छठ व्रत से होती है अभिष्ट कामना की प्राप्ति
जागरण संवाददाता मछलीशहर (जौनपुर) भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है डाला छठ। मूल
जागरण संवाददाता, मछलीशहर (जौनपुर): भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है डाला छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मन वांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष दोनों इस पर्व को व्रत रखकर मनाते हैं।
ज्योतिषाचार्य डा. शैलेश मोदनवाल के अनुसार व्रत करने वाले पहले दिन यानि षष्ठी को जल में स्नान कर पूजन सामग्री के डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्ठी माता को अर्घ्य देते हैं। सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं। रात भर जागरण कीर्तन का दौर चलता है। सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भरकर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है। कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने अपने घर लौट आते हैं। व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं। व्रत का धार्मिक महत्व: ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डा. शैलेश मोदनवाल के अनुसार धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग में वन गमन यात्रा पूर्ण कर वापस अयोध्या आने पर देवी सीता प्रभु श्रीराम ने छठ व्रत का पालन कर की थी सूर्य की आराधना, जबकि द्वापर युग में द्रोपदी ने छठ व्रत रखकर भगवान सूर्य की पूजा किया था। व्रत के प्रभाव से पांडवों ने अपने खोए हुए राज्य को पुन: प्राप्त किया था। व्रत का पौराणिक महत्व: पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णित है कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेद माता गायत्री का उद्भव हुआ था जिसके चलते उक्त व्रत का महत्व जुड़ा हुआ है। सूर्य को नमस्कार और प्रदक्षिणा का विशेष महत्त्व: भगवान सूर्य का पूजन उनकी स्तुति जप प्रदक्षिणा तथा उपवास आदि करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है। नम्र भाव से सिर का भूमि पर स्पर्श करते हुए सूर्य को नमस्कार करना चाहिए। सूर्य को नमस्कार करने से मनुष्य के सभी पाठक नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रदक्षिणा का भी बहुत महत्व है। पवित्र परायण हो भगवान सूर्य की प्रदक्षिणा करने से सप्तदीपा वसुमती की प्रदक्षिणा का फल प्राप्त होता है। भगवान आदित्य की प्रदक्षिणा से ही समस्त रोगों से मुक्ति और सूर्य लोक की प्राप्ति होती है।