20 सेंटीमीटर की दर से पाताल में समा रहा पानी

जागरण संवाददाता, जौनपुर: खुद के फायदे के लिए जरूरत से अधिक जल दोहन करने से जलस्तर लगातार

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 May 2018 07:14 PM (IST) Updated:Tue, 15 May 2018 07:14 PM (IST)
20 सेंटीमीटर की दर से
पाताल में समा रहा पानी
20 सेंटीमीटर की दर से पाताल में समा रहा पानी

जागरण संवाददाता, जौनपुर: खुद के फायदे के लिए जरूरत से अधिक जल दोहन करने से जलस्तर लगातार गिर रहा है। 20 सेंटीमीटर की दर से पाताल में समा रहे पानी को देखते हुए आठ ब्लाकों को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। जलस्तर को लेकर महज गांव ही नहीं बल्कि, शहरों की स्थिति भी ¨चताजनक है। बरसात के पानी को सहेजने को लेकर जिम्मेदार भी उदासीन बने हुए हैं।

गर्मी के साथ ही नगर में पानी की किल्लत बढ़ गई है। हैंडपंपों का पानी सूखने से स्थिति और खराब हो गई है। गिर रहे जलस्तर की मुख्य वजह बड़े पैमाने पर हो रहा जलदोहन है। सबसे बदतर हालात उमरपुर, तारापुर कॉलोनी, कटघरा, तकिया, शाही ईदगाह, दिलाजाक व मोहल्ले की है।

यहां आस-पास लगे अधिकतर हैंडपंप सूख गए हैं। पाइप लाइन सप्लाई से आने वाला पानी भी बेहद प्रदूषित है। तमाम लोगों को पीने का पानी लेने दूसरे घरों में जाना पड़ता है। नगर में पानी की किल्लत से अवैध पानी का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। आरओ प्लांट से बड़े पैमाने पर जल दोहन किया जा रहा है। पानी को सहेजने को लेकर प्रत्येक स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है। यही वजह है कि जल स्तर घटते हुए पाताल पहुंच रहा है। बीते तीन वर्षों में प्रतिवर्ष 15 से 20 सेंटीमीटर जल स्तर गिरने की वजह से आठ ब्लाकों को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। कुछ अन्य ब्लाक भी खतरे के निशान पर हैं। स्थिति खराब होने की मुख्य वजह जरूरत से अधिक जलदोहन हो रहा है। जिले में तकरीबन 35 हजार ट्यूबवेल हैं। एक ट्यूबवेल से एक घंटे में औसतन 10 हजार लीटर पानी बाहर आता है। इस तरह लाखों लीटर जल दोहन महज ट्यूबवेल से रहा है। इसके अलावा तकरीबन एक लाख 50 हजार हैंडपंप, सबमर्सिबल व अन्य स्त्रोतों से जल दोहन किया जा रहा है। इतना ही नहीं वाहनों की धुलाई से भी बड़े पैमाने पर जल स्तर प्रभावित हो रहा है। ¨चता की बात यह है कि जिस अनुपात में धरती के पानी का दोहन किया जा रहा है, उस अनुपात में लौटाया नहीं जा रहा है। जल स्तर को सुधारने को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बरसात के पानी को बर्बाद किया जा रहा है। कुछ स्थानों पर बने वाटर हार्वे¨स्टग सिस्टम कूड़ेदान बन गया है। तकरीबन यही हाल बनाए गए अन्य आठ ब्लाकों के वाटर हार्वे¨स्टग सिस्टम का भी है।

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कुएं को सहेजने की खत्म हो रही परंपरा : पाताल में समा रहे जल स्तर की वजह से गांवों के अधिकतर कुएं सूख चुके हैं। कुएं को सहेजने की परंपरा भी अब समाप्त होती जा रही है। मौजूदा समय में जिले भर के गांवों में तकरीबन 17 हजार कुएं हैं। इनमें अधिकतर सूख चुके हैं। प्रदूषण की वजह से बचे रह गए कूओं का पानी भी पीने लायक नहीं बचा है। सूखे तालाबों को भी कब्जाया जा रहा है। गड्ढों व तालाबों को पाटने की वजह से बरसात के दिनों में मोती समान बरसात का पानी बर्बाद हो रहा है।

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डार्कजोन घोषित ब्लाक: महराजगंज, बक्शा, करंजाकला, धर्मापुर, मुफ्तीगंज, केराकत, डोभी, बरसठी व सिकरारा में जल स्तर पाताल पहुंच चुका है। बक्शा, डोभी, सिरकोनी आदि में 150 फीट पर पानी प्राप्त होता है। शाहगंज व मछलीशहर ब्लाक में 100 से 125 फीट पर पेयजल मिल रहा है। इन ब्लाकों में ¨सचाई के लिए गहरी, मध्यम ट्यूबवेल की बो¨रग तक नहीं कराई जाती है।

गोमती के पानी की संयुक्त जांच

एक वर्ष पहले आस्ट्रेलिया और बीएचयू की संयुक्त टीम ने गोमती के पानी की जांच की थी। टे¨स्टग मशीन के जरिए की गई सई व गोमती की नदी के पानी की जांच में प्रारंभिक तौर पर यह बात सामने आई थी कि गोमती नदी अब सई नदी से भी अधिक प्रदूषित हो चुकी है। जांच के दौरान सई नदी में घुलित ठोस पदार्थ की मात्रा 320 पाई थी, जबकि गोमती नदी में यही मात्रा 330 मिली थी। यह मात्रा 200 के नीचे होनी चाहिए।

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बनाए गए 65 चेकडैम: जल स्तर को बढ़ावा देने के लिहाज से 65 स्थानों पर चेकडैम बनाए गए हैं। हालांकि इनकी संख्या पर्याप्त नहीं है। गिरते जल स्तर को बढ़ाने के लिए इनकी संख्या को बढ़ाने की जरूरत है।

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जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण के पहरूआ हैं महेश

बख्शा विकास खंड के लेदुका निवासी महेश कुमार दुबे जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावण के पहरूआ बने हैं। ये हैंडपंप से निकलने वाले पानी को गड्ढे में एकत्र करते हैं, जिसे निकालकर खुद द्वारा लगाए जाने पौधों की ¨सचाई करते हैं। इतना ही नहीं पेशे से शिक्षक महेश कुमार दुबे छात्र-छात्राओं को पानी के महत्व को समझाते हैं। साथ ही लोगों को जल संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरित भी करते हैं।

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