेल की घटना से सामने आई लापरवाही।

चित्रकूट, जेएनएन। गैंगवार में जिला जेल के अफसरों की लापरवाही परत दर परत खुलकर सामने आने लगी है। मुख्तार गैंग के शार्प शूटर को जेलर और जेल अधीक्षक खुला छोड़ कर खुद नाश्ता करने चले गए थे। दोनों अफसर तब लौटे जब अंशु कैराना पलायन के मुख्य आरोपित मुकीम काला को मार चुका था और मेराज अली के गोली दाग रहा था।

जेल सूत्रों के मुताबिक, हाई सिक्योरिटी बैरक के प्रभारी जेलर महेंद्र पाल ने बैरक को सुबह करीब साढ़े पांच बजे खोला था। फिर जेल के कार्यों में लग गए थे। करीब सात बजे जेल अधीक्षक श्रीप्रकाश त्रिपाठी भी अपनी ड्यूटी में पहुंच गए थे। इसी दरम्यान करीब आठ बजे जेलर महेंद्र पाल बैरक में अंशु को छोड़कर अपने सरकारी आवास में स्नान और नाश्ता करने चले गए थे।

साढ़े नौ बजे जेल अधीक्षक त्रिपाठी भी आवास में चले गए। दोनों अफसरों के जाने के बाद अंशु पूरे इत्मीनान के साथ अपनी बैरक से निकलकर नाश्ते को हाल में आया। यहीं मेराज ने कुछ बताया और उसने मुकीम काला की अस्थायी बैरक में पहुंचकर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी थीं। गोलियों की आवाज सुनकर जेलर व जेल अधीक्षक दौड़कर पहुंचे, लेकिन तब तक वह दोनों का काम तमाम कर चुका था। जेल प्रशासन की एक रिपोर्ट में भी इसका जिक्र है।

हाई सिक्योरिटी बैरक में बाहर का कुछ नहीं दिखता

हाई सिक्योरिटी बैरक की सुरक्षा चार तालों से होती है। इस बिना नंबर की बैरक की अलग-अलग सेल में अंशु दीक्षित व मेराज अली बंद थे। यह बैरक ऐसी होती है, जिसमें चारों सेल में बंद कैदी को सिर्फ दीवार ही नजर आती है। रोशनी के लिए ऊपर जाल होता है। हालांकि, उसके ऊपर भी छत दिखती है।

मुकीम और मेराज से हर हफ्ते आते थे मिलने वाले

जिला जेल में मारे गए शातिर अपराधी मुकीम काला व मेराज अली से मिलने वाले काफी आते थे, लेकिन अंशु से बहुत कम लोग मिलते थे। जेल सूत्र बताते हैं, अंशु की माह में एक दो मिलाई ही होती थी। वहीं, मुकीम व मेराज से मिलने वाले सप्ताह में कम से कम दो लोग होते थे। कोरोना के बाद भी गुपचुप तरीके से मिलाई करा दी जाती थी।

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