नाम बदलने के साथ ही बदलते रहे सियासी समीकरण
जागरण संवाददाता जौनपुर यूपी के आठ सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में मल्हनी भी श्
जागरण संवाददाता, जौनपुर : यूपी के आठ सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में मल्हनी भी शामिल है। यहां सपा के विधायक रहे पारसनाथ यादव के निधन के बाद चुनाव हो रहा है। इस सीट पर यह तीसरा चुनाव है। इस सीट का समय-समय पर नाम बदलने के साथ ही यहां का सियासी समीकरण भी बदलता रहा है। वर्ष 1951 में यह सीट जौनपुर दक्षिण के नाम से रही। इसके बाद 1957 में रारी के नाम से सृजित हुई। फिर 2012 में मल्हनी विधानसभा नाम दिया गया। यहां पर लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है तो दो बार निर्दलियों ने भी विजय पताका फहराया है। 2012 में मल्हनी विधानसभा सीट के गठन के बाद यहां के पहले विधायक पारसनाथ यादव चुने गए। दो बार विधायक रहने के बाद 2020 में उनके निधन से यह सीट खाली हुई है। 1951 में यह सीट जौनपुर दक्षिण के नाम से थी। यहां के पहले व अंतिम विधायक कांग्रेस पार्टी के दीप नारायण वर्मा रहे। 1957 में अस्तित्व में आई रारी विधानसभा क्षेत्र से पहले विधायक कांग्रेस पार्टी के राम लखन सिंह हुए। 1962 में जनसंघ के कुंवर श्रीपाल सिंह ने विजय दर्ज की। इसके बाद 1967 में राज बहादुर यादव ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 1969 में कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्यनाथ उपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारा तो उन्होंने पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए जीत दर्ज की। 1974 में राज बहादुर यादव ने भारतीय क्रांति दल का दामन थामा तो रारी की जनता ने उन पर पुन: विश्वास जताकर विधानसभा भेजा। इसके बाद पुन: राज बहादुर यादव ने जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में जीत दर्ज की। 1978 में रारी में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में पुन: सूर्यनाथ उपाध्याय विजयी हुए। 1980 के विधानसभा चुनाव में रारी की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी पर विश्वास जताते हुए तेज बहादुर सिंह चुना। 1985 के विधानसभा चुनाव में लोकदल से अर्जुन यादव ने जीत दर्ज की। 1989 के चुनाव में कांग्रेस ने अरुण कुमार सिंह मुन्ना पर दांव खेला और वह चुनाव जीते। 1991 में मिर्जा जावेद रजा को जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर जीत मिली तो 1993 में सपा व बसपा के गठबंधन में बसपा के प्रत्याशी लालजी यादव जोगी विजयी हुए। 1996 में सपा के श्रीराम यादव जीते तो वर्ष 2002 के चुनाव में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर धनंजय सिंह ने रारी के किले पर कब्जा किया। जो 2007 में भी पुन: कायम रहे, हालांकि इस बार वह जदयू व भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी थे। धनंजय बने सांसद, पिता विधायक 2009 में धनंजय सिंह के सांसद चुने जाने पर यह सीट खाली हुई है तो उन्होंने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से टिकट दिलाया और उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद 2012 में सीट का परसिमन बदलने पर यह सीट मल्हनी विधानसभा हो गई। इसके पहले विधायक सपा के दिग्गज नेता पारसनाथ यादव हुए। जो दोबारा 2017 के चुनाव में भी जीत दर्ज कर विधायक बने थे।