थानेदार को पीटकर 24 घंटे पहले ही विकास ने खुली चुनौती देते हुए लिख दी थी वारदात की पटकथा

दूसरे दिन ही आधी रात घर पर दबिश पड़ते ही विकास के गुर्गे बिना सुरक्षा इंतजामों के पहुंची पुलिस टीम पर टूट पड़े।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 12:08 PM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2020 12:08 PM (IST)
थानेदार को पीटकर 24 घंटे पहले ही विकास ने खुली चुनौती देते हुए लिख दी थी वारदात की पटकथा
थानेदार को पीटकर 24 घंटे पहले ही विकास ने खुली चुनौती देते हुए लिख दी थी वारदात की पटकथा

कानपुर, जेएनएन। बिकरू कांड केवल पुलिस दबिश का परिणाम नहीं है, बल्कि इसकी पटकथा वारदात के 24 घंटे पहले ही लिख दी गई थी। विकास ने खुली चुनौती देते हुए एक दिन पहले पुलिस के सामने न केवल शिकायतकर्ता मोहिनी नेवादा निवासी राहुल तिवारी को पीटा था, बल्कि चौबेपुर थाना प्रभारी विनय कुमार ने विरोध की कोशिश की तो उनसे भी मारपीट कर मोबाइल छीन लिए थे। थाना प्रभारी यह बात छिपा गए, लेकिन घटनाक्रम कुछ यूं घूमा कि पुलिस दूसरे दिन ही विकास के घर दबिश देने पहुंच गई और विकास के गुर्गे बिना सुरक्षा इंतजामों के पहुंची पुलिस टीम पर टूट पड़े।

आला अधिकारियों ने जब पूरे घटनाक्रम की जांच शुरू की तो एक के बाद एक कई पर्तें खुलती चली गईं। बिकरू से दो किमी आगे मोहिनी नेवादा निवासी राहुल तिवारी ने विकास दुबे पर अपहरण, मारपीट और हत्या के प्रयास के आरोप लगाए थे। राहुल शिकायत लेकर एक जुलाई को चौबेपुर थाना प्रभारी विनय कुमार से मिले। शिकायत पर वह जांच के लिए बिकरू पहुंचे। यहां बातचीत के दौरान ही विकास ने राहुल को पुलिस के सामने पीट दिया। थाना प्रभारी ने विरोध किया तो उनसे हाथापाई कर विकास ने मोबाइल छीन लिए और अपमानित कर जाने को कहा। थाना प्रभारी इस बात को दबाए रहे। इधर पीड़ित राहुल गुरुवार दोपहर बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी से मिला और घटनाक्रम के बारे में बताया।

एसएसपी ने मुकदमा लिख विकास की गिरफ्तारी का आदेश दिया। उच्चाधिकारियों के मुताबिक एसएसपी के दबिश देने के आदेश पर चौबेपुर थाना प्रभारी ने विकास को बड़ा अपराधी बताकर पीएसी मांगी थी, लेकिन एसएसपी ने तीन थानों की फोर्स लेकर दबिश डालने को कहा। रात साढ़े दस बजे मुकदमा दर्ज हुआ और रात एक बजे पुलिस टीम बिकरू पहुंच गई। इधर विकास को राहुल के पल-पल की खबर उसके खबरी पहुंचा रहे थे। उसने पुलिस से दो-दो हाथ करने की साजिश रची और अपने शूटर आसपास के घरों की छतों पर बैठा दिए जबकि पुलिस बिना किसी बॉडी प्रोटेक्टर के पहुंची। यही नहीं पुलिस के पास जो हथियार भी थे, उन्हें चलाने का मौका भी नहीं मिला, क्योंकि उन्हें हमले का जरा भी अंदाजा नहीं था।

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