आज के दिन कलक्टरगंज थाने में क्रांतिकारियों के विस्फोट से दहल गए थे अंग्रेज, पढ़िए- कानपुर की क्रांति गाथा

कानपुर में क्रांतिकारियों ने 18 जनवरी 1943 को डिप्टी एसपी कार्यालय को निशाना बनाया था। इससे पहले नवाबगंज थाने में पांच नकली बम भेजकर सक्रियता परखी थी इसके बाद कोतवाली के पीछे की दीवार पर भी बम धमाका किया था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 07:55 AM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 07:55 AM (IST)
आज के दिन कलक्टरगंज थाने में क्रांतिकारियों के विस्फोट से दहल गए थे अंग्रेज, पढ़िए- कानपुर की क्रांति गाथा
कानपुर में इतिहास के आइने में क्रांति की कहानी।

कानपुर, जेएनएन। देश की आजादी के लिए जंग लड़ रहे क्रांतिकारियों ने 18 जनवरी 1943 को कलक्टरगंज थाना स्थित डिप्टी एसपी कार्यालय में बम विस्फोट किया था। इस धमाके से गोरी सरकार थर्रा उठी थी। इस घटना के बाद कई क्रांतिकारियों को पकड़कर अमानवीय यातनाएं दी गईं लेकिन सूरमाओं का हौसला नहीं तोड़ पाए थे। अफसर तब ये जानकर और दहशत में आ गए थे कि धमाके से पहले कोतवाली के पीछे विस्फोट का ट्रायल किया गया था। जिला प्रशासन की पुस्तक परिक्रमा में इस घटना का उल्लेख भी है।

इस विस्फोट से करीब एक माह पहले 14 दिसंबर-1942 को क्रांतिकारियों ने पांच नकली बमों की टोकरी नवाबगंज थाने में तत्कालीन गवर्नर हैलट के लिए भेजी थी। इसके जरिए यह जानने का प्रयास किया गया कि क्या थाने के अंदर तक बम के साथ जाया जा सकता है। इसके ठीक तीन दिन बाद 17 दिसंबर को कोतवाली के पीछे वाली दीवार पर श्रीराम शुक्ल व बैजनाथ मिश्रा ने बम फेंका। बम विस्फोट कर पुलिस की सक्रियता जांचने का प्रयास हुआ। क्रांतिकारी किसी थाने को ही अपना निशाना बनाना चाहते थे, इसलिए दोनों ही घटनाएं थानों को निशाने पर रखते हुए की गई थीं। इसके बाद एक माह तक क्रांतिकारियों ने तैयारी की। उन्होंने कलक्टरगंज थाना स्थित डिप्टी एसपी के कार्यालय को अपना निशाना बनाने का निर्णय किया।

18 जनवरी 1943 को कलक्टरगंज थाने में डिप्टी एसपी के कार्यालय में क्रांतिकारी श्रीराम शुक्ल और कालिका बाजपेई ने बम विस्फोट किया। श्रीराम शुक्ल ने ही 17 दिसंबर को कोतवाली की पीछे की दीवार पर बम फेंका था। घटना के बाद सक्रिय हुए अंग्रेज अफसरों ने श्रीराम शुक्ल, कालिका प्रसाद, बैजनाथ मिश्रा, भगवानदास गुप्ता, सिद्धा प्रसाद, अनंतराम को गिरफ्तार किया। उन्हें थाने में ही रखकर कई दिनों तक यातनाएं दी गईं लेकिन क्रांतिकारियों का मनोबल नहीं तोड़ सके। इसके घटना के बाद से क्रांतिकारियों का मन और बढ़ गया था और अंग्रेज सरकार के हौसले पस्त होने लगे थे।

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