बैण्ड, बाजा और बारात

फोटो : 23 बीकेएस 7, 6, 8, 9, 10,ं 12 ::: लोगो : ़िजन्दगी का एक पन्ना - इरशाद खान ::: 0 विर

By JagranEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 01:20 AM (IST) Updated:Tue, 25 Sep 2018 01:20 AM (IST)
बैण्ड, बाजा और बारात
बैण्ड, बाजा और बारात

फोटो : 23 बीकेएस 7, 6, 8, 9, 10,ं 12

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लोगो : ़िजन्दगी का एक पन्ना

- इरशाद खान

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0 विरासत में मिला संगीत का ज्ञान, वही बन गया रो़जगार

0 डीजे की ते़ज आवा़ज में दब-सी गयी बैण्ड-बाजों की धुन

0 पहले पूरा परिवार बजाता था बैण्ड-बाजे, युवाओं को अब नहीं भाता यह काम

0 साम्प्रदायिक सौहार्द की है मिसाल, कहीं भजन गाते तो कहीं, नात और कव्वाली

झाँसी : शादी समारोह का नाम दिमाग में आते ही चौतरफा खुशियाँ की तस्वीर उभर जाती है। इन खुशियों में कई ऐसे बेगाने भी होते हैं, जिनका भले ही उस परिवार से नाता न हो, लेकिन जब वे अपने हुनर से धुनों को बिखेरते हैं, तो बाराती थिरकने को मजबूर हो जाते हैं। युवा तो धमाल मचाने से जरा भी नहीं चूकते। दूसरे की खुशियों में कलाकार अपना गम भूल जाते हैं। बाद में भले ही उनके हाथ में इतने रुपए भी नहीं लगें, जिससे वे अपने परिवार की ़िजम्मेदारियों को उठा सकें। इसके बाद भी उनका गीत और संगीत से खानदानी जुड़ाव ऐसा है कि वे चाह कर भी उससे नाता नहीं तोड़ पाते। अपने बच्चों को भले इस कारोबार से दूर रखने में सफलता हासिल कर ली हो, लेकिन अब धीरे-धीरे कलाकारों की भी कमी होती जा रही है। तो वहीं, अब इस बैण्ड-बाजे के कारोबार पर डीजे की ते़ज आवा़ज भी छाप छोड़ने लगी है। ऐसे में किसी तरह से बैण्ड-बाजा बजाने वाले अपना भरण-पोषण कर रहे हैं।

बैण्ड-बाजे की धुन पर 'बहारों फूल बरसाओ, मेरा मेहबूब आया है' गाना जब भी बजता है, तो आसपास क्षेत्र के लोग समझ जाते हैं कि बारात दूल्हन के घर पर पहुँच गयी है और टीका का कार्यक्रम शुरू हो गया है। इस बीच में 'छोटे-छोटे भाईयों के बड़े भइया, आज बनेंगे किसी के सैंया' और 'आज मेरे यार की शादी है' जब बजते हैं, तो इस पर भाई, बहन और दोस्त और रिश्तेदार जमकर नाचने लगते हैं। ऐसे में बैण्ड बाजे वाले उनमें और जोश भरने के लिए खूब तेजी से न सिर्फ गाना गाते हैं, बल्कि बैण्ड की स्पीड भी बढ़ा देते हैं। उनके उत्साह को और बढ़ाने के लिए बाराती न्योछावर के तौर पर इनाम देते हैं, जिससे वो और तेजी से बाजा बजाते हैं। यह सिलसिला बारात उठने से लेकर दूल्हन के घर या फिर विवाह घर तक जारी रहता है। बारातियों में जोश उस समय पूरे उरूज पर पहुँच जाता है, जब दूल्हन के घर के सामाने बारात पहुँच जाती है। उस वक्त बैण्ड वाले कई बार दुविधा में फँस जाते हैं। बुजुर्ग बारात के आगे के कार्यक्रम को लेकर बैण्ड बाजों को बन्द कराने का प्रयास करते हैं तो वहीं, युवा एक और गाने की फरमाइश करते हैं। ऐसे में दोनों तरफ से बैण्ड बजाने वाला का ही 'बैण्ड' बज जाता है। लेकिन वो हर दुश्वारी का घूँट सिर्फ इसलिए पीते जाते हैं कि उनको लगता है कि उनकी कला के कद्रदान हैं, जो एक के बाद एक फरमाइश कर रहे हैं और वो उसको पूरा कर रहे हैं। उनको इनाम के रूप में रुपए मिलते हैं, जिससे वे अपनी बेइज्जती को भी भूल जाते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए, तो खुशी में जहाँ खुशी मिलती है, तो जब कभी दुश्वारी का भी सामना करना पड़ जाता है।

