मंजिल से ये कहो कि करे मेरा इन्तजार/ठहरा हुआ जरूर हूँ भटका नहीं हूँ मैं

फोटो : 27 एसएचवाई 4 झाँसी : शाइर स्व. कालिका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' के ़ग़जल संग्रह '़ग़जल बहार'

By JagranEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 10:22 PM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 10:22 PM (IST)
मंजिल से ये कहो कि करे मेरा इन्तजार/ठहरा हुआ जरूर हूँ भटका नहीं हूँ मैं
मंजिल से ये कहो कि करे मेरा इन्तजार/ठहरा हुआ जरूर हूँ भटका नहीं हूँ मैं

फोटो : 27 एसएचवाई 4

झाँसी : शाइर स्व. कालिका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' के ़ग़जल संग्रह '़ग़जल बहार' का विमोचन करते मंचासीन अतिथि। -जागरण

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फोटो : 27 एसएचवाई 3

कवि सम्मेलन व मुशायरा में रचनाओं का पाठ करते कवि व शायर।

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फोटो : 27 एसएचवाई 5

कवि सम्मेलन व मुशायरा में उपस्थित श्रोता।

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0 गंगा-जमुनी कवि सम्मेलन-मुशाइरे में छाये रहे दिल्ली के ऐजाज अंसारी, सरिता जैन और बैंकॉक के माहिर निजामी

0 कालका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' का ़गजल संग्रह विमोचित, वक्ताओं ने बताया कालजयी साहित्यकार

झाँसी : रानी झाँसी की स्मृतियों को समर्पित गंगा-जमुनी अन्तर्राष्ट्रीय मुशाइरे में दिल्ली के ऐजाज अंसारी, डॉ. सरिता जैन और बैंकॉक के माहिर निजामी छाये रहे। घरेलू जिन्दगी के उतार-चढ़ावों और रिश्तों पर जमती-पिघलती ब़र्फ, मुहब्बत के रिश्तों की गहराइयों व सच्चाइयों तथा सियासी और समाजी जिन्दगी की विद्रूपताओं को जब इन कवि-शाइरों ने अछूते अन्दा़ज में अभिव्यक्ति दी तो श्रोता अभिूभूत हो उठे।

कार्यक्रम 'कादम्बरी', 'अंजुमन शेर-ओ-सु़खन' एवं 'अंजुमन तामीर-ए-अदब' इण्टरनैशनल के संयुक्त तत्वावधान में राजकीय संग्रहालय में आयोजित किया गया था और इसका सरोकार वीरागना रानी लक्ष्मीबाई की स्मृतियों से जुड़ा हुआ था। सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्च्वलन एवं माल्यार्पण कार्यक्रम अध्यक्ष एवं दैनिक जागरण के निदेशक यशोवर्धन गुप्त एवं महापौर रामतीर्थ सिंघल ने किया। उनका साथ सैयद सादि़क अली, रजनीश श्रीवास्तव, विधायक रवि शर्मा के पिता डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा, बुन्देलखण्ड विवि के पूर्व रजिस्ट्रार मो. उस्मान, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी तथा राजकीय संग्रहालय के प्रभारी उप निदेशक डॉ. एसके दुबे, हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया, जितेन्द्र सिंह यादव, या़कूब अहमद मंसूरी, व्यापारी नेता संजय पटवारी, दिनेश भार्गव, सीटीआइ उमर ़खान, महेन्द्र दीवान, डॉ. प्रीति श्रीवास्तव, डॉ. नीति शास्त्री, मनमोहन गेड़ा आदि ने दिया। अतिथियों का स्वागत संयोजक मण्डल के नितिन साहू, कुन्दन दास, कीरतमल, संजय राय, परवेज ़खान, सुश्री सीमा सिंह, विनय पचौरी, कमल दलवानी आदि ने किया। यशोवर्धन गुप्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि जहाँ रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पराक्रम से आजादी की लड़ाई का बिगुल झाँसी से फूँका, वहीं कालका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' की शाइरी में हिन्दुस्तान का दिल धड़कता था। उन्होंने बुन्देलखण्ड की वीर वसुन्धरा से उठने वाली सास्कृतिक सुगन्ध को अपनी शाइरी के हवाले से पूरे विश्व में प्रवाहित किया। मुख्य अतिथि रामतीर्थ सिंघल ने कहा कि 'बशर' की तरह के किसी बड़े शाइर को रग, नस्ल, जबान, ़कौम और जात की भौगोलिक दीवारों की ़कैद में नहीं रखा जा सकता। अन्य अतिथियों ने कहा कि रानी झाँसी और 'बशर' साहब के व्यक्तित्व में सबको अपने साथ समेटने की अद्वितीय क्षमता जरूर थी। एक ने अपनी तलवार से तो दूसरे ने अपने ़कलम की सनसनाहट से पूरी दुनिया को अनूठे पै़गाम दिये। आमन्त्रित शाइर-कवियों व अतिथियों को स्मृति चिह्न, सम्मान पत्र देकर व शॉल पहनाकर सम्मानित भी किया गया। इस दौरान कालका प्रसाद श्रीवास्तव 'बशर' के ़गजल संग्रह '़गजल बहार' का विमोचन अतिथियों ने किया। दैनिक जागरण के सम्पादक सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि पढ़ने वालों को उर्दू शाइरी का जो अल्हड़पन और बाँकपन इस ़गजल संकलन में मिलेगा, वह अन्यत्र कम ही देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि जाँ निसार 'अ़ख्तर' के प्रिय शिष्य 'बशर' साहब एक ऐसे शाइर थे, जिनकी महबूब श़िख्सयत का लोहा जावेद 'अ़ख्तर', निदा ़फाजली जैसे बड़े अदीबों ने भी अपनी किताबों में माना है। 'बशर' के पुत्र रजनीश श्रीवास्तव ने अपने पिता से जुड़े कई संस्मरण सुनाये और प्रकाशित ़गजल संकलन के सहयोगियों का आभार ज्ञापित किया। ख्यात शाइर एवं दूरदर्शन के अनुबन्धित ़गजल गायक म़कसूद अली 'नदीम' ने 'बशर' साहब की मशहूर ़गजल-इश़्क में क्या कहे कि क्या होगा/क्या भला होगा क्या बुरा होगा, का सस्वर पाठ किया।

