पढ़िए- किताबघर में महायात्रा गाथा और मायूरपंख में भारतीय भाषाओं में रामकथा की समीक्षा

रांगेय राघव की महायात्रा गाथा उसी कड़ी की एक अहम पुस्तक है जो मानव इतिहास को रोचक तरीके से उद्धृत करती है। भारतीय भाषाओं में रामकथा विभिन्न भाषाओं के अधिकार-क्षेत्रों में फैली हुए इस वृहद गाथा के कलेवर को सहेजने का सराहनीय प्रयास किया है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 07 Nov 2021 12:52 PM (IST) Updated:Sun, 07 Nov 2021 12:52 PM (IST)
पढ़िए- किताबघर में महायात्रा गाथा और मायूरपंख में भारतीय भाषाओं में रामकथा की समीक्षा
किताबघर और मायूरपंख में पुस्तक समीक्षा ।

भारतीय परिदृश्य में मानव इतिहास का औपन्यासिक वर्णन

कानपुर, यतीन्द्र मिश्र। आज जब मानव विज्ञान और विज्ञान संबंधी किताबों का अंग्रेजी के बाजार में वर्चस्व जम रहा है, यह जरूरी है कि हम हिंदी की उस समृद्ध परंपरा पर नजर डालें जो अनुसंधानपरक रचनाओं से बनी थी। रांगेय राघव की महायात्रा गाथा उसी कड़ी की एक अहम पुस्तक है, जो मानव इतिहास को रोचक तरीके से उद्धृत करती है। चार खंडों में विभक्त यह कृति छह कालखंडों का ब्यौरा देती है। पहले तीन कालखंडों में रांगेय राघव ने मनुष्य जाति के उद्भव से लेकर महाभारत काल तक की यात्रा की है और बाद के तीन कालखंडों में जनमेजय से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक के समय का विवरण दिया है।

पूर्वकालिक समय के ब्यौरे को लेखक ने अंधेरे रास्ते की संज्ञा दी है और उत्तरकाल के विवरणों को रैन और चंदा कहा है। एक विस्तृत फलक पर फैली यह किताब जितनी इतिहास और मानव विज्ञान की रचना है, उतनी ही लेखकीय कल्पनाशीलता की भी उपज है। लेखक कई हजार वर्षों का इतिहास आप तक महज कुछ तथ्यों से नहीं पहुंचाते, बल्कि इस पूरे दस्तावेज को एक वृहद् उपन्यास की शक्ल देते हैं, जो इतिहास सम्मत जानकारी और फंतासी का संतुलित सम्मिश्रण बनता है। बहुत ही रोचक तरीके से लिखे गए इस औपन्यासिक इतिहास में हमारे सामने वो सारे पात्र जीवित हो उठते हैं, जिनके कालखंड के बारे में हम पढ़ रहे हों और उन्हीं की जीवनीय यात्रा के माध्यम से हम इस महायात्रा पर आगे बढ़ते हैं। अध्यायों से पहले लेखक उस कालखंड का एक संक्षिप्त परिचय देते हैं और उस कालखंड के खत्म होने पर एक परिशिष्ट भी दिया है, जो पूरी कथा के सार को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह रांगेय राघव की अद्भुत साहित्यिक दक्षता ही थी कि उन्होंने इतने पात्रों और जीवन वृत्तों की रचना की जो हमारे लिए नितांत आत्मीयता से जीवित हो उठे। उन्होंने बहुत ही सधे हुए, विज्ञान सम्मत तरीके से भारतीय पुराण काल के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कलेवर को समझने का प्रयास किया है।

ऐसा करने में पौराणिक कथाओं में मिलने वाले पात्र काल्पनिक न होकर इसी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं और मानव जीवन की प्रेरणाओं से ही संचालित होते हैं। इस तरह इंद्र और दधीचि और अन्य ऐसे ही मिथकीय पात्र इसी संसार में जन्म लेते हैं और कालांतर में इतिहास और जनश्रुतियों का हिस्सा बन जाते हैं। लेखक ने अद्भुत तरीके से, विभिन्न स्रोतों से शोध करके मनुष्यता की विकास का कथानक बुनने की कोशिश की है। वेदों की उत्पत्ति कैसे हुई, आर्य एवं अनार्यों में क्या सांस्कृतिक भेद थे, विभिन्न धर्मों का विकास कैसे हुआ, अनेकानेक देवी-देवताओं की पूजा कैसे प्रारंभ हुई- लेखक इन सारे ही विषयों पर गहराई से बात करते हैं।

