सुख और समृद्धि की देवी मां अन्नपूर्णा

-देवी मां की 51 सिद्धपीठों में शुमार है प्राचीन मंदिर -मंदिर परिसर की मिट्टी को खेत में डाल

By JagranEdited By: Publish:Wed, 30 Dec 2020 11:16 PM (IST) Updated:Wed, 30 Dec 2020 11:16 PM (IST)
सुख और समृद्धि की देवी मां अन्नपूर्णा
सुख और समृद्धि की देवी मां अन्नपूर्णा

-देवी मां की 51 सिद्धपीठों में शुमार है प्राचीन मंदिर

-मंदिर परिसर की मिट्टी को खेत में डालने की मान्यता जागरण संवाददाता, कन्नौज: ऐतिहासिक नगरी तिर्वा में मेरा प्राचीन मंदिर है, जिसमें आज भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। मेरी मान्यता है कि परिसर की मिट्टी को खेत में डालने से कभी भी अनाज का अकाल नहीं पड़ता है। मेरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत समृद्ध है और देवी के 51 सिद्धपीठों में मेरा नाम भी है। मैं एतिहासिक अन्नपूर्णा देवी मंदिर हूं। तिर्वा के राजा प्रीतम सिंह अन्नपूर्णा देवी के दर्शन करने प्रतिवर्ष नवरात्र में काशी नगरी बनारस जाया करते थे। उनकी आस्था से प्रसन्न होकर देवी मां ने स्वप्न दिया। मां ने स्थान बताया और वहां पर खुदाई करके प्रतिमा निकालने को कहा। इसके बाद वहीं पर मंदिर का निर्माण करने को भी कहा। राजा ने 16 वीं शताब्दी में मां की कृपा से खुदाई कराकर मंदिर निर्माण कराया। मंदिर के द्वार के निकट दक्षिण दिशा में स्थित प्रतिमा मां अन्नपूर्णा जी की है। मंदिर में भगवती त्रिपुर सुंदरी लक्ष्मी जी की प्रतिमा श्रीयंत्र के केंद्र बिदु पर स्थापित है। इसको हाथियों से अभिमंत्रित करके बांधा गया। मंदिर के नीचे तीन दिशाओं में हाथियों की श्रृंखला बनी हुई है। आषाढ़ की गुरू पूर्णिमा को सबसे विशाल मेला एक दिवसीय लगता है। इसमें दर्शन को हरदोई, फर्रुखाबाद, जालौन, कानपुर नगर, कानपुर देहात, जालौन, मुरैना, भिड, बांदा, मैनपुरी, इटावा, औरैया, झांसी, हमीरपुर, महोबा समेत गैर प्रांतों के लोग भी आते है। इसके अलावा तीन बार मेला भी लगता है। आज भी मेरी उतनी ही मान्यता है, जितनी कि प्राचीन काल में थी।

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मंदिर को बड़े त्याग के बाद तैयार कराया गया था। पूर्वजों ने क्षेत्र की भलाई के लिए ही निर्माण कराया था। मंदिर निर्माण करने वालों को दूसरा मंदिर न बनाने के लिए उनके जीवित रहने तक पूरे परिवार का भरण पोषण किया गया था।

-सत्यप्रकाश श्रीवास्तव

प्रबंधक, मां अन्नपूर्णा देवी ट्रस्ट

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