कार्यक्रम के दूसरे चरण के रूप में मुशाइरा-कवि सम्मेलन का आ़गाज मुज़फ़्फरनगर से आये वसीम झिंझानवी द्वारा प्रस्तुत नात-ए-पाक एवं राठ से आयी कवियत्री सुश्री रजनी श्रीवास्तव की सरस्वती वन्दना से हुआ। दिल्ली से आये अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के शाइर ऐजाज अंसारी की शाइरी में ़गजब का आत्मविश्वास था- 'गुजरूँगा जिस तऱफ से निशाँ छोड़ जाऊँगा/आँधी हूँ अपने व़क्त की, झोंका नहीं हूँ मैं/मंजिल से ये कहो कि करे मेरा इन्तजार/ठहरा हुआ जरूर हूँ भटका नहीं हूँ मैं', गीतकार अर्जुन सिंह 'चाँद' ने सामाजिक रिश्तों के ताने-बाने पर गीत 'ज़ख्मों से ज़ख्म ही मिले/पैबन्द रिश्तों के गये जब सिले', डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा ने 'शहर के ग्लैमर की आड़ लेकर जिन्होंने अपने वतन को छोड़ा/उन्हें भी इक दिन वो घर का मन्दिर 'औ' उसके चन्दन का ध्यान आया', अबरार 'दानिश' ने 'बुराई देखी है, अच्छाइयाँ नहीं देखीं/हमारी आपने ़कुर्बानियाँ नहीं देखीं', सलीम 'रहबर' ने 'तुमको बहुत पुकारा कल मेरी करवटों ने/बेचैनियाँ बयाँ की बिस्तर की सिलवटों ने', डॉ. सरिता जैन (दिल्ली) ने 'तुम मेरी मुहब्बत की इक किताब हो जाना/मैं सवाल पूछूँगी तुम जवाब हो जाना', मुज़फ़्फरनगर के वसीम झिंझानवी ने 'ऩफरत भुला के दोस्तो, उल़्फत किया करो/छोटी-सी जिन्दगी है मुहब्बत किया करो,' सरफराज 'मासूम' ने 'ढँूढ़ लेती जो मेरा घर ़खुशबू/फिर भटकती न दर-ब-दर ़खुशबू', उस्मान 'अश्क' ने 'सच की तस्वीरे-हाल होता है/आईना बेमिसाल होता है', अब्दुल जब्बार खान 'शारिब' ने 'तुम तो अपनों का सहारा भी नहीं बन सकते/लोग बन जाते है ़गैरों का सहारा कैसे', जाहिद कोंचवी ने 'हम घरों में रहकर भी मौसमों से डरते है/जो सड़क पै रहते है, उन पै क्या गुजरती है', बैंकॉक के माहिर निजामी ने 'अदब का मैं सिपाही हूँ अदब की शान वाला हूँ/बड़ा ही ़फ़ख्र है मुझको, मैं हिन्दुस्तान वाला हूँ', सरवर कमाल ने 'बेजुबाँ परिन्दों की गु़फ्तगू सुनी मैंने/ कैद कैसे होते है देखो चार दाने में' जैसे कलाम पेश कर वाहवाही लूटी। इनके अलावा जावेद अनवर, दिलशेर 'दिल' दतिया, असर 'ललितपुरी' आदि ने भी अपने कलाम से श्रोताओं को प्रभावित किया। राजकुमार अंजुम ने संचालन एवं अब्दुल जब्बार ़खान 'शारिब' एवं रजनीश श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।

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