पाठकनामा (18 सितम्बर के अंक के लिए)
श्रमजीवी मनुष्य में होते हैं भगवान विश्वकर्मा के दर्शन व्यक्ति श्रम करने के लिए नहीं बल्कि मुनष्य
श्रमजीवी मनुष्य में होते हैं भगवान विश्वकर्मा के दर्शन
व्यक्ति श्रम करने के लिए नहीं बल्कि मुनष्य की भाँति जीने के लिए श्रम करता है। मानव प्रकृति की इसी प्रवृत्ति में ऐसी दिव्यता, गरिमा होती है, जो उसे जानवर से पृथक करती है। सभी मनुष्य श्रमिक हैं और धरती, आसमान, आग, पानी तथा हवा उसकी सामग्री है। माना कि बड़े से बड़ा कलाकार भी मकड़ी के आगे नतमस्तक है, क्योंकि वह उसकी तरह जाला नहीं बना सकता और ना ही पक्षी की तरह घोंसला बना सकता है। लेकिन सिर्फ मनुष्य ही इतना चैतन्य है कि वस्तु निर्माण से पहले उसका नक्शा मन में बना लेता है, ऐसी फितरत जानवर में नहीं है।
- भगवत नारायण, झाँसी
तालिबानियों की दमन नीति पर विश्व की चुप्पी क्यों?
तालिबानियों ने अफगानिस्तान में सत्ता हासिल कर इस्लामी शासन व्यवस्था लागू कर दी है। इस्लामी ़कानून के नाम पर सार्वजनिक रूप से फाँसी, दोषियों के अंग-भंग व गोली मारने का नियम बनाया है। इसके साथ ही पुरुषों को दाढ़ी रखना व महिलाओं को बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया है। और तो और टीवी व सिनेमा को गैर इस्लामी बताकर बन्द कर दिया है। ऐसे में पाकिस्तानी मन्त्री तालिबानियों की मदद की घोषणा कर रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि विश्व तालिबानियों के प्रति मौन है, आखिर विश्व की तालिबानियों की दमनकारी नीतियों पर चुप्पी क्यों?
- रामराजा यादव, करैरा (शिवपुरी)
भर्तियों की बौछार या वोट का लालच
सत्ताधारी पार्टियाँ वोट बैंक को बढ़ाने के लिए लोगों को लालच देने से पीछे नहीं रहतीं और जब बात युवाओं की हो तो क्या कहने! कई सालों से भर्ती के नाम पर चुप्पी साधे बैठी सरकार एक-दो माह से एक के एक अलग-अलग विभागों में भर्तियों की भरमार निकाल रही है। ऐसे में सा़फ ऩजर आता है कि सरकार युवाओं का वोट बैंक अपनी ओर खींचने के लिए यह सब कर रही है।
- नन्दकिशोर राजपूत, ललितपुर
कोरोना रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट कर रहा अलर्ट
सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार को कोरोना को लेकर फटकार लगा रहा है। हर दिन अखबार की सुर्खियों में सजग रहने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। फिर भी सरकार बजाय सतर्क रहने के लोगों को ढील दे रही है। जबकि डब्ल्यूएचओ लगातार कह रहा है कि भारत सतर्क नहीं हुआ तो अक्टूबर में तीसरी लहर का आगमन हो सकता है और दिसम्बर तक यह चरम पर पहुँच सकता है।
- पूर्णिमा उक्सा, समथर (झाँसी)
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आओ हँस लें
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पति (बड़े प्यार से)- मेरे सोना ने आज खाना क्यों नहीं बनाया?
पत्नी- गिर गई थी और लग गई।
पति (चिन्ता करते हुए)- कहाँ गिर गई थी और कहाँ लग गई?
पत्नी- तकिए पर गिर गई थी और आँख लग गई।
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सोनू- पहले मेरा मन काम में बिल्कुल नहीं लगता था।
मोनू- फिर तूने क्या किया?
सोनू- मैंने मेहनती लोगों के साथ रहना शुरू कर दिया।
मोनू- उससे क्या बदलाव आया?
सोनू (हँसते हुए)- अब तो उनका मन भी काम में नहीं लगता।
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घर के बाहर खड़ा पति काफी देर से दरवा़जा खुलने का इन्त़जार कर रहा था।
पति (गुस्से से)- और कितनी देर लगाओगी तुम?
पत्नी (चिल्लाते हुए)- चिल्ला क्यों रहे हो, आधे घण्टे से कह तो रही हूँ कि 5 मिनट में आ रही हूँ। समझ में नहीं आता क्या?
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अ़र्ज किया है
ऐ सुनामी जरूरत नहीं
तेरी इन खौफनाक लहरों की।
जिन्दगी में खौफ लाने के लिए
तो घरवाली ही काफी है।