Bandit Queen फिल्म में छूट गई बेहमई के बदले की कहानी, चंबल के बीहड़ में दब गई अस्ता के नरसंहार की गूंज

दस्यु सुंदरी फूलन देवी गिरोह ने 1981 में बेहमई गांव में बीस लोगों को मौत के घाट उतार दिया था जिसपर 26 जनवरी 1996 को रिलीज हुई फिल्म बैंडिट क्वीन में अस्ता गांव की कहानी का पार्ट नहीं था। आज भी यहां लोगों की आंखों में खूनी मंजर तैरता है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Wed, 27 Jan 2021 08:37 AM (IST) Updated:Wed, 27 Jan 2021 05:26 PM (IST)
Bandit Queen फिल्म में छूट गई बेहमई के बदले की कहानी, चंबल के बीहड़ में दब गई अस्ता के नरसंहार की गूंज
बेहमई जैसा ही दंश झेल रहा है औरैया का अस्ता गांव।

औरैया, [हिमांशु गुप्ता]। 1981 में फूलन देवी के बेहमई कांड पर 26 जनवरी 1996 में रिलीज हुई बैंडिट क्वीन फिल्म 25वें साल यानी सिल्वर जुबली ईयर में प्रवेश कर गई हो लेकिन इस फिल्म में अस्ता गांव की कहानी बेहमई का बदला का पार्ट छूट गया। औरैया के अस्ता गांव में 26 मई 1984 में हुए नरसंहार की गूंज चंबल के बीहड़ में ही दब गई और कहानी भी फिल्म में हिस्सा नहीं बन सकी। बेहमई कांड के बदले के लिए हुए इस नरसंहार को शायद ही चंबल का बीहड़ कभी भूले। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि बेहमई कांड के प्रतिशोध में यहां पर 12 मल्लाह जाति के जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया गया था और गांव में आग लगा दी गई थी, जिसमें मां-बेटे की मौत हुई थी और 14 जान चली गईं थी।

औरैया के अस्ता गांव ने भुगता बेहमई का बदला

1981 में जब फूल देवी ने बेहमई में एक लाइन में खड़ा कर बीस लोगों को गोली मार दी थी तो पूरे देश में इसकी गूंज हुई। इस कांड के बाद फूलन देवी ने तो संसद तक का सफर किया लेकिन इस कांड का बदला भुगतना पड़ा औरैया के अस्ता गांव को। इस गांव में फूलन देवी के सजातिय लोग रहते थे। इसलिए बदला लेने के लिए डकैत लालाराम, श्रीराम व कुसुमा नाइन ने अस्ता गांव में 12 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया और पूरे गांव में आग लगा दी जिसमें मां बेटे की जलकर मौत हो गई। इसमें सरकार ने मुंह फेर लिया था।

स्मारक बनवाकर भूल गई सरकार

सरकार ने किया इतना कि मारे गए लोगों की याद में एक स्मारक बना दिया गया तथा हर परिवार को पांच पांच हजार रुपये मदद की गई। तत्कालीन राज्यमंत्री सीताराम निषाद ने स्मारक का उद्घाटन किया। वन विभाग ने राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम 2004-05 में राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत शहीद चबूतरा निर्माण कराया गया। 26 जनवरी 1996 को जब बैंडिट क्वीन रिलीज हुई तो उसमें यह पार्ट रह ही गया। बेहमई कांड का जिस गांव ने दंश झेला उस गांव का नाम तक नहीं आया। यहां तक कि यहां पर रोजगार के वायदे हुए जो पूरे ही नहीं हुए गांव में प्राथमिक विद्यालय से निकलकर पढ़ाई के सपने को साकार करने के लिये छात्र- छात्राओं को उच्च प्राथमिक शिक्षा के लिए करीब पांच किलोमीटर दूर जैतपुर गांव जाना पड़ता है।

गांव में लोगों का दर्द

करीब 900 की आबादी वाले अस्ता गांव में 410 मतदता हैं और प्रधान से लेकर लोकतंत्र में प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। आज तक इस गांव की पीड़ा की ओर सरकार की नजरें नहीं पहुंची हैं। बुजुर्ग सोमवती बताती है वह दिन आज भी याद है। उनके पति को गोली मार दी गई थी तब से सिर्फ पांच हजार की मदद मिली। हम लोगन को कोई पूछत नाही न न्याय दिलाने की बात करते है। बुजुर्ग रामदुलारी बताती है कि उनके पति धनीराम को भी गोली मार दी गई थी। लड़के है अब बड़े हो गए मगर काम धंधा कुछ नही मिलो है। मजूरी करनी पड़ रही है का करें। हमें कौन न्याय देगो का पता।

नरसंहार में इनकी गई जान

1-भगवानदीन

2-धनीराम

3-महादेव

4-लक्ष्मीनारायण

5-लालाराम

6-छोटेलाल

7-शंकर

8-रामशंकर

9-बांकेलाल

10-रामेशवरदयाल

11-भीकालाल

12-दर्शनलाल

13- शंभूदयाल

आग लगने से मां बेटे की मौत

शिवकुमारी व पांच वर्षीय बेटा मुनेश

chat bot
आपका साथी