घर से निकाले जा रहे संक्रमित, फिर भी एल-1 अस्पताल जरूरी नहीं

अधिकारी कह रहे हैं एल 1 हास्पिटल जरूरी नहीं जबकि हकीकत यह है कि दिनों दिन संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 01:44 AM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 01:44 AM (IST)
घर से निकाले जा रहे संक्रमित, फिर भी एल-1 अस्पताल जरूरी नहीं
घर से निकाले जा रहे संक्रमित, फिर भी एल-1 अस्पताल जरूरी नहीं

केस एक : दो दिन पहले गुजैनी में एक भतीजे ने अपने चाचा को इसलिए घर से निकाल दिया कि वह कोरोना संक्रमित हो गए थे। उसे डर था कि उनके रहते परिवार के दूसरे सदस्य भी संक्रमित हो जाएंगे।

केस दो : एक कमरे में रह रहे परिवार में किसी सदस्य के संक्रमित होने पर बाकी स्वजन संक्रमित न हों, इसके लिए विधायक सुरेंद्र मैथानी ने अपना तीन मंजिला मकान आइसोलेशन के लिए दे दिया।

------------------

जागरण संवाददाता, कानपुर : एक तरफ एक कमरे में रहने वाले परिवार के एक सदस्य के संक्रमित होने पर बाकी स्वजन भी संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि लेवल-1 के अस्पतालों की कोई जरूरत नहीं है। ऊपर दिए गए दो केस ये बताने के लिए हैं कि इस तरह की व्यवस्था की शहर में बहुत जरूरत है।

बहुत से मामले ऐसे भी हुए, जिनमें लोग अपने स्वजन को अस्पताल परिसर में छोड़कर चले गए। हालांकि यह अमानवीय है, लेकिन उन्होंने कोरोना से परिवार के दूसरे सदस्यों को बचाने के लिए किया। इन सबके बाद भी प्रशासन कह रहा रहा कि एल-1 अस्पताल की जरूरत नहीं है क्योंकि होम आइसोलेशन की अनुमति दी जा चुकी है। प्रशासन के पास अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, नगरीय स्वास्थ्य केंद्रों में 518 बेड हैं, जहां मरीज को भर्ती किया जा सकता है ताकि वह उस स्तर तक बीमार न पड़े कि ऑक्सीजन की जरूरत पड़े। पिछले वर्ष किसी व्यक्ति के संक्रमण की रिपोर्ट आते ही एंबुलेंस उसे घर से लेकर अस्पताल पहुंचा देती थी, जिसकी वजह से मोहल्लों में संक्रमण फैलने से रोक दिया गया। वहीं समय से उपचार मिलने की वजह से ज्यादातर मरीज बिना ऑक्सीजन के ठीक होकर घर वापस पहुंच गए। इसमें 70 से 80 वर्ष की आयु तक के लोग थे, जो लेवल-1 के अस्पताल से ठीक हो गए और उन्हें लेवल-3 में नहीं जाना पड़ा। उधर प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि होम आइसोलेशन की व्यवस्था होने के बाद लेवल-1 अस्पताल की अलग जरूरत नहीं है, फिर भी जिन्हें लगता है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना है, वे जाकर भर्ती हो सकते हैं। वास्तव में इस समय प्रशासन का फोकस ऑक्सीजन वाले बेड पर है, लेकिन ऑक्सीजन का कोटा न बढ़ने से नए बेड नहीं बढ़ पा रहे हैं। अब पीक तक पहुंच कर मरीजों की संख्या घटने लगी है तो अधिकारी राहत की सांस ले रहे हैं क्योंकि अस्पतालों में खाली बेड की संख्या बढ़ने लगी है।

chat bot
आपका साथी