बुंदेलखंड मैराथन में चर्चा का केंद्र बनी 56 वर्षीय महिला, साड़ी और चप्पल पहनकर लगाई दौड़, क्षेत्रीय महिलाओं के लिए बनीं रोलमॉडल
मप्र के शिकारपुरा निवासी जानकी ने बुंदेलखंड मैराथन की सात किमी वॉकथान में पाया था तीसरा स्थान। बोलीं-कभी नहीं भूलूंगी मंगलवार को मिला सम्मान फिर मौका मिला तो दौडऩे को तैयार रहूंगी। इस प्रतियोगिता में भले ही 30 किमी दौड़ में मेघालय के अनीश थापा ने परचम फहराया ।
महोबा, [अरविंद अग्रवाल]। हमने जब दौड़ होत देखी तौ हमऊ उनके संगै दौडऩ लगे, जितनी मेहनत हमने दौड़ में करी है उतनी मेहनत तौ हम खेतन में रोज करत हैं...। बुंदेलखंड मैराथन के सात किमी की खुली प्रतियोगिता में साड़ी और चप्पल पहनकर चर्चा का केंद्र बनी जानकी अहिरवार कहती हैं कि मंगलवार का दिन जिंदगी भर याद रहेगा। जितना सम्मान मिला उसने बड़ी खुशी दी, दौड़ते वक्त दूसरों को ट्रैक सूट और जूते पहने देखकर थोड़ी हिचक हुई लेकिन फिर लक्ष्य पाने के जुनून में दौड़ लगा दी। फिर मौका मिला तो दौडऩे को तैयार रहेंगी। उनकी मेहनत के तो लोग पहले ही कायल थे, अब तो बुंदेली महिलाओं व युवतियों के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं। उनका यह हौसला महिलाओं-बेटियों का आत्मविश्वास बढ़ाने वाला है। मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे यूपी के महोबा जिले के आखिरी गांव धवर्रा में बुंदेलखंड मैराथन दौड़ ने यहां खेलों के भविष्य को नया आयाम दिया है। पं.गणेश प्रसाद न्यास द्वारा आयोजित इस प्रतियोगिता में भले ही 30 किमी दौड़ में मेघालय के अनीश थापा ने पहला स्थान पाकर भले ही परचम फहराया लेकिन सभी की नजरों में तो जानकीबाई ही छाई रहीं। दैनिक जागरण ने जानकी से पूछा तो बेलौस उन्होंने अपनी बात रखी।
दूसरी की ड्रेस देख लौटना चाहती थीं
छतरपुर जिले के पोस्ट सुकवां के ग्राम शिकारपुरा निवासी अवधबिहारी अहिरवार की 56 वर्षीय पत्नी जानकी बताती हैं कि मंगलवार को अपने गांव से दो किमी.पैदल चलकर वह नवोदय विद्यालय पहुंचीं। वहां धावकों की ड्रेस देखकर लौटना चाहती थीं लेकिन फिर सोचा कि आई हूं तो क्यों न दौड़ ही लूं। दूसरे प्रतिभागियों को देखे वह दौड़ीं और जब मंजिल पर पहुंची तो देखा कि लोग उसके लिए ताली बजा रहे हैं।
खुशी से फूले नहीं समा रहा परिवार
जानकी के पति अवधबिहारी भूमिहीन हैं और मजदूरी करते हैं। उनके तीन बेटे चतुर्भुज, सोनू व जीतू और एक बेटी है। प्रतियोगिता में उन्हें तीसरा स्थान मिलने पर पूरा परिवार खुशी से फूले नहीं समा रहा है। वह चाहती हैैं कि सरकार परिवार को थोड़ी जमीन दिला दे ताकि जिंदगी की गाड़ी सहजता से चलने लगे।