हिदी सिनेमा की मशहूर अदाकारा फर्रुख जफर का निधन

जागरण संवाददाता जौनपुर हिदी सिनेमा की मशहूर अदाकारा फर्रुख जफर (89) का शुक्रवार क

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 05:45 PM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 05:45 PM (IST)
हिदी सिनेमा की मशहूर अदाकारा फर्रुख जफर का निधन
हिदी सिनेमा की मशहूर अदाकारा फर्रुख जफर का निधन

जागरण संवाददाता, जौनपुर:

हिदी सिनेमा की मशहूर अदाकारा फर्रुख जफर (89) का शुक्रवार की रात लखनऊ के सहारा अस्पताल में निधन हो गया। दस दिन पूर्व उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया था। जौनपुर के कलापुर निवासी यह मशहूर अदाकारा चकेसर गांव की तीन बार निर्विरोध ग्राम प्रधान भी रहीं। निधन से जनपदवासी शोकाकुल हैं। भाजपा नेता ज्ञान प्रकाश सिंह, विधायक ललई यादव समेत समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए जनपद की अपूरणीय क्षति बताया है।

उमराव जान से फिल्मी कैरियर की शुरुआत करने वाली फर्रुख ने आखिरी बार गुलाबो सिताबो में अमिताभ बच्चन की बेगम का किरदार निभाया था। पीपली लाइव ने उन्हें खासी शोहरत दिलाई थी। बेगम फर्रुख जा़फर भादी के एक बड़े •ामीदार परिवार में पैदा हुईं। उनकी शादी कलापुर में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त परिवार में हुई। शौहर अली जाफर स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के बड़े लीडर थे। वह कई वर्षों तक विधान परिषद के सदस्य भी रहे। बेगम फर्रुख के पति अली जाफर का ताल्लुक उर्दू सज्जाद जहीर के खानदान से था। जीवन का काफी वक्त उन्होंने चकेसर गांव मे गुजारा, जहां उनकी पैतृक संपत्तियां थीं।

बेगम फर्रुख जफर ने कैरियर की शुरूआत सन 1963 में आल इंडिया रेडियो में बतौर अनाउंसर की थी। वह भारत की पहली महिला अनाउंसर थीं। बाद में उन्होंने हिदी सिनेमा की तरफ रुख किया। पहली ही फिल्म उमराव जान में सदाबहार अभिनेत्री रेखा की मां का किरदार निभाया। भारतीय मीडिया पर बनी व्यंगात्मक फिल्म पीपली लाइव ने उन्हें खासी शोहरत दिलाई। सुल्तान व स्वदेश जैसी फिल्मों के साथ ही लखनऊ के नवाबी कल्चर पर हाल ही में बनी गुलाबो सिताबो में बेगम फर्रुख जफर आन स्क्रीन अमिताभ बच्चन की बेगम बनीं। गुलाबो सिताबो उनकी आखिरी फिल्म थी। उन्होंने 89 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनकी दो बेटियों में एक महरु जफर एक अखबार की बड़ी पत्रकार हैं और दूसरी बेटी लखनऊ में कांवेंट स्कूल चलाती हैं। वे चकेसर गांव की तरक्की और बालिकाओं की शिक्षा के लिए काफी फिक्रमंद रहीं। भादी में उन्होंने 25 मोहर्रम का जुलूस कायम किया, जिसमें हर साल हजारों लोग शिरकत करते हैं। करीब डेढ़ दशक तक वह खुद जुलूस में शामिल होने भादी आया करती थीं।

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