दीपावली नजदीक आते ही तेज हुई चाक की रफ्तार
जागरण संवाददाता बरईपार (जौनपुर) दीपों का पर्व दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक क
जागरण संवाददाता, बरईपार (जौनपुर): दीपों का पर्व दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। रोशनी के इस त्योहार पर वह दीया, मिट्टी के खिलौने आदि बनाकर अच्छी कमाई करने में जुट गए हैं। इस काम में उनका पूरा परिवार लगा हुआ है। मिट्टी के दीये में तेल व घी का दीपक जलाना पर्यावरण की ²ष्टि से महत्वपूर्ण है।
आधुनिकता की चकाचौंध में प्लास्टिक के बर्तनों के प्रचलन, बिजली के रंग-बिरंगे झालरों व मोमबत्तियों ने भले ही कब्जा कर लिया है, लेकिन आज भी मिट्टी के दीये व खिलौैने का स्थान बना हुआ है। अधिक श्रम शक्ति के बावजूद मुनाफा कम होने के कारण भी लोग पुश्तैनी धंधे से जुड़े हुए हैं। ऐसे में गांव से लेकर शहरों में भी मिट्टी के दीये व खिलौैने बनाने की तैयारी तेज हो गई है। कुम्हारों का पूरा कुनबा इसमें जी-जान से लगा है।
बाजारों में सज गई हैं दुकानें
दूसरी तरफ बाजार जहां बिजली के रंग-बिरंगे झालरों से सज गए हैं। इसके साथ ही आर्टिफिशियल रंगोली, फूल-फत्ती के साथ ही रंग-पेंट की दुकानें भी गुलजार हो गई हैं। आभूषण की दुकानों के साथ ही वाहनों के शो-रूम भी सजने लगे हैं।
बच्चों का बैंक होता है गुल्लक
दीपावली में बच्चों की पसंद मिट्टी के बने गुल्लक और खिलौने होते हैं। कारीगर बच्चों को आकर्षित करने के लिए सामान्य गुल्लक के साथ ही डिजाइनर सिलिडर, तो कोई मिक्की माउस बना रहे हैं। दुकानों पर सजने के बाद उसे देखते ही उनके कदम थम जाएंगे। बच्चों को आकर्षित करने के लिए कारीगर पूरी सिद्दत से आकर्षक कारीगरी में लगे हुए हैं। बाजार में गुड्डा-गुड़िया, दादा-दादी, गुल्लक, हाथी-घोड़े, पालकी, चुक्कू पकाना जैसे खिलौने बिकने आ गए हैं।
बोले कुम्हार..
मिट्टी के बर्तनों के निर्माण को आज भी अपनी जीविका का साधन बनाया है। पैर से विकलांग सुदामा ने दीपावली का त्योहार नजदीक देखकर चाक की रफ्तार को तेज कर दिया है। बताया कि दीपावली निकट देखकर इस समय दिनभर मेहनत करना पड़ रहा है।
-सुदामा, शाहपुर।
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गुजरात में एक दुकान पर कार्य करता हूं, लेकिन दीपावली के मद्देनजर गांव आकर दीपावली की सामग्री तैयार करने में लग गए हैं। चूंकि पुश्तैनी यजमानों के घर दीपावली के सामानों को पहुंचाना पड़ता है। इसलिए महीने भर से आकर इस कार्य में लगा हुआ हूं।
-पांचू प्रजापति, बरईपार।
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मिट्टी का बर्तन बनाना हमारा पुश्तैनी धंधा है। मिट्टी खोजने में अब दिक्कत होती है। गांव में चकबंदी हुई, लेकिन कुम्हार गड्ढा के लिए जमीन नहीं छोड़ी गई। छह से आठ सौ रुपये प्रति ट्राली ट्रैक्टर से मिट्टी मंगाकर काम चलाता हूं। पर्व पर लोगों के दीये, खिलौने आदि देकर अनाज व पैसा मिल जाता है।
-राममूरत प्रजापति, शाहपुर।
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आधुनिकता के दौर में दीपावली में रफ्तार पकड़ने वाला चाक साल में एक बार ही निकलता है। यह दीपावली में रोशनी फैलाकर फिर गुम हो जाता है। समय के साथ मिट्टी महंगी होती जा रही है। बर्तन पकाने के लिए ईंधन भी मुश्किल से मिल रहा है वह भी महंगे दाम पर। पुश्तैनी धंधा होने के कारण इसमें लगा हूं।
-महंथा प्रजापति, मुकुंदीपुर।