शरीर में ऐण्टिबॉडी कम होना चिन्ता की बात नहीं

- मेमरि सेल के बूस्ट होने के कारण संक्रमण से लड़ने की क्षमता बनी रहती है - चिकित्सकों ने माना- चिकन

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 01:00 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 01:00 AM (IST)
शरीर में ऐण्टिबॉडी कम होना चिन्ता की बात नहीं
शरीर में ऐण्टिबॉडी कम होना चिन्ता की बात नहीं

- मेमरि सेल के बूस्ट होने के कारण संक्रमण से लड़ने की क्षमता बनी रहती है

- चिकित्सकों ने माना- चिकनपॉक्स की तरह है कोरोना संक्रमण

- एक बार हुआ तो दूसरी बार होने की सम्भावना है कम

झाँसी : इन दिनों ऐण्टिबॉडी की जाँच के लिए किये जा रहे सीरो सर्वे को लोगों ने अलग ही ढंग से ले लिया है। अब लोग अपनी ऐण्टिबॉडी की जाँच करा रहे हैं और जानने का प्रयास कर रहे हैं कि कहीं ये कम तो नहीं हो गई। कम होने पर यही लोग परेशान हो रहे हैं, जबकि चिकित्सकों का मानना है कि ऐण्टिबॉडी कम होना चिन्ता की बात नहीं है। शरीर में ऐण्टिबॉडी बनने से मेमरि सेल बूस्ट हो जाती हैं, जिस कारण संक्रमण से लड़ने की क्षमता लम्बे समय तक बनी रहती है।

हाल ही में इस प्रकार की चर्चा ने जन्म ले लिया कि जिन लोगों को साल की शुरूआत में ही वैक्सीन की दोनों डो़ज लग गयी थीं, क्या उनके अन्दर अभी तक ऐण्टिबॉडी बरकरार हैं। इसको लेकर चिन्ता भी जतायी जाने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि लोग अपनी ऐण्टिबॉडी की जाँच कराने लगे। इसमें कुछ लोग ऐसे भी निकले, जिनके अन्दर ऐण्टिबॉडी 3 महीने में ही कम पायी गई। ऐसे लोग चिन्ता कर रहे हैं कि अब वे क्या करें और ऐसे में वे इण्टरनेट के जरिए जानकारी जुटाकर अपने आप को ठीक करने में जुट गये हैं। इस मामले में चिकित्सकों का कहना है कि शरीर में ऐण्टिबॉडी का कम होना चिन्ता की बात नहीं है। अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार की ऐण्टिबॉडी बनती हैं। कुछ में ये लम्बे समय तक बनी रहती हैं तो कुछ में जल्दी कम होने लगती हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि वे असुरक्षित हो रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार शरीर में बनीं ऐण्टिबॉडी मेमरि सेल को बूस्ट कर देती हैं। इससे होता यह है कि लम्बे समय तक संक्रमण से लड़ने की क्षमता बनी रहती है। यह क्षमता तब भी रहती है, जब शरीर से संक्रमण पूरी तरह समाप्त हो गया हो। इसलिए अगर किसी के शरीर में ऐण्टिबॉडी कम हो गयी हैं तो उन्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा कोरोना के ढेरों मामले व वैक्सिनेशन होने के बाद की स्थिति देखने पर चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि कोरोना संक्रमण भी चिकिनपॉक्स की तरह है। यदि यह एक बार हो गया है तो दूसरे बार इसके होने की सम्भावना कम ही रहती है। अभी तक यही देखने में आया है कि जिनको दोबारा कोरोना हुआ, उनको यदि दोबारा कोरोना हुआ भी तो बहुत हल्के लक्षण के साथ निकल गया। इसी प्रकार जिनको वैक्सीन लगी, उनके साथ भी ऐसा ही हुआ।

800 लोगों के सैम्पल का नहीं आया परिणाम

4 से 26 जून के बीच विशेष अभियान चलाकर जनपद के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में 800 लोगों के सैम्पल ऐण्टिबॉडी टेस्ट को लिये गये थे। अभी तक इनका परिणाम नहीं आया है। अब तो लोग भी भूलते जा रहे हैं कि उन्होंने कभी सैम्पल दिया भी था।

इन्होंने कहा

'देखने में आ रहा है कि लोग खुद से ऐण्टिबॉडी टेस्ट करा रहे हैं। जिनके शरीर में कम ऐण्टिबॉडी आ रही हैं, वे परेशान हो रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। एक बार बनीं ऐण्टिबॉडी मेमरि सेल को ऐक्टिव कर बढ़ा देती हैं, जिससे संक्रमण से लड़ने की क्षमता लम्बे समय तक बनी रहती हैं। यदि किसी के शरीर में ऐण्टिबॉडी कम आ रही हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें संक्रमण हो सकता है।'

- डॉ. पारस गुप्ता

सह कोविड नोडल ऑफिसर, महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलिज, झाँसी

फाइल : हिमांशु वर्मा

समय : 7.20 बजे

4 अगस्त 2021

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