दूसरी पंचायतों में भी कराए थोक के भाव काम

जागरण संवाददाता कन्नौज छिबरामऊ के कुंअरपुर बनवारी में मनरेगा श्रमिकों के नाम रिकार्ड तोड़ 50 हजार मानव दिवस देकर लाखों का भगुतान करना सिर्फ इसी ग्राम पंचायत तक सीमित नहीं है। कुंअरपुर बनवारी के नाम से आसपास ग्राम पंचायत छिबरामऊ देहात व रंधीरपुर के मनरेगा कार्यों में यह मानव दिवस शामिल हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 14 Feb 2021 04:46 PM (IST) Updated:Sun, 14 Feb 2021 04:46 PM (IST)
दूसरी पंचायतों में भी कराए थोक के भाव काम
दूसरी पंचायतों में भी कराए थोक के भाव काम

जागरण संवाददाता, कन्नौज : छिबरामऊ के कुंअरपुर बनवारी में मनरेगा श्रमिकों के नाम रिकार्ड तोड़ 50 हजार मानव दिवस देकर लाखों का भगुतान करना सिर्फ इसी ग्राम पंचायत तक सीमित नहीं है। कुंअरपुर बनवारी के नाम से आसपास ग्राम पंचायत छिबरामऊ देहात व रंधीरपुर के मनरेगा कार्यों में यह मानव दिवस शामिल हैं। जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के पीडी सुशील कुमार ने कुअंरपुर बनवारी में 50 हजार मानव दिवस की जांच की तो 650 श्रमिकों को सृजित होना पाया। कुअंरपुर बनवारी के श्रमिकों से छिबरामऊ देहात व रंधीरपुर ग्राम पंचायत में लगाकर मनरेगा का कार्य कराना पाया गया है, जबकि भुगतान कुअंरपुर बनवारी से पंजीकृत होने के कारण किया गया है। हालांकि यह प्रक्रिया नियमानुसार बताई जा रही है, उन ग्राम पंचायतों में भी श्रमिक होते हुए भी दूसरी ग्राम पंचायत के लगाकर काम करना यह बात गले से नहीं उतर रही है।

आखिर कौन से इतने बड़े कच्चे कार्य कराए गए जो 650 श्रमिकों को लगाकर उन्हें जिले भर के पूरे ब्लॉक से अधिक 50 हजार मानव दिवस यानी इतना काम देकर सृजित किया गया है। मनरेगा श्रमिक को रोजाना 201 रुपये मिलते हैं। 50 हजार मानव दिवस के हिसाब से करीब एक करोड़ भुगतान हुआ है, जो सवालों के घेरे में हैं। जांच के बाद उठे सवाल

चार दिन पहले संयुक्त विकास आयुक्त ने डीपीआरओ जितेंद्र मिश्रा के साथ कुअंरपुर बनवारी का निरीक्षण किया था। मनरेगा व सड़क निर्माण में फर्जीवाड़ा मिला था। दो सड़क बिना बनाए लाखों का भुगतान व करीब दो लाख रुपये बिना कार्य मनरेगा का भुगतान होना पकड़ा था। इसके बाद गुरुवार को हुई डीएम की बैठक में यह मामला रखा गया था। डीएम ने जब गहनता से समीक्षा की थी 50 हजार मानव दिवस जो पूरे जिलेभर से कई गुना अधिक मिलना पाया था। अब क्यों बन रही सड़क

कुंअरपुर बनवारी में सड़क के फर्जी भुगतान मामले पर जितना भुगतान हुआ उतना काम कराकर अब पर्दा डाला जा रहा है। डीएम की बैठक के बाद से गांव में युद्धस्तर पर सड़क निर्माण कराया जा रहा है। यहां छह अन्य ग्राम पंचायत से सचिव लगाए गए हैं। चर्चा यह भी है कि दोनों मामले जिले व कानपुर मंडलस्तर तक उसी दिन ही मैनेज हो गए थे। टीम करेगी जांच

पीडी सुशील कुमार ने बताया कि प्रथम ²ष्टया जांच में दूसरे गांव में भी श्रमिक लगाकर कार्य कराना पाया है, जो नियमानुसार करा सकते हैं। अब कार्यों की गहना से जांच करना है, जो टीम बनाकर कराएंगे। टीम मस्टर रोल, श्रमिक, कार्य समेत अन्य तकनीकी जांच करेगी। कंप्यूटर ऑपरेटर दौड़ा रहे मनरेगा की गाड़ी

यदि पारदर्शिता से मनरेगा के कार्याें की पूर्व से जांच कराई जाए तो हर वर्ष फर्जीवाड़ा निकलेगा। सूत्रों के मुताबिक मनरेगा के काम की फीडिग व प्रगति मुख्यालय व ब्लॉक पर रखे गए कंप्यूटर आपरेटर के हवाले है, जो तकनीकी सहायकों के साथ फर्जी कार्यों के आंकड़े फीड करते हैं और धरातल के बजाय कंप्यूटर पर अधिक से अधिक काम दिखाते हैं। कहा यह भी जाता है आपरेटरों का वेतन दस हजार रुपये है, लेकिन हर भुगतान पर उनका चार फीसद हिस्सा बंधा है। इसके अलावा संबंधित अधिकारियों को खुद पैदा कराते हैं। इसी खटपट के कारण लॉकडाउन में एक कंप्यूटर आपरेटर को हटाया जा चुका है। कुअंरपुर बनवारी में भी तकनीकी सहायक व कंप्यूटर आपरेटर दोषी बताए जा रहे हैं। हजारों की संख्या में घटे-बढ़े श्रमिक

कुअंरपुर बनवारी में श्रमिकों को काम के बजाए जिम्मेदार मालामाल हुए हैं। लॉकडाउन के दौरान पलायन कर आए श्रमिकों को अधिक से अधिक काम देने के लिए शासन से मानव दिवस सृजित करने की योजना बनाई थी। मनरेगा मजदूरी भी बढ़ाकर 201 रुपये की थी। ताकी श्रमिकों को रोजाना काम गांव में ही मिले और वापस बाहर न जाएं। शुरुआती दौर में अधिकांश श्रमिकों ने जॉबकार्ड बनवाकर काम भी किया। लॉकडाउन से पहले करीब 11 हजार जिले में श्रमिक थे, जो अप्रैल में करीब 56 हजार तक पहुंच गए थे। इतने श्रमिक शुरुआत में काम करते गए, जबकि लॉकडाउन के बाद अधिकांश मनरेगा की मजदूरी कम होने के कारण पलायन कर गए थे। जनू, जुलाई के बाद से श्रमिकों की संख्या घटती गई। अगस्त के बाद से तेजी से घटकर श्रमिक 12 हजार तक पहुंच गए थे। इधर, फरवरी में दस दिन बाद श्रमिक 17 हजार करीब पहुंच गए हैं। उपायुक्त मनरेगा रामसमुझ ने बताया कि श्रमिक बीच में कम हुए थे। इधर, आवास निर्माण के कारण बढ़े हैं।

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