अस्पतालों में जिम्मेदारों की उदासीनता सर्पदंश पीड़ितों पर भारी

ग्रामीण क्षेत्र के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के जिम्मेदारों

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Jul 2021 06:29 PM (IST) Updated:Tue, 20 Jul 2021 06:29 PM (IST)
अस्पतालों में जिम्मेदारों की उदासीनता सर्पदंश पीड़ितों पर भारी
अस्पतालों में जिम्मेदारों की उदासीनता सर्पदंश पीड़ितों पर भारी

जागरण संवाददाता, जौनपुर: ग्रामीण क्षेत्र के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के जिम्मेदारों की उदासीनता सर्पदंश पीड़ितों पर भारी पड़ रही है। इन अस्पतालों में पर्याप्त एंटी स्नेक वेनम का चिकित्सक उपयोग ही नहीं करते। पीड़ितों के उपचार को झंझट मानकर रेफर कर दिया जाता है। इसी का परिणाम है कि अधिकांश अस्पतालों में दो साल से एंटी स्नेक वेनम डंप पड़ा है।

अकाल मौतों से बचाने के लिए लिए दैनिक जागरण के चलाए जा रहे 'ताकि बची रहे जिदगी' अभियान के क्रम में मंगलवार को अस्पतालों की तफ्तीश में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। कई अस्पतालों के रिकार्ड में तो एक साल से सर्पदंश पीड़ित कोई आया ही नहीं। आ भी गए तो उसे एंटी स्नेक वेनम की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। जिम्मेदारों की यही लापरवाही जहां मौतों का आंकड़ा बढ़ा रही है, वहीं मुआवजा देने में खजाने को भी चोट पहुंच रही है।

ये है अस्पतालों की स्थिति

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बक्शा पर 20 वायल एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध है लेकिन हैरत की बात है कि एक साल से यहां एक भी पीड़ित नहीं आया। अधीक्षक डाक्टर जीके सिंह ने बताया कि किसी को आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यही स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चोरसंड की भी है। अधीक्षक डाक्टर मनोज कुमार के अनुसार एक साल से सर्पदंश का न तो मरीज आया और न ही किसी को एंटी स्नेक वेनम लगा। अस्पताल में दस वायल उपलब्ध है। बरसठी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध है। चिकित्साधीक्षक डाक्टर अजय सिंह ने बताया कि जनवरी से लेकर अभी तक किसी को एंटी स्नेक वेनम नहीं लगाया गया। इसकी जरूरत नहीं पड़ी। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सुइथाकलां के प्रभारी चिकित्साधिकारी डाक्टर एसपी यादव के अनुसार अस्पताल मे पांच वायल एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध है। बीते चार-पांच माह से किसी भी मरीज को यह इंजेक्शन नहीं लगाया गया। महराजगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर 40 वायल एंटी स्नेक वेनम उपलब्ध है। प्रभारी चिकित्साधिकारी डाक्टर ओंकार भारती ने बताया कि गत तीन माह में कोई भी पीड़ित अस्पताल में नहीं आया।

झाड़-फूंक के चक्कर में गई बीडीसी सदस्य व किशोर की जान

केराकत : ग्रामीण अंचलों में आज भी तमाम सुविधाओं के बावजूद झाड़-फूंक, टोना-टोटका, ओझाई, अंध विश्वास कायम है। अंध विश्वास के चक्कर में लोग अपने करीबियों की जान गंवा बैठते हैं। कुछ ऐसी ही घटना ग्राम नदौली में 2018 के कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुई। कृष्ण जन्मोत्सव मनाने के लिए साथियों संग बांस के कोट के पास कईन काटने गए बेटा निखिल यादव (14) पुत्र आसन को सांप ने डंस लिया। ओझाई और झाड़-फूंक के लिए गाजीपुर, जौनपुर व आजमगढ़ आने-जाने के चक्कर में स्वजनों ने समय बर्बाद कर दिया, इससे बालक की मौत हो गई, जबकि सरकारी अस्पताल वहां से महज एक किमी पर ही था। दूसरी घटना परमानंदपुर गांव में नवंबर 2018 मे हुई। यहां क्षेत्र पंचायत सदस्य तहसीलदार राम (35) को खेत में काम करते समय सर्प ने डंस लिया। इसके बाद स्वजन उसे झाड़-फूंक और ओझाई के लिए दिनभर कई जगह ले गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में इलाज के अभाव में मौत हो गई। सबकुछ खोने के बाद उन्हें सरकारी अस्पताल की याद आई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

विलंब से अस्पताल पहुंचते हैं 70 फीसद पीड़ित: डाक्टर बीएस उपाध्याय

जौनपुर: सर्पदंश की घटनाओं में पीड़ित का समय से उपचार शुरू हो जाए तो मौत की संभावना काफी कम हो जाती है। वरिष्ठ चिकित्सक डाक्टर बीएस उपाध्याय का कहना है कि अंध विश्वास और जागरूकता की कमी के कारण अभी भी 70 फीसद सर्पदंश पीड़ित अस्पताल विलंब से पहुंचते हैं। ओझाई व जड़ी-बूटी पिलाने के चक्कर में समय बर्बाद कर देते हैं। बताया कि विषैले जंतु के काटने का असर दो से तीन घंटे में आ जाता है। मरीज गंभीर होने के साथ ही गला चोंक कर जाता है। मरीज की आंख की ऊपरी पलक झपकना व आवाज का न निकलना और सांस फंसने लगती है। इसके साथ ही शरीर नीला पड़ जाता है। ऐसी अवस्था में कृत्रिम सांस देने की मशीन, वेंटिलेटर लगाना आवश्यक होता है। इसके साथ ही एंटी स्नेक वेनम की सुई लगानी पड़ती है। उन्होंने सलाह दी कि झाड़-फूंक के चक्कर में कतई समय न गंवाएं। जिस स्थान पर सांप ने काटा है उससे छह इंच ऊपर दो इंच पट्टी से मध्यम दबाव से बांध दें और काटे हुए अंग का मूवमेंट न होने पाए। इसके लिए लकड़ी की पटरी से बांध दें। बताया कि जनपद में कोबरा, करैत, वाइपर सर्प अधिक पाए जाते हैं। अगर सौ मरीज सर्पदंश के आते हैं तो उनमें 70 प्रतिशत जहरीले नहीं होते हैं। उन्होंने आगाह किया कि सर्प कांटे स्थान पर चीरा या काट कर खून निकालना प्रतिबंधित हो गया है।

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