जल संचय के लिए टपक विधि से फसलों की सिचाई उत्तम

जागरण संवाददाता तेजीबाजार (जौनपुर) परास्नातक शिक्षा प्राप्त महराजगंज के एकहुंआ गांव निवास

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 04:35 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 04:35 PM (IST)
जल संचय के लिए टपक विधि से फसलों की सिचाई उत्तम
जल संचय के लिए टपक विधि से फसलों की सिचाई उत्तम

जागरण संवाददाता, तेजीबाजार (जौनपुर): परास्नातक शिक्षा प्राप्त महराजगंज के एकहुंआ गांव निवासी गौरी शंकर सिंह रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन करने की बजाए खेती-बारी और किसानी को व्यवसाय के रूप में चुना है। शुरुआत में भले ही इनको ग्रामीणों और स्वजनों के ताने सुनने पड़े, लेकिन आज एकमात्र कृषि आय के सहारे ही घर पर पक्का मकान, कृषि के आधुनिक साधन विकसित करने के साथ दो पुत्रियों और पुत्रों को उच्च शिक्षा दिलाकर लगभग आठ बीघा भूमि की रजिस्ट्री भी अपने और पत्नी के नाम करा चुके हैं। सबसे अहम यह है कि बूंद-बूंद जल संचय के लिए टपक पद्धति से फसलों की सिचाई करते हैं। कहते हैं कि सिचाई की यह विधि सबसे उत्तम है।

गौरी शंकर सिंह टपक विधि से सिचाई के साथ ही पारंपरिक और आधुनिक कृषि उत्पादन तकनीक को अपनाकर केला, टमाटर, सूरन, कद्दू, नेनुआ, आलू, गन्ना तथा गेहूं-धान की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त कर चुके हैं। उद्यान विभाग से मिले 1100 केले के पौधे को लगभग तीन बीघे में रोपाई करके केले का गतवर्ष उत्पादन किया। बताया कि केले की फसल को अधिक सिचाई की जरूरत होती है। केले के पौधे को सूक्ष्म पोषक पदार्थ एवं बोरान का छिड़काव प्रति तिमाही करना पड़ता है। फल आने से पूर्व सूक्ष्म तत्व एवं बोरान का छिड़काव आवश्यक है। बताया कि केले के अलावा टमाटर, सूरन, कद्दू, नेनुआ की खेती लगभग पांच बीघे में की है। सभी उत्पाद केला, सब्जी आदि खेत में ही आकर ग्राहक और छोटे दुकानदार ले जाते हैं। तीन एकड़ की करते हैं टपक विधि से सिचाई

आधुनिक सिचाई पद्धति के रूप में टपक विधि से पिछले तीन वर्षों से एक एकड़ खेत में पाइप बिछाकर पानी की एक-एक बूंद का उपयोग करते हुए आधे जल और आधी सिचाई लागत में दूना उत्पादन कर रहे हैं। बताया कि है इस विधि से सिचाई से पानी की बचत होने के साथ ही सिचाई की लागत भी घट जाती है। उत्पादन भी बढ़ जाता है।

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