Karauli Ashram Kanpur: पितरों की मुक्ति के लिए विदेशी कर रहे हवन-पूजन, वैदिक दर्शन संग जान रहे भारतीय संस्कृति

कानपुर के करौली धाम स्थित आश्रम में रहकर चेक गणराजय वासी धार्मिक अनुष्ठान व हवन पूजन में शामिल होकर भारतीय संस्कृति को जान रहे हैं। पुनर्जन्म सिद्धांत को मानकर पितृ मुक्ति हवन और यज्ञ भी करा रहे हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 10:55 AM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 10:55 AM (IST)
Karauli Ashram Kanpur: पितरों की मुक्ति के लिए विदेशी कर रहे हवन-पूजन, वैदिक दर्शन संग जान रहे भारतीय संस्कृति
बिधनू के करौली गांव में विदेशी कर रहे हवन-पूजन।

कानपुर, जेएनएन। भारत की सनातन संस्कृति अपने वैदिक दर्शन से पूरे विश्व को आलोकित कर रही है। वैदिक दर्शन का प्रभाव सात समंदर पार रह रहे लोगों को भी यहां आने पर मजबूर कर रहा है। कानपुर के करौली धाम स्थित आश्रम में चेक गणराज्य से आए 10 लोग वेद व दर्शन के सार को समझकर लाभान्वित हो रहे हैं। 15 दिनों तक यहीं पर रुककर हवन-पूजन व अन्य अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा तृप्त करने और उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। पूर्णिमा के दिन ये लोग गुरुदीक्षा लेंगे।

कानपुर शहर से करीब 10 किमी दूर चकेरी से लगे बिधनू के करौली गांव स्थित ईश्वरीय चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र में वैदिक सनातन संस्कृति के विभिन्न विषयों पर अनुष्ठान व अनुसंधान हो रहे हैं। देश-विदेश से लोग इनका चिकित्सकीय लाभ उठाने व समझने के लिए करौली धाम आते हैं। चेक गणराज्य के अलग-अलग स्थानों से 10 लोग इन दिनों आश्रम में वेद व दर्शन का मर्म समझ रहे हैं। इनमें दो दंपती भी हैं। चेक के प्लम्लोव शहर के डिप्टी मेयर रहे इरी कोचांद्रल ने बताया कि एक माह पहले फोन पर गुरुजी डा.संतोष सिंह भदौरिया से फोन पर बात हुई। उनसे प्रभावित होकर भारतीय विद्या को समझने करौली आ पहुचे।

चेक गणराज्य वासी करौली में भारतीय दर्शन पद्धतियों के अनुयायी बनकर पुनर्जन्म सिद्धांत को भी समझ रहे हैं। अब ये लोग अपने पितरों व पूर्वजों की मुक्ति के लिए हवन-पूजन व आरती कर रहे हैं। करौली धाम में नौ हवन के बाद इनके पूर्वजों-पितरों का मुक्ति अनुष्ठान होगा। परिवार के सदस्यों की स्मृति रोग चिकित्सा कर पूर्णिमा पर गुरुदीक्षा दी जाएगी। इरी कोचांद्रल व पत्नी वेरा के अलावा पावेल कुहलेन, मार्टिना कुहनेलोवा, फ्रेंटिसेक फिलौस, जारोसलाव पौलेनिक, यान कोचांद्रल, ओंडरे हरुडलिक, पीटर सूया, वाक्लाव क्रेजलिक भी पूजन में लीन हैं।

ईश्वरीय चिकित्सा है क्या

करौली धाम के गुरुजी डा.संतोष सिंह भदौरिया ने बताया कि जीव के कर्मों का भोग समाप्त न हो जाए तब तक उसे मुक्ति नहीं मिलती। बिना मुक्ति के जीव के जीवनकाल के सभी सुख-दु:ख, रोग उनके भाव सूक्ष्म शरीर में संचित रहते हैं। पूर्वजों से जुड़ाव होने के चलते उनके डीएनए से जुड़े जीवित सदस्य भी पूर्वजों के इन भावों से प्रभावित होते हैं। मेडिकल साइंस इसे मनोरोग व वंशानुगत बीमारी बताती है। करौली धाम में विशेष ऊर्जा से उन रोगों को दूर किया जाता है। ईश्वरीय चिकित्सा के लिए पितरों व पूर्वजों की मुक्ति आवश्यक है।

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