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पुश्तैनी काम करते चले आ रहे

- बैण्ड बाजे के साथ रेहड़ी पर गीत गाने वाले राकेश कुमार वंशकार बताते हैं कि उनके पिता रामस्वरूप भी ब्रास बजाते थे। परिवार में भाई और चाचा के साथ ही उनके लड़के भी कोई ब्रास बजाता था, तो कोई ढोल। पूरा परिवार बैण्ड बाजे का काम करता था। सभी को संगीत सिखाया जाता था। बकायदा रिहर्सल होती थी। इससे पूरे परिवार का माहौल संगीतमय था। वहीं से गाना गाना सीखा और आज तक गा रहे हैं। उनका कहना है कि पेट की खातिर कई बार तो रात-रात भर गाना पड़ जाता है। राकेश बताते हैं कि मोहर्रम के जुलूस में नाते और कव्वाली गाते हैं, तो गणेश, दुर्गा विसर्जन के कार्यक्रम में भजन। उनकी दोनों पर ही पकड़ है। उन्होंने बताया कि इस काम में 4 गायक लगते हैं। इसमें मुस्लिम धर्म के भी होते हैं, जो कव्वाली के साथ ही भजन गाते हैं। राकेश ने बताया कि उनका यह काम पुश्तैनी है, जिसको वे आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन बच्चों को इस काम में इसलिए नहीं डाला, क्योंकि इस काम में अब वो बात नहीं रही। आय कम हो गयी और खर्चे ज्यादा बढ़ गए हैं। ऐसे में किसी तरह से परिवार चला रहे हैं।

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ब्रास बजाने में फूल जाते हैं फेफड़े

- ब्रास मास्टर बच्ची लाल बताते हैं कि उन्होंने यह कला अपने पिता घनश्याम से सीखी। इस काम में दूसरों की खुशी में शामिल होने को मिलता है और पैसा भी मिलता है। एक तो यह काम साल भर में 8 माह चलता है और उसमें ही हर माह में औसतन 5-6 काम करने का मौका मिलता है। बाकी के दिनों में वो अन्य काम करते हैं। इस काम पर पूरी से तरह से निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसलिए किसी तरह से बच्चों के पालन-पोषण के साथ ही पढ़ाई पर जोर दिया और उनको अलग ही लाइन में निकाल दिया। बच्चीलाल बताते हैं कि ब्रास बजाना एक कला है, जिसको बजाने में फेफड़े फूल जाते हैं। बारातियों में जोश और उत्साह भरने के लिए जोर से बजाना पड़ता है, जिससे वो नाचते हैं और इनाम देते हैं। वे बताते हैं कि जब दूल्हा-दुल्हन एक होकर परिवार बनाने जाते हैं, तो उनको इस काम में खुशी मिलती है, लेकिन यह काम उतना नहीं मिलता है, जिससे उनका परिवार आसानी से चल सके।

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पहले कई शिफ्ट में बजाते थे, अब मिलती है सिर्फ एक शिफ्ट

- बैण्ड बाजा संचालक सलामत अली बताते हैं कि इस धन्धे में गिरावट आयी है। इसका कारण यह है कि पहले रात भर में कई शिफ्ट में बैण्ड बजता था, लेकिन अब रात 10 बजे के बाद प्रतिबन्ध लग गया है। एक शिफ्ट 3 घण्टे की होती है। ऐसे में सिर्फ एक दिन में एक ही शिफ्ट बुक करते हैं, जबकि पहले देर रात तक कई शिफ्ट में बैण्ड बजता था। इससे बैण्ड बाजा बजाने वाले कारीगरों को भी अच्छा पैसा मिल जाता था। लेकिन अब उतना नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही डीजे ने भी प्रभाव डाला है। सलामत की मानें तो आमदनी कम होने से कई लोगों ने अपना पुश्तैनी धन्धे की ओर से रुख मोड़ लिया है, जिससे कलाकारों की कमी होती जा रही है। उन्होंने बताया कि इसमें कई कारीगर तो माहवार वेतन पर रहते हैं। ऐसे में अगर काम मिले या नहीं मिले, लेकिन उनको तो वेतन देना पड़ता है।

23 इरशाद-2

समय : 9.55 बजे

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