75 साल बाद भी कानपुर की जलनिकासी ब्रिटिशकालीन ड्रेनेज सिस्टम पर टिकी, बारिश में हर बार का यही हाल

अंग्रेजों ने आबादी के हिसाब से नालों को विकसित किया था। शहर बढऩे के साथ सीवर का लोड बढ़ता गया। इसको लेकर गंगा एक्शन प्लान लाया गया। इसमें सीवरेज सिस्टम को अलग करने का काम चला लेकिन पैसे के अभाव में बीच में ही बंद हो गया।

By Akash DwivediEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 09:13 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 09:13 AM (IST)
75 साल बाद भी कानपुर की जलनिकासी ब्रिटिशकालीन ड्रेनेज सिस्टम पर टिकी, बारिश में हर बार का यही हाल
अरबों रुपये खर्च कर ड्रेनेज व सीवरेज सिस्टम को एक साथ जोड़ दिया गया

कानपुर, जेएनएन। यह बिडंबना ही है कि आजादी के 75 साल गुजर जाने के बाद भी शहर की जलनिकासी का भार ब्रिटिशकालीन ड्रेनेज सिस्टम पर टिका है। लगातार हो रही बारिश से हो रहा जलभराव मुसीबत बन रहा है। नाले ठीक से साफ न होने के साथ-साथ कई इलाकों में अनियोजित प्लानिंग मुसीबत बन रही है। हैरानी की बात तो ये है कि दूषित पानी को गंगा में जाने से रोकने के लिए अरबों रुपये खर्च कर ड्रेनेज व सीवरेज सिस्टम को एक साथ जोड़ दिया गया।

अंग्रेजों ने आबादी के हिसाब से नालों को विकसित किया था। शहर बढऩे के साथ सीवर का लोड बढ़ता गया। इसको लेकर गंगा एक्शन प्लान लाया गया। इसमें सीवरेज सिस्टम को अलग करने का काम चला, लेकिन पैसे के अभाव में बीच में ही बंद हो गया। वर्ष 2007 में जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) से सिस्टम सुधारने का काम शुरू हुआ। इसमें नाले से सीवर सिस्टम को अलग करने के बजाए जोड़ दिया गया। लिहाजा पूरा सिस्टम अनियोजित paling की भेंट चढ़ गया।

20 फीसद हिस्से में ड्रेनेज सिस्टम : बारिश होने पर शहर का दो तिहाई से ज्यादा भाग जलभराव से जूझता है। शहर की बात करें तो सिर्फ 20 फीसद हिस्से में ही ड्रेनेज सिस्टम है। शहरी क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है, लेकिन जल निकासी के सिस्टम में सुधार नहीं है। नियोजित विकास कराने का जिम्मा उठाने वाले कानपुर विकास प्राधिकरण की अनदेखी से बिना लेआउट अवैध सोसायटियां खड़ी हो रही हैं। इनमें ड्रेनेज सिस्टम न होना भी बड़ी परेशानी है।

अंग्रेजों के जमाने के 19 नाले हो गए संकरे : ब्रिटिशकालीन व्यवस्था को भी अफसर दुरुस्त नहीं रख पाए। अंग्रेजों के जमाने के 19 नालों को चौड़ा करने की बजाय और संकरा कर दिया गया। शहर का सबसे पुराना सीसामऊ नाला 40 मोहल्लों से जुड़ा होने के बावजूद सुरक्षित नहीं है।

अंग्रेजों के जमाने के नाले जिन पर ड्रेनेज सिस्टम का भार : जेल नाला, भगवदास घाट नाला, गुप्तार घाट नाला, सरसैया घाट, मैकराबर्टगंज नाला, डबका नाला, बंगाली घाट नाला, वाजिदपुर नाला, बुढिय़ा घाट नाला, मकदूम नगर घाट, गोल्फ क्लब नाला, सीसामऊ नाला, टैफ्को नाला, परमट नाला, रानी घाट नाला, एसडी कॉलेज नाला, विष्णुपुरी नाला, एलेन फारेस्ट नाला, जू नाला

हांफने लगे आजादी के बाद बने नाले : पनकी सीओडी नाला एक व दो, आईईएल नाला, हलवाखाड़ा नाला, गंदा नाला, सब्जी मंडी साकेत नगर, आइटीआइ नाला, अवधपुरी नाला विकास नगर, अवधपुरी नाला यूपीसीडा, विश्वविद्यालय नाला, केस्को कॉलोनी नाला, बरसाइतपुर नाला। थोड़ी देर की बारिश में ओवरफ्लो होकर ये भी जवाब दे जाते हैं। ड्रेनेज सिस्टम शुरू हुआ - 1892 पहला नाला बना - सीसामऊ आबादी तब थी - दो लाख अब आबादी है - 45 लाख से ज्यादा 157 से ज्यादा अवैध सोसायटी बन गईं शहर में केडीए की अनदेखी से 390 से ज्यादा मलिन बस्तियां हैं जो मुसीबत बनी हैं ड्रेनेज सिस्टम के लिए 04 करोड़ रुपये इस वर्ष खर्च हो चुके हैं नाला सफाई में फिर भी नहीं मिली जलभराव से निजात 

chat bot
आपका साथी