मानवजाति का मनोविज्ञान कि- वह कैसे पशु के झुंड जैसे रहने से कबीला और फिर समाज बनी, यह सब जानना आश्चर्य से भर देता है। इन बीच में पाठक विभिन्न धर्मों- जैन मत, बौद्ध मत, इस्लाम और ईसाई धर्म की भी ऐतिहासिक, सामाजिक और दार्शनिक रूपरेखाएं बेहतर समझ पाता है। टोटम की पूजा और प्राचीन भारत की परंपराएं तो यहां सबसे पारदर्शी तरीके से उल्लेखित हैं ही। ऐसे ही हम वर्ण व्यवस्था को रूढ़ होते देखते हैं, आश्रम व्यवस्था की स्थापना देखते हैं, शनै:-शनै: स्त्री के अस्तित्व और अस्मिता का ह्रास देखते हैं, ग्राम व्यवस्था पर नगर व्यवस्था का आधिपत्य देखते हैं, विभिन्न दर्शन के विचारों के उत्पत्ति के साक्षी बनते हैं और इसी क्रम में पौराणिक तिथियों के कयास से अपने सुदूर अतीत की पक्की जमीन पर कदम रखते हैं। इतिहास के तथ्यों पर चर्चा करने के बाद जब हम लेखक की कथा में प्रवेश करते हैं तो लगता है हमने किसी टाइम मशीन से यात्रा की हो।

रांगेय राघव की अप्रतिम प्रतिभा हर एक चरित्र, उसके द्वंद्वों और ऊहापोहों, दुख और प्रसन्नताओं को इतनी महीनता से उकेरती है कि पाठक के लिए वह कथा केवल एक कहानी या शुष्क इतिहास नहीं रह जाती, बल्कि एक जीवंत जीवन की उपस्थिति में बदल जाती है जिसे अपने आस-पास समाज में देखा जा सके। भारत में बौद्ध धर्म का बढ़ता प्रभाव, अशोक का हृदय परिवर्तन- यह कुछ महत्वपूर्ण विषय हैं, जिनका चित्रण लेखक ने बहुत ही शोधपरक एवं मार्मिक ढंग से किया है।

यह पुस्तक एक अनूठी कलाकृति है, जहां इतिहास की घटनाएं, पुराने साहित्य के प्रकरण, संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के श्लोक, कवित्त, कविताएं कथानक में ऐसे गूंथे गए हैं कि हम सहस्र वर्ष पहले हुई रचनाओं का औचित्य तुरंत समझ पाते हैं। ऐसे ही इतिहास की झांकी देखते हुए हम मध्ययुगीन भारत तक पहुंचते हैं और फिर मुगलकाल तक पहुंचकर यह कृति समाप्त होती है। इस सबके बीच में लेखक भारत की जनसंख्या, लोक, धर्म और संस्कृति से संबंधित हर महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालते हैं, जिनमें उपासना पद्धति से लेकर विभिन्न जातियों की विकास यात्रा तक शामिल है। इस वृहद् कलेवर की रचना करते हुए भी रांगेय राघव एक संतुलित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाए रखते हैं जो उनके कृतित्व को अर्थवत्ता देता है।

महायात्रा गाथा भाग-1, 2, 3, 4

रांगेय राघव

इतिहास

पहला संस्करण, 1960

पुनर्प्रकाशित संस्करण, 1996

किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य: 500 रुपए प्रत्येक

मयूरपंख : संस्कृत भाषा में रामकथा का विस्तार

कानपुर, यतीन्द्र मिश्र। धार्मिक परिकल्पनाओं से परे रामकथा भारतीय उपमहाद्वीप के मानस में बहुत गहराई से बसी हुई एक अनुभूति है। विभिन्न भाषाओं के अधिकार-क्षेत्रों में फैली हुए इस वृहद गाथा के कलेवर को सहेजने का वाणी प्रकाशन ने एक सराहनीय प्रयास किया है। भारतीय भाषाओं में रामकथा नामक शृंखला में डा. प्रभाकर सिंह द्वारा संपादित ‘संस्कृत भाषा में रामकथा’ एक विशिष्ट उपस्थिति रखती है। अलग-अलग विद्वानों के आलेखों से बनी यह किताब हमारे पूर्वज लेखकों की रामकथा से रचनात्मक संवाद पर प्रकाश डालती है।

पुराणों, नाटकों तथा वाल्मीकि रामायण के साथ-साथ भास, कालिदास, भवभूति, अभिनंद, राजशेखर एवं थाई और बांग्ला कवियों की लेखकीय कृतियों से होते हुए हम अन्य देशों की रामकथा से भी परिचित होते हैं। मूल संदर्भों से लिए गए संस्कृत श्लोक एक लुप्तप्राय भाषा के पुनर्जीवन के लिए भी सहायक सिद्ध होते हैं। यह एक शोधरपरक एवं विभिन्न स्रोतों से संदर्भित पुस्तक है, जो रामायण महाकाव्य के माध्यम से एक पूरे भूखंड एवं कई सांस्कृतिक कालों के रचनात्मक हस्तक्षेपों को दर्ज करती है।

भारतीय भाषाओं में रामकथा - संस्कृत भाषा

संपादक: डा. प्रभाकर सिंह

धर्म/संस्कृति

पहला संस्करण, 2019

वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य: 595 रुपए

chat bot
आपका साथी