विवि : आइटी विभाग का शिक्षक 3 वर्ष के लिए डिबार

झाँसी : बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय परिसर स्थित आइटी विभाग के एक शिक्षक को कुलपति ने 3 वर्ष के लिए परी

By JagranEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 07:04 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 07:04 PM (IST)
विवि : आइटी विभाग का शिक्षक 3 वर्ष के लिए डिबार
विवि : आइटी विभाग का शिक्षक 3 वर्ष के लिए डिबार

झाँसी : बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय परिसर स्थित आइटी विभाग के एक शिक्षक को कुलपति ने 3 वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से अलग कर दिया। अब यह शिक्षक केवल कक्ष निरीक्षक की ही ड्यूटि कर पाएगा।

बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय स्थित अभियान्त्रिकी व प्रौद्योगिकी संस्थान के कम्प्यूटर साइंस विभाग के शिक्षक बीबी निरंजन को 3 वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से डिबार किया गया है। जाँच कमिटि की रिपोर्ट के बाद कुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने आज उक्त शिक्षक को 3 वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से अलग करने का निर्देश जारी करते हुए कहा कि अब वह केवल कक्ष निरीक्षक की ड्यूटि ही कर सकेंगे। वह प्रश्नपत्र बनाने तथा मूल्यांकन करने का कार्य अगले 3 वर्ष तक नहीं कर सकेंगे। शिक्षक पर परीक्षा के लिए बनी आचार संहिता का उल्लंघन करने तथा परीक्षा कार्य से अपने रिश्तेदारों के हित के लिए कार्य करने का आरोप सही पाया गया।

- बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय का ़फ़र्जी अंकसूची मामला -

बिहार में करायी जाती थी परीक्षा, जनसूचना से सत्यापन

0 लिपिकों के रिश्तेदारों के खातों में पहुँचती थी राशि

झाँसी : बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में ़फ़र्जी अंकसूची के मामले परत-दर-परत खुल रहे हैं। ़फ़र्जी अंकसूची मामले में एक गिरोह काम कर रहा था, जिसे विश्वविद्यालय के कई अधिकारी व कर्मचारियों का संरक्षण था। यह गिरोह बिहार में परीक्षा कराकर ़फ़र्जी अंकसूची जारी करता था और फिर विश्वविद्यालय की जनसूचना से ़फ़र्जी अंकसूची को सत्यापित किया जाता था। विश्वविद्यालय के लिपिकों के निर्देशन में बाहर के कई लोग इस गिरोह में शामिल हैं।

बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में 28 मार्च 2019 में ़फ़र्जी अंकसूची का सत्यापन करने का मामला पकड़ में आया है। पूरे खेल में जनसूचना विभाग पटल से चल रहा था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जाँच रिपोर्ट के आधार पर जनसूचना के तत्कालीन पटल सहायक वीरेन्द्र सिंह वर्मा को प्रथमदृष्टया दोषी मानते हुए निलम्बित कर दिया है। ़फ़र्जी अंकसूची को सत्यापन में असली बताने के बाद डुप्लिकेट अंकसूची बनाने के लिए विश्वविद्यालय पहुँचे एक व्यक्ति के कारण यह मामला पकड़ में आया था। बिहार से सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे रमेश कुमार ने बीएड की डुप्लिकेट मार्कशीट देने को आवेदन दिया था। कुलसचिव कार्यालय से इसकी जाँच की, तो अभिलेख नहीं मिले। जाँच में ही जनसूचना विभाग द्वारा अंकसूची के सत्यापन में इसे सही ठहराने का प्रमाण-पत्र दिया। दरअसल, बीएड की अंकसूची के सत्यापन के लिए विश्वविद्यालय में जनसूचना में 10 रुपए के साथ एक पत्र आया था, जिस पर उसे 500 रुपए देकर सत्यापन कराने के लिए कहा गया था। बाद में उसे सत्यापन का एक पत्र जारी कर दिया गया, जिसमें अंकसूची सही बतायी गयी थी। जाँच में यह पत्र विश्वविद्यालय के जनसूचना विभाग के रजिस्टर में दर्ज नहीं है। इस पत्र में हाथ से ़फ़र्जी डिस्पैच नम्बर भी दिया गया। इस पूरे खेल में जनसूचना में आने वाले सत्यापन के जवाब ़फ़र्जी तरीके से बाहर से ही दिए जाते रहे हैं। खास बात यह कि इसके लिए जो डिस्पैच नम्बर दिया जाता था, वह पूरी तरह ़फ़र्जी होता था। पहली ही दृष्टि में जनसूचना विभाग के कर्मचारी के सिण्डिकेट में शामिल होने की बात आयी थी। विश्वविद्यालय में आने वाली जनसूचना के सत्यापन के पूरे अभिलेख गिरोह को उपलब्ध कराया जाता था। जानकार बताते हैं कि विश्वविद्यालय की ़फ़र्जी अंकसूची देने तथा सत्यापन के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी से 60 ह़जार रुपए तक लिए जाते थे। यह गिरोह बिहार के रोहतास ़िजले में लिखित परीक्षा कराता था और फिर अंकसूची दी जाती थी। इस ़फ़र्जी अंकसूची को व्यक्ति या संस्था द्वारा जनसूचना से ही सत्यापन कर दिया जाता था। इस पूरे खेल में विश्वविद्यालय के कई लिपिक जुड़े रहे हैं। इस खेल का पैसा लिपिकों के परिजनों तथा गिरोह के दूसरे सदस्यों के बैंक खाते में आता था।

समय के साथ बदलता रहा खेल

बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में ़फ़र्जी तरीके से अंकसूची बनाने का खेल काफी पुराना है। समय के साथ खेल का तरीका बदलता रहा। पहले गोपनीय विभाग में चार्ट पर ही अंक बदल कर पास करा दिया जाता था। इतना ही नहीं, किसी श्रेणी में पास होना है, इसकी अलग दर होती थी। इस मामले में भण्डाफोड़ के बाद अंकों के चार्ट को लेमिनेट किया गया और अब ऑनलाइन कर दिया गया। इसके बाद अति गोपनीय विभाग से ़फ़र्जी अंकसूची को सही बताकर सत्यापन किया जाने लगा और कई मामले पकड़े गए। इसके बाद मूल्यांकन में चैलेंज ई-वेल्युएशन के नाम पर भी पास कराने का मामला सामने आया, जिसकी जाँच की आँच में एक अधिकारी को समय के पहले सेवानिवृत्ति दे दी गयी।

पहले 10 रुपए में होता था अंकसूची का सत्यापन

जनसूचना के माध्यम से ़फ़र्जी अंकसूची के सत्यापन के मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन ने काफी बदलाव किए हैं। दरअसल, अंकसूची के सत्यापन का मामला अतिगोपनीय विभाग का है और मार्च 2019 तक इस कार्य को जनसूचना से किया जा रहा था। विश्वविद्यालय में पहले जनसूचना में 10 रुपए पर अंकसूची की वास्तविकता जाँची जाती थी। इसी 10 रुपए में ही ़फ़र्जी तरीके से सत्यापित कर असली अंकसूची बना दी जाती थी। कई लोग ऐसी ही ़फ़र्जी अंक सूची से नौकरी भी कर रहे हैं। अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने सत्यापन के लिए 500 रुपए तय कर दिए हैं। सत्यापन का यह काम अब गोपनीय विभाग से हो रहा है। साथ ही विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन सत्यापित किए जाने की व्यवस्था की है। इससे विद्यार्थी घर बैठे ऑनलाइन सत्यापन करा सकते हैं। यह पारदर्शी व्यवस्था है, जिससे छात्र-छात्राओं को भी सुविधा मिलेगी।

फाइल : रघुवीर शर्मा

समय : 6.30

6 जून 2020

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