सेवईं नाले को मिलेगा नया स्वरूप

खुटहन क्षेत्र के 16 गांवों के लिए सेंवई नाला प्रकृति का अनमोल उपहार है। इस नाले से जहां ग्रामीण खेतों की सिचाई करते हैं वहीं पशुओं को नहलाने व किनारे को चारागाह के रूप में उपयोग किया जाता है। दो खंड में विभाजित कर दिए जाने के बाद नाले का अस्तित्व संकट में था। नाले को नया स्वरूप देकर जीवनदायी बनाया जाएगा जाएगा। नहर विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलने के साथ ही नाले की खोदाई सौंदर्यीकरण चेकडैम पुलिया का निर्माण के लिए तीन करोड़ रुपये स्वीकृत किया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 02 Jun 2020 04:41 PM (IST) Updated:Tue, 02 Jun 2020 04:41 PM (IST)
सेवईं नाले को मिलेगा नया स्वरूप
सेवईं नाले को मिलेगा नया स्वरूप

जागरण संवाददाता, खुटहन (जौनपुर): खुटहन क्षेत्र के 16 गांवों के लिए सेवई नाला प्रकृति का अनमोल उपहार है। इस नाले से जहां ग्रामीण खेतों की सिचाई करते हैं वहीं पशुओं को नहलाने व किनारे को चारागाह के रूप में उपयोग किया जाता है। दो खंड में विभाजित कर दिए जाने के बाद नाले का अस्तित्व संकट में था। नाले को नया स्वरूप देकर जीवनदायी बनाया जाएगा। नहर विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलने के साथ ही नाले की खोदाई, सौंदर्यीकरण, चेकडैम, पुलिया का निर्माण के लिए तीन करोड़ रुपये स्वीकृत किया गया है।

जनपद को प्रकृति से पांच नदियां वरदान स्वरूप प्राप्त हुई हैं लेकिन छठें नदी के रूप में प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस सेवई नाले का नाम भी लिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसका अभ्युदय कब हुआ, इसकी स्पष्ट जानकारी किसी के पास नहीं है। बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1970 के पूर्व इसमें सीमावर्ती जिला अंबेडकरनगर तक के गांवों का पानी बहकर नाले में आता था। वर्ष 1970 में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी शंकर यादव ने हरित क्रांति योजना के तहत शारदा सहायक खंड 36 का निर्माण शुरू करा दिया जो सुल्तानपुर जनपद से होते हुए ब्लाक मुख्यालय के दर्जनों गांवों को आच्छादित करती हुई पश्चिम से आकर पूर्व दिशा में बगल जनपद आजमगढ़ की तरफ गई है। जबकि सेवईं नाला उत्तर से दक्षिण दिशा में आया है जो सोइथा विकास खंड के बासगांव तेलीतारा में गणित के धन का निशान बनाते हुए अपनी- अपनी दिशा में निकले थे। यहां से नहर को आगे बढ़ाने के लिए सेवईं नाले के दोनों तरफ लोहे का फाटक लगाकर इसको दो खंडों में विभाजित कर दिया गया। नहर को आगे निकाल दिया गया। तब से सेवईं नाले का इतिहास यहीं तक सिमट कर रह गया।

कभी नहीं सूखता था पानी

खुटहन क्षेत्र के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि वर्ष 1970 के पूर्व सेवईं नाले का पानी कभी सूखता नहीं था। इसका पानी हमेशा साफ और स्वच्छ बना रहता था। पहले लोग पशुओं को नहलाने के साथ- साथ इसका पानी पेयजल के लिए भी उपयोग में लाते थे। जबसे इसे दो खंडों में विभाजित कर नहर निकाली गई है। तब से गर्मियो में पानी सूखने लगा है।

20 क्यूसेक पानी नाले में

छोड़ने का आदेश

सेवईं नाले में पानी के बहाव को तेलीतारा में रोक दिए जाने के बाद कहीं नाला सूख न जाए इसको दृष्टिगत रख इसमें शारदा सहायक में जब भी पानी छोड़ा जाय, बीस क्यूसेक पानी नाले में अवश्य छोड़े जाने का शासनादेश जारी किया गया था। जिसका अनुपालन नहर विभाग के द्वारा आज भी किया जा रहा है।

नाले के तट पर कई धार्मिक स्थल

खुटहन सेवईं नाले के तट पर अलग- अलग गांवों में चार प्राचीन मंदिर बने हैं। जहां नियमित रूप से लोग पूजा पाठ व अन्य धार्मिक कार्यक्रम करते रहते हैं। धिरौली नानकार गांव का बान्हदैत्य मंदिर, रसूलपुर गांव में शिवालय, अशरफगढ़ गांव में वास्तुकला की भव्य सुंदरता के बीच शिव मंदिर तथा धार्मिक स्थल पिलकिछा में भगवान राम, लक्ष्मण, जानकी तथा हनुमान मंदिर स्थित है।

यह गांव हैं लाभांवित

खुटहन सेवईं नाले से विकास खंड के 16 गांव लाभांवित हैं। इससे जहां भूमिगत जल का लेवल नीचे नहीं भाग रहा है। वहीं किसानों को चारागाह सहित पशुओं को नहलाने आदि की सुविधा मिल रही है। उसरौली, उदयीपुर दीपी, डिहिया, पिलकिछा, पटैला, बनहरा, भटपुरा, असरफगढ़, शेरपुर, ख्वाजापुर, रसूलपुर, ओइना, कपसिया, सौरइया पट्टी, कपसिया, धिरौली नानकार और घुघुरी सुल्तानपुर गांव इससे लाभांवित हैं।

क्या बोले जिम्मेदार

खुटहन खंड विकास अधिकारी गौर्वेन्द्र सिंह ने बताया कि बरसात के मौसम में यह नाला पूरे उफान पर होता है। इसका पाट प्रत्येक वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। इसमें तटवर्ती किसानों की कृषि योग्य जमीन भी समाहित होती जा रही है। जिसे रोकने के लिए इसकी खोदाई, पुलिया, चेकडैम, दीवार आदि बनाया जाना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि नहर विभाग से एनओसी मिल गई है। स्टीमेट बनाया जा रहा है। अनुमानत: इस पर ढाई से तीन करोड़ तक धन व्यय हो सकता है।

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